Seige of Leningrad: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शुक्रवार (13 अक्टूबर) को गाजा पट्टी की घेराबंदी को लेकर इजरायल को चेतावनी दी. उन्होंने इसकी तुलना नाजी जर्मनी के लेनिनग्राद की घेराबंदी से कर दी. रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर को पहले लेनिनग्राद के तौर पर जाना जाता था. इसकी घेराबंदी को इतिहास की सबसे घाटक घेराबंदियों के तौर पर जाना जाता है. 1941 से लेकर 1944 तक चली इस घेराबंदी में 15 लाख लोगों की मौत हुई, जिसमें ज्यादा आम लोग शामिल थे. 


इतिहासकार जब भी लेनिनग्राद घेराबंदी की बात करते हैं, तो वह इसे नाजियों के जरिए किया गया 'नरसंहार' बताते हैं. इसकी वजह ये है कि नाजी जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने यहां लोगों को जानबूझकर भुखमरी से मरने दिया और शहर को बर्बाद करके रख दिया. आइए आज आपको लेनिनग्राद में हुई इस घेराबंदी के बारे में बताते हैं. साथ ही आपको बताते हैं कि पुतिन का इससे एक दुखद कनेक्शन भी है, जिसका जिक्र उन्होंने सार्वजनिक तौर पर किया है. 


क्या है लेनिनग्राद घेराबंदी की कहानी?


दरअसल, लेनिनग्राद घेराबंदी की कहानी 1941 में शुरू हुई, जब हिटलर ने सोवियत यूनियन पर हमला किया. 'ऑपरेशन बारब्रोसा' के तहत हिटलर ने अपने साथी सोवियत यूनियन पर ही चढ़ाई कर दी. हिटलर रूस की पूर्व राजधानी लेनिनग्राद को निशाना बनाना चाहता था. यही वजह थी कि सोवियत अधिकारियों ने नाजी जर्मनी की सेना के पहुंचने से पहले 10 लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया और सोवियत यूनियन की रेड आर्मी के 2 लाख सैनिकों को तैनात किया. 


नाजी जर्मनी को जब लगा कि उसके लिए शहर को जीतना मुश्किल होगा, तो उसने इसकी घेराबंदी कर दी. ये घेराबंदी 8 सितंबर, 1941 से शुरू हुई, जो 27 जनवरी, 1944 को जाकर खत्म हुई. नाजियों ने पूरे 872 दिनों तक लेनिनग्राद शहर को घेरकर रखा. नाजी सेना की तरफ से शहर पर लगातार गोले दागे जाते और वहां अब अकाल जैसी स्थिति पैदा हो गई थी. ऊपर से ठंड से भी लोग परेशान थे. 1942 में अकेले ही लेनिनग्राद में 6.5 लाख लोगों की मौत हो गई. 


ठंड की शुरुआत के साथ जैसे-जैसे तापमान नीचे लुढ़का, वैसे-वैसे लोगों की मौत होने लगी. फरवरी 1942 में हर महीने लेनिनग्राद में 1 लाख लोग मारे जा रहे थे. जब तक रेड आर्मी ने इस घेराबंदी को तोड़ा, तब तक 15 लाख लोग लेनिनग्राद की इस घेराबंदी में जान गंवा चुके थे. इसमें से आधों की मौत तो यहां से भागकर जाने के दौरान हुई. अकेले सेंट पीटर्सबर्ग के पिस्कारियोवस्कॉय कब्रिस्तान में लगभग 4,70,000 नागरिकों और सैनिकों को सामूहिक कब्रों में दफनाया गया था.


नाजियों के अत्याचार ने लोगों को बनाया नरभक्षी! 


लेनिनग्राद में जितने बड़े पैमाने पर लोगों ने जान गंवाई, उतना तो अमेरिका और ब्रिटेन को मिलाकर भी द्वितीय विश्व युद्ध में नुकसान नहीं हुआ था. नाजियों ने एक सिस्टम के तहत लोगों को भुखमरी के कगार पर खड़ा कर दिया. लेनिनग्राद तक आने वाली सप्लाई को नाजी जर्मनी जाने नहीं देती थी. शहर के हालात इतने ज्यादा बिगड़ गए थे कि लोगों को नरभक्षी बनना पड़ा. हजारों लोगों ने जिंदा रहने के लिए मर चुके लोगों के शवों को खाना शुरू कर दिया था. 


क्या है पुतिन का लेनिनग्राद घेराबंदी से कनेक्शन? 


रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का लेनिनग्राद घेराबंदी से निजी कनेक्शन भी है. वैसे तो पुतिन घेराबंदी खत्म होने के छह साल बाद पैदा हुए, मगर उन्होंने इस घटना में अपने भाई को गंवा दिया. पिस्कारियोवस्कॉय कब्रिस्तान में लोगों को याद करने गए पुतिन ने एक बार बताया था, 'मेरा भाई, जिसे न तो मैं जानता हूं और न ही उसे देखा है, मगर वह इसी कब्रिस्तान में दफन है. मुझे ये भी नहीं मालूम है कि उसे कहां दफनाया गया है.'


दरअसल, पुतिन के भाई का नाम विक्टोर पुतिन था, जिसकी महज दो साल की उम्र में साल 1942 में मौत हो गई. बताया जाता है कि विक्टोर की मौत जबरदस्त ठंड और भुखमरी की वजह से हुई है. फर्स्ट पर्सन (2000) नाम की अपनी किताब में पुतिन ने बताया कि उनकी मां तो भुखमरी की वजह मरने की कगार पर खड़ी थीं. उन्हें लाशों के साथ रख भी दिया गया था, मगर वह किसी तरह से जिंदा बच गईं. 


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