वॉशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के सामने कोरोना वायरस महामारी, देश के लोगों को एकजुट करने और दुनिया से मेल जोल बढ़ाने जैसी चुनौतियों के अलावा और भी कई और बड़ी चुनौतियां हैं. इन चुनौतियों में एक मुख्य चुनौती अमेरिका में बढ़ रहे अमीर-गरीब के बीच के फासले को कम करना है. बेरोजगारी को लेकर सामने आई एक रिपोर्ट से बाइडेन का परेशान होना लाजमी है.


बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी


अमेरिकी श्रम ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 9 जनवरी को समाप्त हुए एक हफ्ते में अमेरिका में पहली बार बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन करने वाले लोगों की संख्या 9 लाख 65 हजार दर्ज हुई, जो अगस्त 2020 से सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंची. बेरोजगारी भत्ते के आवेदकों की संख्या कई हफ्तों से 7 लाख से 9 लाख के बीच बनी रही, जो कोविड-19 महामारी के पहले के 2 लाख के आंकड़े से काफी अधिक है. उधर अमेरिकी मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार गत अक्तूबर के मध्य तक अमेरिका में अरबपतियों की संपत्ति 38 खरब 80 अरब डॉलर से अधिक हो गयी, जिसमें गत मार्च से 9 खरब 31 अरब डॉलर से अधिक इजाफा हुआ है.


महामारी के बीच अधिक तेजी से बढ़ रहा है फासला


महामारी के बीच अमेरिका में अमीर-गरीब का फासला और अधिक तेजी से बढ़ रहा है. अमीरों को मात्रात्मक सहजता के प्रोत्साहन से स्टॉक मार्केट का तेजी से बड़ा लाभ मिला. उनको कोविड-19 की जांच और टीकाकरण में प्राथमिकता भी मिली है.


बड़ी संख्या में अमेरिकियों के पास खाने और इलाज कराने के लिए पैसा भी नहीं


उधर बड़ी संख्या में गरीब अमेरिकियों के पास खाने और इलाज कराने के लिए पैसा भी नहीं है. अमेरिकी समाज का विभाजन तेज गति से चल रहा है. अमेरिकी राजनीतिज्ञ निरंतर समानता और न्याय की चर्चा करते हैं और अपनी व्यवस्था के लाभ का प्रचार करते हैं, लेकिन अमेरिका में बढ़ रहे अमीर-गरीब के फासले से पूंजीवादी व्यवस्था का गहरा अंतर्विरोध जाहिर हुआ है.


कहा जा सकता है कि पैसे की राजनीति से अमेरिकी सरकार अमीरों का प्रतिनिधि बन चुकी है. व्हाइट हाउस में फैसला लेने वाले लोग कई करोड़ गरीब अमेरिकियों की उपेक्षा करते हैं और अधिकाधिक अमेरिकी बेहद गरीबी के चपेट में आ रहे हैं. इस तरह से अमेरिका एक दुष्चक्र में फंस रहा है.


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