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पाकिस्तान में है ये गुरुद्वारा, भारतीय बार्डर से दूरबीन द्वारा भक्त करते हैं इसके दर्शन

एबीपी लाइव   |  25 May 2025 06:30 AM (IST)
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करतारपुर साहिब गुरुद्वारा पाकिस्तान के नारोवाल जिले में स्थित है. भारतीयों के लिए यह स्थान बहुत ही पवित्र है क्योंकि इसे देखने के लिए वे डेरा बाबा नानक स्थित गुरुद्वारा शहीद बाबा सिद्ध सैन रंधावा से दूरबीन का सहारा लेते हैं. यह गुरुद्वारा भारतीय सीमा से सिर्फ 4 किलोमीटर दूर है, लेकिन पाकिस्तान में होने के कारण यहां जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है.

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करतारपुर साहिब का ऐतिहासिक महत्व बहुत बड़ा है क्योंकि इसे गुरु नानक देवजी ने स्वयं बसाया था. यहीं पर उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए और यहीं उनकी समाधि भी स्थित है. गुरु नानक ने यहां समाज में लंगर की परंपरा शुरू की, जहां स्त्री-पुरुष का भेद मिटाकर सभी को समान रूप से भोजन कराया जाता था.

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गुरुद्वारे के आसपास का क्षेत्र अक्सर घनी हाथी घास से ढका रहता है. पाकिस्तान सरकार समय-समय पर इस घास को साफ करवाती है ताकि भारतीय सीमा से लोग दूरबीन के जरिए करतारपुर साहिब के दर्शन कर सकें. 1522 में गुरु नानक के समय यहां एक झोपड़ीनुमा स्थल बनाया गया था, जिसे आगे चलकर बड़े गुरुद्वारे का रूप दिया गया.

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करतारपुर साहिब का भव्य निर्माण पटियाला के महाराजा सरदार भूपिंदर सिंह ने करवाया था. समय के साथ यह गुरुद्वारा जर्जर हो गया था, जिसे 1995 में पाकिस्तान सरकार ने मरम्मत कर फिर 2004 में संवारकर नया रूप दिया. यह स्थान आज भी लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है, भले ही वे सिर्फ दूर से दर्शन कर पाते हों.

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गुरु नानक देव का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन संवत्‌ 1526 में हुआ था, जिसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है. कुछ विद्वान उनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं. उनका जन्म रावी नदी के किनारे तलवंडी नामक गांव में हुआ था, जिसे अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है. वे खत्रीकुल से संबंधित थे.

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गुरु नानक देव के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था. उनकी बहन का नाम नानकी था, जिनसे उनका बहुत गहरा संबंध था. बचपन में ही उनके व्यक्तित्व में दिव्यता के चिह्न देखे गए, जिससे गांववाले उन्हें विशेष मानने लगे. गुरु नानक ने सिख धर्म की स्थापना कर समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए कई यात्राएं कीं.

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