अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा फीस में बढ़ोतरी करने का ऐलान किया है. अब इस वीजा के लिए हर साल करीब 100,000 अमेरिकी डॉलर चुकाने होंगे. पहले यह फीस सिर्फ 1 से 6 लाख रुपये के बीच थी. ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इस फैसले से अमेरिकी नागरिकों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, लेकिन इसका सीधा और सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर पड़ने वाला है.

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क्या है H-1B वीजा?H-1B वीजा एक नॉन-इमीग्रेंट वीजा है, जो अमेरिका में काम करने के लिए दिया जाता है. इसे पाने के लिए लॉटरी सिस्टम अपनाया जाता है. इसकी वैधता तीन साल की होती है, जिसे बाद में बढ़ाया भी जा सकता है. वीजा धारकों को हर साल इसकी फीस जमा करनी पड़ती है. भारतीय प्रोफेशनल्स, खासकर आईटी और टेक्नोलॉजी सेक्टर के लोग, H-1B वीजा पर सबसे ज्यादा निर्भर रहते हैं.

भारतीयों पर सीधा असर: 10 बड़ी चुनौतियां1. दो लाख से ज्यादा भारतीय प्रभावितइस फैसले का असर सीधे तौर पर उन भारतीयों पर होगा जो पहले से अमेरिका में H-1B वीजा पर काम कर रहे हैं या नए आवेदन करने की तैयारी कर रहे हैं.

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2. आईटी सेक्टर के कर्मचारियों पर चोटअमेरिकी आईटी कंपनियों में काम करने वाले भारतीयों के लिए नौकरी पाना मुश्किल होगा, क्योंकि कंपनियों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढ़ेगा.

3. रोजगार के अवसर घटेंगेअमेरिका में भारतीयों के लिए नौकरी की संभावनाएं पहले से कम हो जाएंगी. प्राथमिकता अमेरिकी नागरिकों को दी जाएगी.

4. छात्रों पर संकटअमेरिका की यूनिवर्सिटी में मास्टर या पीएचडी करने वाले भारतीय छात्रों को पढ़ाई के बाद नौकरी पाना कठिन हो जाएगा.

5. पढ़ाई के बाद सीमित अवसरजो छात्र अमेरिका में पढ़ाई पूरी करके वहीं नौकरी करने का सपना देखते हैं, उनके लिए मौके अब बहुत कम होंगे.

6. वित्तीय दबाव बढ़ेगा88 लाख रुपये की फीस चुकाना भारतीय परिवारों के लिए बेहद मुश्किल होगा. छात्रों और प्रोफेशनल्स दोनों पर बड़ा आर्थिक बोझ पड़ेगा.

7. करियर की शुरुआत चुनौतीपूर्णयुवा भारतीयों के लिए अमेरिका में करियर शुरू करना अब बेहद कठिन हो जाएगा.

8. STEM सेक्टर पर सबसे ज्यादा असरभारतीय ज्यादातर STEM (Science, Technology, Engineering, Math) क्षेत्रों में काम करते हैं. आईटी और टेक कंपनियों में काम करने वाले लोगों को सबसे ज्यादा झटका लगेगा.

9. मिड-लेवल और एंट्री-लेवल कर्मचारियों पर मारमध्यम और शुरुआती स्तर पर काम करने वालों को वीजा मिलना लगभग असंभव हो सकता है.

10. आउटसोर्सिंग में इजाफाअमेरिकी कंपनियां नौकरियां दूसरे देशों को आउटसोर्स करना शुरू कर सकती हैं. इससे भारत में कुछ काम तो आएगा, लेकिन अमेरिका जाकर काम करने का सपना टूटेगा.

भारत को कैसे होगा असर?कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिकी कंपनियां अब ज्यादा काम भारत जैसे देशों में आउटसोर्स करेंगी. इससे बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे और गुरुग्राम जैसे शहरों में आईटी सेक्टर की गतिविधियां और तेज हो सकती हैं. लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि हजारों भारतीयों का अमेरिका जाकर करियर बनाने का सपना धुंधला हो जाएगा.