Manusmriti Controversy: क्या ब्राह्मण मांस खा सकते हैं! जानिए मनुस्मृति में इसे लेकर क्या लिखा है?
मनुस्मृति हिंदुओं के सबसे लोकप्रिय, मौलिक और पवित्र ग्रंथों में एक है. मनुस्मृति के श्लोक 30, अध्याय 5 में लिखा गया है- ‘खाने योग्य जानवरों का मांस खाना पाप नहीं है क्योंकि ब्रह्मा ने खाने वाले और खाने योग्य दोनों को बनाया है.’
मनुस्मृति के श्लोक 5.33 में राजर्षि मनु लिखते हैं कि, मनुष्य विपत्ति के समय में मांस खा सकता है. वहीं श्लोक 5.27 अनुशंसा करता है कि, ऐसी परिस्थिति में मांस खाना उचित है जब मांस नहीं खाने से व्यक्ति के स्वास्थ्य या जीवन पर खतरा हो.
मनुस्मृति के श्लोक 3.267 से 3.272 तक में, मछली,हिरण, मृग, मुर्गी, बकरी, भेड़ और खरगोश के मांस को बलि के भोजन के रूप में मंजूरी देता है.
मनुस्मृति के श्लोक 11/95 में कहा गया है, ‘यक्षरक्षः पिशाचान्नं मद्यं मांस सुरा ऽऽ सवम्। सद् ब्राह्मणेन नात्तव्यं देवानामश्नता हविः।” . इसका अर्थ है कि, ‘मद्य, मांस, सुरा और आसव ये चारों यक्ष, राक्षस और पिशाचों के अन्न हैं. इसलिए ब्राह्मणों को इसका पान नहीं करना चाहिए.
राजर्षि मनु मनुस्मृति में यह भी बताते हैं कि, जो मनुष्य मांसाहार करता है वह राक्षस या पिशाच कोटि का मनुष्य कहलाता है. ब्राह्मणों का भोजन तो देवताओं को दी जाने वाली गोघृत, अन्न, औषधि और कई तरह के फल व शाकाहारी पदार्थों की आहूतियां ही हैं.
इस बात का ध्यान रखें कि मनुस्मृति प्राचीन समय का कानून ग्रंथ है, आध्यात्मिक नहीं. इसलिए यह कुछ स्थिति में मांस खाने की अनुमति भले ही देता हो लेकिन इसका प्रचार नहीं करता.