Russia in Africa: अफ्रीका को लेकर कहा जाता है कि चीन वहां कब्जे की तैयारी कर रहा है. चीन अफ्रीकी देशों को भारी कर्ज देकर गुलाम बनाना चाहता है. हालांकि, सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है, क्योंकि अफ्रीकी देशों पर जितना प्रभाव रूस का है, उतना किसी मुल्क का नहीं है. नाइजर में रूस की ताकत की झलकियां तख्तापलट के दौरान दिखीं, जब लोग 'फ्रांस मुर्दाबाद, पुतिन जिंदाबाद' के नारे लगाते हुए देखे गए.


नाइजर में पिछले हफ्ते तख्तापलट हुआ और प्रदर्शनकारियों को रूसी झंडे लहराते हुए देखा गया. हर कोई ये देखकर हैरान था कि रूस से हजारों मील दूर इस मुल्क में लोग उसका झंडा क्यों लहरा रहे हैं. सबसे ज्यादा हैरत तो फ्रांस और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के गठबंधन को हुई, क्योंकि ऐसा ही कुछ एक साल पहले उन्हें नाइजर के पड़ोसी देश माली में देखना पड़ा. 


अफ्रीका में क्या हो रहा है? 


अफ्रीका के ज्यादातर देशों में या तो तानाशाही है या फिर सेना का राज. साहेल क्षेत्र में मौजूद नाइजर में जिस तरह से तख्तापलट हुआ है, वैसे ही कुछ इस क्षेत्र के चार और देशों में भी हुआ. इन मुल्कों में सरकार और पश्चिमी मुल्कों के समर्थन वाले सेनाओं को सत्ता से बाहर किया गया और उनकी जगह देश की कमान मिलिट्री जुंटा को सौंपी गई. सेना का ये धड़ा रूस के साथ करीबी संबंध रखने वाला है. 


महाद्वीप के देशों में लोकतंत्र को स्थापित करने का जिम्मा 'इकोनॉमिक कम्युनिटी ऑफ वेस्ट अफ्रीकन स्टेट्स' (ECOWAS) नाम के एक गठबंधन ने उठाया हुआ है. इसका नेतृत्व नाइजीरिया कर रहा है. ECOWAS का मकसद है कि जिन भी देशों में सेना का शासन चल रहा है, उसे वहां से उखाड़ फेंका जाए, ताकि लोकतंत्र की स्थापना हो सके. ECOWAS का मानना है कि ये ही तरक्की का एकमात्र जरिया है. 


अफ्रीका में रूस की क्या भूमिका है?


यूक्रेन के साथ युद्ध में भले ही रूस पिछड़ता हुआ नजर आए, मगर अफ्रीका में वह पश्चिमी मुल्कों को बड़ी आसानी से पछाड़ रहा है. अफ्रीकन सेंटर की रिसर्च के मुताबिक, अल्जीरिया से लेकर अंगोला तक दो दर्जन देश ऐसे हैं, जहां रूस का प्रभाव है. रूस इन देशों की राजनीति के साथ सैन्य मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है. इससे उसे अपने हिसाब से फैसला करने की ताकत मिली है. 


रूस ने अफ्रीका में कई सारे पॉवरफुल दोस्त बनाए हैं, जिसमें दक्षिण अफ्रीका जैसा देश भी शामिल है. रूस-दक्षिण अफ्रीका की दोस्ती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने मई में मॉस्को को हथियारों की सप्लाई भेजी थी. सिर्फ इतना नहीं, बल्कि उत्तरी अफ्रीका के मुल्कों में तो रूस की तूती बोल रही है और इसकी सबसे बड़ी वजह वैगनर ग्रुप है. 


वैगनर ग्रुप अफ्रीका में क्या कर रहा है?


दरअसल, वैगनर ग्रुप ही अफ्रीका में रूस के लिए सबसे बड़ा खिलाड़ी है. पिछले चार-पांच सालों में वैगनर ग्रुप के हजारों लड़ाकों को अफ्रीका के अलग-अलग देशों में तैनात किया गया है. वैगनर ग्रुप के लड़ाके नाइजर के साथ-साथ पड़ोसी मुल्क माली और बुर्किना फासो में भी तैनात हैं, जो वहां की मिलिट्री जुंटा सरकार की सत्ता पर पकड़ को मजबूत रखने में उसकी मदद कर रहे हैं. 


सूडान, लीबिया, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक जैसे देशों में सेना और वैगनर ग्रुप के लड़ाके मिलकर इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों के साथ लड़ रहे हैं. रूस की तरफ से इन मुल्कों को बड़ी मात्रा में हथियारों की सप्लाई हो रही है. वैगनर के रूप में सुरक्षा करने वाले सैनिक इन देशों के साथ खड़े हैं. कुल मिलाकर रूस वैगनर ग्रुप के जरिए अफ्रीका में अपना प्रभाव तेजी से फैलाते जा रहा है. 


रूस की अफ्रीका में दिलचस्पी की वजह क्या है?


दरअसल, यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस अलग-थलग पड़ा हुआ है. ऐसे में रूस को पश्चिमी मुल्कों के खिलाफ राजनीतिक समर्थन की जरूरत है, जो उसे अफ्रीकी देशों में मिलने वाला है. अफ्रीका के ज्यादातर देशों में जितनी भी सरकारें हैं, वो फ्रांस, अमेरिका जैसे पश्चिमी मुल्कों के सपोर्ट से चल रही हैं. लेकिन यहां की जनता को लगता है कि उनके हालात सुधर नहीं रहे हैं. यही वजह है कि लोग अब रूस का समर्थन कर रहे हैं.


रूस की नजर अफ्रीकी देशों में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों पर भी है. नाइजर में बड़ी मात्रा में यूरेनियम मौजूद हैं. कई सारे देशों ने तो रूस को सुरक्षा के बदले सोने और हीरे की खदानों में खुदाई करने की इजाजत तक दी है. सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक ऐसा ही एक देश है. इसके अलावा अफ्रीका एक बड़ा और बढ़ता हुआ बाजार है. इस वजह से भी रूस अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार करने के लिए इच्छुक है.


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