कितने पढ़े-लिखे हैं प्रेमानंद महाराज को चुनौती देने वाले रामभद्राचार्य, जानें उन्हें कितनी भाषाओं का ज्ञान?
रामभद्राचार्य का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था. बचपन से ही उनका रुझान धर्म और शास्त्रों की ओर था. दृष्टिहीन होने के बावजूद उन्होंने अपनी लगन और मेहनत से वो हासिल किया जो आम इंसान सोच भी नहीं सकता. उनकी गिनती आज देश के विद्वान संतों में होती है.
रामभद्राचार्य ने पढ़ाई-लिखाई के क्षेत्र में मिसाल कायम की. उन्होंने संस्कृत, वेद, उपनिषद, पुराण और रामायण जैसे ग्रंथों का गहरा अध्ययन किया. उन्हें वेदांताचार्य, कवि और वक्ता के रूप में भी जाना जाता है.
रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से पढ़ाई की है. 1974 में शास्त्री (बीए) की अंतिम परीक्षा में उन्होंने टॉप किया और इसके बाद आचार्य (एमए) की पढ़ाई भी इसी विश्वविद्यालय से शुरू कर दी. मास्टर्स के बाद उन्होंने पीएचडी भी की.
डॉक्टरेट पूरी होने के बाद उन्हें संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में व्याकरण विभाग का अध्यक्ष बनने का ऑफर मिला, लेकिन उन्होंने यह जिम्मेदारी ठुकरा दी.
रामभद्राचार्य की विद्वता का एक और बड़ा उदाहरण 9 मई 1997 को सामने आया, जब उन्हें संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से वाचस्पति (डी.लिट.) की उपाधि दी गई.
रामभद्राचार्य न सिर्फ एक धार्मिक विद्वान हैं बल्कि एक भाषाविद भी हैं. उन्हें हिंदी और संस्कृत के अलावा कई अन्य भाषाओं का गहरा ज्ञान है. बताया जाता है कि वे करीब 22 भाषाओं को जानते हैं. इनमें हिंदी, संस्कृत, उर्दू, अवधी, ब्रजभाषा, मैथिली, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाएं शामिल हैं.
रामभद्राचार्य ने अब तक कई किताबें और लेख लिखे हैं. उन्होंने रामायण और गीता पर विस्तृत टीकाएं लिखकर विद्वानों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई. उनके लेखन में गहराई और सरलता दोनों का संतुलन देखने को मिलता है.