22th Costitutional Amendment: श्रीलंका के सांसदों ने शुक्रवार को संविधान में 22वें संशोधन को मंजूरी दे दी. 22वें संविधान संशोधन में कार्यकारी राष्ट्रपति की कुछ शक्तियों को कम करते हुए दो-तिहाई बहुमत से संशोधन पारित किया गया. मतदान के साथ ही श्रीलंका की संसद में संविधान संशोधन को लेकर दो दिन से जारी चर्चा समाप्त हो गई. साथ ही देश की संसद को राष्ट्रपति के मुकाबले ज्यादा अधिकार देने का रास्ता साफ होने लगा है. श्रीलंका में अब राष्ट्रपति के मुकाबले संसद को ज्यादा शक्तियां मिलेंगी.


दो-तिहाई बहुमत से पारित हुआ संशोधन


देश की 225 सदस्यीय संसद में 179 सांसदों ने संशोधन के पक्ष में वोट दिया जबकि संशोधन को पारित होने के लिए 150 मतों की जरूरत थी और वोटिंग के दौरान मात्र एक व्यक्ति अनुपस्थित रहा. 22वें संविधान संशोधन को मूल रूप से 21ए का नाम दिया गया था जो कि 20ए वें संशोधन की जगह लाया गया.


"गजट" में ही प्रकाशित किया था 22वां संशोधन


बता दें, 22वें संविधान संशोधन के मसौदा प्रस्ताव को कैबिनेट ने पहले ही मंजूरी दे दी थी और अगस्त में उसे गजट में प्रकाशित कर दिया गया था. इस कवायद को राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की जीत माना जा रहा है. जिन्होंने पूर्ववर्ती सरकार के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों को शांत करने के लिए संवैधानिक सुधार का संकल्प जताया था.


20वें संविधान संशोधन की मांग कर रहे है लोग


अब 22वें संशोधन के बाद श्रीलंका के लोगों की एक और मांग है. ये मांग 20वें संशोधन को लेकर है क्योकिं 20वें संविधान संशोधन ने राष्ट्रपति की बहुत सी संवैधानिक शक्तियां वापस ला दी है जिसे 19वें संशोधन में समाप्त किया गया था. 19वां संशोधन 19ए के नाम से पारित किया गया और इसमें सन् 1978 से लागू राष्ट्रपति की शक्तियों को कम करने के लिए किया गया था लेकिन इसी के साथ 20वें संविधान संशोधन ने राष्ट्रपति की बहुत सी शक्तियों को वापस ला दिया.  


सतत विकास है चुनौतीपूर्ण स्थिति


श्रीलंकाई संसद में संशोधन उस वक्त हो रहा है जब श्रीलंका अपने आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. वहीं कोविड-19 की मार ने श्रीलंका की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया. नागरिकों के पास जीवन-बसर के लिए भी पर्याप्त संसाधनों की कमी हो रही है. कोविड की मार ने जारी विकास को रोक दिया है और सतत विकास के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति बना दी है.


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