काबुल: अफगानिस्तान में बिगड़ते हालातों के बीच हर दिन हजारों लोगों को वहां से निकाला जा रहा है. अमेरिका हो या ब्रिटेन दोनों जगह की सेनाएं सिर्फ अपने नागरिकों को ही नहीं, उन अफगानी लोगों को भी ले जा रहे हैं जो तालिबानी राज में दिन नहीं गुजारना चाहते. इन कोशिशों के बीच तालिबान ने अमेरिका और ब्रिटेन को रेड लाइन की चेतावनी दे दी है. 


दरसअसल तालिबानी प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पत्रकार ने पूछा कि अगर अमेरिका और ब्रिटेन लोगों को अफगानिस्तान से निकालने की समय सीमा को 31 अगस्त से आगे बढ़ाने को कहते हैं तो क्या आप उसे मान जाएंगे ? इस पर तालिबानी प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा नहीं.


पत्रकार के क्यों पूछना पर तालिबानी प्रवक्ता ने कहा, ''आप इसे एक तरह की रेड लाइन कह सकती हैं. राष्ट्रपति बाइडेन ने घोषणा की थी कि वे 31 अगस्त तक यहां (अफगानिस्तान) से सारी सेना वापस बुला लेंगे लेकिन अगर वे समय सीमा बढ़ाते हैं तो इसका मतलब है कि वे यहां कब्जे की तारीख भी आगे बढ़ा रहे हैं. जबकि यहां इसकी कोई जरूरत नहीं है. मुझे लगता है कि ये रिश्तों को खराब करेगा और हमारे बीच अविश्वास पैदा करेगा. अगर वे फिर भी समय सीमा बढ़ाने की जिद करते हैं तो उसपर रिएक्शन होगा.'' इस बयान के जरिए तालिबान ने साफ कर दिया है कि वो 31 अगस्त के बाद अफगानिस्तान की जमीन पर अमेरिका या ब्रिटेन का नामोनिशान नहीं देखना चाहता है.


तालिबान का ये बयान आया को अमेरिका ने भी जवाब देने में वक्त नहीं लगाया. अमेरिका ने साफ किया कि महीने के अंत के बाद उसका भी अफगानिस्तान में रुकने का कोई इरादा नहीं है. पेंटागन के प्रेस सचिव जॉन कर्बी ने कहा, ''हमारी दिन में कई बार तालिबानियों से बात होती है. हम उनकी इच्छाओं के बारे में बहुत अच्छे से जानते हैं. हमें इसकी जानकारी है कि तालिबानी इस मिशन को 31 अगस्त तक पूरा देखना चाहते हैं. मैं बताना चाहता हूं कि हम भी इस मिशन को 31 अगस्त तक पूरा करना चाहते हैं. मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहता कि 31 अगस्त के बाद क्या होगा. फिलहाल हमारा पूरा ध्यान ज्यादा से ज्यादा लोगों को 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से निकालने के मिशन पर है.''


तालिबान ने चेतावनी दी.. अमेरिका ने भी जवाब दे दिया.. लेकिन इस रेड लाइन के खेल में जिंदगी उनकी दांव पर लग गई है जो इस तालिबानी चंगुल में फंसे हुए हैं. अपनों को तो निकाल लिया जाएगा लेकिन उनका क्या जो अफगानिस्तान के होकर भी अफगानिस्तान के ना रहेंगे. जिन्हें छोड़ देंगे सभी देश अपने हालातों पर मरने के लिए.


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