Sri Lanka Political Crisis: श्रीलंका की नई सरकार (New Government of Sri Lanka) को शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हमले के बाद शनिवार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय, मानवाधिकार संगठनों और विपक्ष की ओर से नये दबाव का सामना करना पड़ा. देश-दुनिया की संस्थाओं ने राष्ट्रपति रानिल विक्रम सिंघे (Ranil Vikramsinghe) से अनुरोध किया कि वह सुरक्षा बलों को शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल नहीं इस्तेमाल करने का तुरंत आदेश दें. श्रीलंका के सुरक्षा बलों ने संकटग्रस्त द्वीपीय राष्ट्र के नये राष्ट्रपति विक्रमसिंघे के आदेश पर शुक्रवार को तड़के छापेमारी कर कोलंबो में राष्ट्रपति कार्यालय (President Office) के बाहर डेरा डाले हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों को जबरन खदेड़ दिया.


13 जुलाई को देश छोड़कर भागे पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके प्रमुख सहयोगी विक्रमसिंघे के इस्तीफे की मांग को लेकर प्रदर्शनकारी महीनों से राष्ट्रपति कार्यालय के बाहर डेरा डाले हुए हैं. प्रदर्शनकारियों ने राजपक्षे और विक्रमसिंघे को अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के लिए दोषी ठहराया है, जिसने देश के 2.2 करोड़ लोगों को संकट में डाल दिया. विपक्ष ने नवनियुक्त प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धना से सुरक्षा बलों द्वारा शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर हमले और देश की मौजूदा स्थिति पर चर्चा के लिए सोमवार को संसद बुलाने का आग्रह किया है.


सुरक्षा बलों ने पत्रकारों और वकीलों पर भी किया हमला
शुक्रवार को कार्रवाई के दौरान सुरक्षा बलों ने दो पत्रकारों और दो वकीलों पर भी हमला किया था. अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों और वकीलों समेत 11 लोगों को गिरफ्तार भी किया है. श्रीलंका में विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा पहले ही प्रदर्शनकारियों पर हमले पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं. उन्होंने शुक्रवार को ट्वीट किया, "इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि अत्यधिक बल प्रयोग किया गया और यह अनावश्यक था. इस अमानवीय कृत्य को उचित नहीं ठहराया जा सकता, कानून का पालन सभी को करना चाहिए."


यूरोपीय संघ से मिली चेतावनी
शनिवार को उन्होंने एक बार फिर ट्वीट कर कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि शुक्रवार की हिंसा की पुनरावृत्ति न हो. उन्होंने यह भी बताया कि विक्रमसिंघे सरकार को यूरोपीय संघ की चेतावनी पूरे श्रीलंका में खतरे की घंटी है, क्योंकि जीएसपी देश के निर्यात के लिए सबसे अमूल्य है. प्रेमदासा का ट्वीट यूरोपीय संघ की परिषद द्वारा शुक्रवार को कड़े शब्दों में दिए गए बयान के बाद आया है जिसमें कहा गया है कि 27 सदस्यीय समूह श्रीलंका की नई सरकार से अपेक्षा करता है कि वह अपनी जीएसपी प्रतिबद्धताओं का पूर्ण रूप से पालन करेगा.


प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग
श्रीलंका में संयुक्त राष्ट्र की रेजिडेंट समन्वयक हाना सिंगर-हैमडी ने भी गाले फेस में प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग पर चिंता व्यक्त की है. सिंगर-हैमडी ने ट्विटर पर कहा कि पत्रकारों और मानवाधिकार रक्षकों को प्रदर्शनों पर नजर रखने का अधिकार है और उनके कार्यों को बाधित नहीं किया जाना चाहिए. वैश्विक अधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि राष्ट्रपति विक्रमसिंघे को तुरंत सुरक्षा बलों को प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल के सभी गैरकानूनी इस्तेमाल को रोकने का आदेश देना चाहिए. इसने मनमाने ढंग से हिरासत में लिए गए सभी लोगों को रिहा करने और दुर्व्यवहार के लिए जिम्मेदार लोगों की जांच करके मुकदमा चलाने की भी मांग की.


मानवाधिकार आयोग ने छापेमारी की निंदा की
ह्यूमन राइट्स वॉच में दक्षिण एशिया की निदेशक मीनाक्षी गांगुली (Minakshi Ganguly) ने एक बयान में कहा, "कार्यभार संभालने के ठीक एक दिन बाद, राष्ट्रपति विक्रमसिंघे (President Vikramsinghe) ने कोलंबो के बीचों-बीच शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों (Protesters) पर सुरक्षा बलों द्वारा किए गए क्रूर हमले को देखा." श्रीलंका के मानवाधिकार आयोग ने भी छापेमारी की निंदा की और कहा कि ‘शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों’ पर क्रूर हमला मौलिक अधिकारों का पूर्ण उल्लंघन है. कोलंबो में अमेरिका और ब्रिटिश राजनयिकों ने भी चिंता व्यक्त की है. श्रीलंका में अमेरिकी राजदूत जूली चुंग ने ट्वीट किया, "हम अधिकारियों से संयम बरतने और घायलों को तत्काल चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने का आग्रह करते हैं." श्रीलंका में ब्रिटिश उच्चायुक्त सारा हल्टन ने कहा, "हमने शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार के महत्व को स्पष्ट कर दिया है." श्रीलंका को अपने 2.2 करोड़ लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अगले छह महीनों में करीब पांच अरब अमेरिकी डॉलर की जरूरत है.


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