यूक्रेन जंग के चलते रूस पर लगी आर्थिक पाबंदियों का असर भारतीय मूल के बिजनेसमैन पर भी दिखाई पड़ रहा है. हालांकि, खुद भारतीय मूल के लोगों का कहना है कि थोड़ी बहुत मंहगाई के अलावा अभी तक इन पाबंदियों का खास असर आम आदमी पर नहीं पड़ा है.


यूक्रेन युद्ध की कवरेज के दौरान एबीपी न्यूज की मुलाकात हुई भारतीय मूल के बिजनेसमैन, रामचंद्रन माधवन से. मूलत: तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के रहने वाले माधवन चाय के बिजनेस में हैं. करीब 45 साल पहले माधवन इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए रशिया आए थे और फिर यहीं के बनकर रह गए. उस वक्त रूस सोवियत संघ का हिस्सा था और दुनिया की महाशक्ति समझा जाता था. लेकिन खुद उन्होनें सोवियत संघ का डिस-इंटीग्रेशन यानि सोवियत संघ को अलग-अलग देशों में टूटना और बिखरना भी देखा था. वो दौर भी देखा था जब सोवियत संघ के बिखरने के बाद रूस में खाने पीने की चीजों के लिए लूट खसोट होती थी. लेकिन अब परिस्थितियां बिल्कुल पलट चुकी हैं. रूस अब एक संपन्न देश है. चारों तरफ खुशहाली, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, शहरों में बड़े-बड़े लाइफस्टाइल शोरुम और मॉल खुल चुके हैं. हथियारों से लेकर साइबर और स्पेस तक में रशिया बेहद तरीका कर चुका है.


रूस में ही बनना शुरू हुआ मैटेरियल


करीब दो महीने पहले यूक्रेन के खिलाफ शुरू हुए रूस के युद्ध यानि स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन्स से माधवन इतना परेशान या चिंतित नहीं है. हालांकि, युद्ध के शुरुआती दिनों में उनके बिजनेस पर जरूर असर पड़ा था. वो बताते हैं कि रूस पर आर्थिक पाबंदियां लगते ही‌ उनके चाय के कारोबार पर थोड़ा असर जरुर पड़ा. माधवन भारत से रूस में चाय आयात करते हैं. चाय तो भारत से लगातार आ रही है लेकिन जिन देशों से पैकिंग का मैटेरियल आता था उन्होनें उस पर रोक लगा दी, जिसके चलते उनके व्यापार पर थोड़ा असर जरुर पड़ा. लेकिन उनका दावा है कि रूस इन पाबंदियों से बेहद तेजी से बाहर आ गया और चाय की पैकिंग का मैटेरियल अब रूस में ही बनना शुरू हो गया है.


माधवन के मुताबिक, युद्ध शुरू होने के बाद से रोजमर्रा की चीजें थोड़ी महंगी जरूर हुई हैं. उनके मुताबिक, शुरूआत में तो सुपरमार्केट और बाजारों में खाने पीने की चीजों की किल्लत भी हो गई थी. उनके मुताबिक, वो इसलिए हुई थी क्योंकि लोगों ने खाने पीने की चीजें स्टोर करनी शुरू कर दी थी. लेकिन अब स्थिति ऐसा नहीं है. सुपर मार्केट में कोई लाइन तक नहीं है भीड़ तो बहुत दूर की बात है. एटीम तक में कोई भीड़-भाड़ तक नहीं है. माधवन के मुताबिक, बड़े ब्रांन्ड और पश्चिमी देशों की एमएनसी कंपनियों के रूस को छोड़कर जाने से नौजवानों की नौकरियां जरूर जा सकती हैं. लेकिन उनका मानना है कि दो महीने पहले जिस तरह रूस की करेंसी डॉलर और यूरो के मुकाबले तेजी से गिरी थी वो अब एक फिर से मजबूत स्थिति में है और स्थिर हो चुकी है.


रूस एक बार फिर से आर्थिक शक्ति बन चुका है- माधवन 


माधवन के मित्र नीरज कुमार भी पिछले 30 सालों से रशिया में रह रहे हैं. पैतृक तौर से बिहार के रहने वाले नीरज भी चाय का कारोबार करते हैं. वे माधवन साहब की तरह पिछले 20 सालों में राष्ट्रपति पुतिन के कार्यकाल में हुई प्रगति के मुरीद हैं. उनका मानना है कि पुतिन के समय में रूस एक बार फिर से आर्थिक शक्ति बन चुका है. नीरज ने एबीपी न्यूज से खास बातचीत में बताया कि वर्ष 2014 में क्रीमिया पर कब्जे के बाद से ही रूस पर अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने आर्थिक पाबंदी लगानी शुरु कर दी थी. यही वजह है कि पिछले आठ साल से रूस ने खेती के उत्पादन से लेकर खाने-पीने के वस्तुओं का उत्पादन करना शुरु कर दिया था. जबकि उ‌‌ससे पहले तक रूस एग्रीकल्चर प्रोडेक्ट्स के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहता था.


माधवन की तरह ही नीरज भी भारत और रूस के व्यापारिक संबंधों को लेकर बेहद आश्वस्त नजर आते हैं. उनका मानना है कि भारत अगर आज कच्चे तेल और गैस के लिए रूस पर निर्भर रह सकता है तो चाय, शुगर, फार्मा और दवाईयों के लिए भारत भी रूस की खुलकर मदद कर सकता है. वे मानते हैं कि जिस तरह हथियारों और सैन्य साजो सामान के लिए भारत और रूस की टेस्टेड और ट्रस्टेड पार्टनशिप है आने वाले दिनों में ये व्यापार में भी सामने आएगी.


रशियन अर्थव्यवस्था पर एबीपी ने लिया जायजा


इसके अलावा, यूक्रेन युद्ध की कवरेज पर रूस गई एबीपी न्यूज की टीम ने रशियन अर्थव्यवस्था का भी जायजा लिया. युद्ध शुरु होने के बाद अमेरिका और पश्चिमी मीडिया ने रूस की राजधानी मॉस्को और दूसरे शहरों की जो तस्वीर पेश की थी, एबीपी न्यूज ने पिछले एक महीने के दौरान उ‌ससे उलट पाई. अपने एक महीने के दौरे के दौरान एबीपी न्यूज की टीम ने ना केवल रूस‌ की राजधानी मॉस्को बल्कि यूक्रेन सीमा से सटे शहरों और इलाकों का भी दौरा किया. वर्ष 2014 तक यूक्रेन का हिस्सा रहे क्रीमिया का भी दौरा किया. लेकिन कहीं भी यूक्रेन पर हुए हमले यानि स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन्स का रूस के नागरिकों पर सीधे तौर से होने वाले परेशानी मुसीबत का कोई खास असर नहीं दिखाई पड़ा.


सुपरमार्केट में खाने पीने की चीजें थोड़ा महंगी जरुर हुई हैं लेकिन अब सामान खरीदने को लेकर कोई मारामारी नहीं दिखाई पड़ती. मार्केट में सामान लेने के लिए लोग बेचैन नहीं हैं. वे आराम से ‌घर की रोजमर्रा का सामान खरीदते नजर आते हैं. यहां तक कि लोग ये मानते हैं कि उनके बाजार में वे सब चीजें भी दिखाई पड़ने लगी हैं जो पहले कभी ही नजर आती थीं. एटीएम पर कैश निकालने के लिए कोई भीड़ या लाइन नहीं दिखाई पड़ी. स्थानीय लोगों ने बताया कि जब रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन्स यानि हमले की घोषणा की थी तो उ‌सके बाद कुछ दिन तक तो लोगों में कैश निकालने की होड़ दिखाई पड़ी थी लेकिन अब हालात सुधर चुके हैं. लोग समझ चुके हैं कि यूक्रेन जंग का रूसी अर्थव्यवस्था पर कोई खास‌ असर नहीं होने वाला है.


पहले की तरह है माहौल


मॉ‌स्को, बेलगोरोड, रोस्तोव ऑन डॉन और ब्लैक सागर पर ब‌से क्रीमिया के सबसे बड़े शहर, सेवेस्तोपोल में आम लोगों की जिंदगी वैसी ही पटरी पर दौड़ते दिखी जैसी यूक्रेन जंग से पहले थी. ठंड के मौसम में ब्रांडेड कपड़े पहने लोग आपको सड़कों पर कदमताल करते नजर आते हैं. लाइफ स्टाइल शोरूम और मॉल में लोग शॉपिंग करते भी नजर आते हैं. लेकिन मैकडोनाल्ड, सबवे और कुछ दूसरे जाने माने फूड आउटलेट जरुर बंद हो गए हैं. यूरोप के परफ्यूम, डिओर्डेंट और कॉस्मेटिक आइटम फिलहाल तो शॉपिग सेंटर में दिखाई पड़ रहे हैं लेकिन आने वाले समय में स्टॉक आउट हो सकता है.


रशिया की शानदार सड़कों और हाईवों पर फर्राटा भरती चमचमाती विदेशी लग्जरी गाड़ियां ही गाड़ियां नजर आती हैं. लेकिन कुछ लोगों ने दबी जुबान में एक बात जरुर कही. वे ये कि रूस की अपनी एक भी सिविलियन कार का ब्रांन्ड नहीं है. रूस में अमेरिका से लेकर जर्मनी, जापान और दक्षिण कोरिया की कारों के ब्रांड ही नजर आते हैं. लेकिन सेंक्शन लगने के चलते कुछ विदेशी आटोमोबाइल कंपनियों ने अपने ऑपरेशन्स रशिया में लगभग बंद कर दिए हैं. ऐसे में आने वाले समय में रूस में कारों के कारोबार पर खासा असर पड़ सकता है.


आपको बता दें कि रूस में सेना की हर व्हीकल, टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों को तो जबरदस्त उत्पादन होता है और भारत, चीन, वियतनाम और इज्पिट जैसे देशों को बहुतयात निर्यात भी करता है लेकिन आम लोगों की जरुरत बन चुकी कारों के लिए रूस जैसा बड़ा देश भी विदेशी आटोमोबाइल कंपनियों पर निर्भर रहता है.


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