Pakistan Navy Crisis: ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान नौसेना गहरे संकट में है. उसका युद्धपोत बेड़ा पुराना हो चुका है, अधिकारियों का मनोबल टूटा हुआ है, और चालू पनडुब्बियों की संख्या बेहद कम है. भारत की बढ़ती नौसैनिक शक्ति के बीच पाकिस्तान की नौसेना पर भारी दबाव साफ दिख रहा है. न्यूज18 के मुताबिक, सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तानी नौसेना की मौजूदगी अब रणनीतिक रूप से अहम अरब सागर में लगभग न के बराबर हो चुकी है. ओपन-सोर्स रिपोर्ट्स और समुद्री निगरानी डेटा से पता चला है कि कराची नौसैनिक अड्डे पर ही ज्यादातर प्रमुख युद्धपोत खड़े हैं और समुद्र में सक्रिय नहीं हैं.
मरम्मत की विफलता और नेतृत्व संकटविशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति का मुख्य कारण मरम्मत की सीमित क्षमता, शिपयार्ड की विफलता, नेतृत्व का संकट और ऑपरेशन सिंदूर के बाद जवानों का गिरा मनोबल है. यह वही ऑपरेशन था जिसमें 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ठिकानों पर निशाना साधा था.
सिर्फ दो चालू पनडुब्बियां, प्रशिक्षण ठपसूत्रों के मुताबिक, फिलहाल पाकिस्तान की नौसेना के पास केवल दो सक्रिय पनडुब्बियां हैं. बाकी सभी बेस पर खड़ी हैं और सक्रिय नहीं हैं. स्थिति इतनी गंभीर है कि नौसेना में प्रशिक्षण के अवसर भी कम हो गए हैं, क्योंकि अधिकांश जहाज लंबे समय तक मरम्मत में लगे रहते हैं.
नौसेना अकादमी से प्रशिक्षण लेकर निकले युवा अधिकारियों को ऐसे जहाज सौंपे जाते हैं जो महीनों से मरम्मत की स्थिति में हैं. इससे एक पूरी पीढ़ी ऐसी तैयार हो रही है, जिसे समुद्र में काम करने का वास्तविक अनुभव नहीं मिल पा रहा, जिससे उनकी दक्षता पर असर पड़ रहा है.
पाकिस्तान के जलक्षेत्र को 'खाली क्षेत्र' मानता है भारतसूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान की नौसेना ने अपने सैन्य अभ्यास या तो रद्द कर दिए हैं या टाल दिए हैं. वहीं, भारतीय नौसेना ने अपने गश्त और अभ्यास का दायरा बढ़ा दिया है और पाकिस्तानी समुद्री क्षेत्र को अप्रतिस्पर्धी क्षेत्र की तरह देख रही है.
मरम्मत संकट की वजह क्या है? पुराना बेड़ा, महंगी मरम्मतपाकिस्तानी नौसेना के प्रमुख सतह-युद्धपोत जैसे Type-21 फ्रिगेट, जो 1990 के दशक में ब्रिटेन की रॉयल नेवी से लिए गए थे, अब अपनी सेवा अवधि से काफी आगे निकल चुके हैं. इन्हें अक्सर और महंगी मरम्मत की जरूरत पड़ती है, लेकिन इनके कल-पुर्जे दुर्लभ और महंगे हो चुके हैं क्योंकि निर्माता कंपनियों ने इन प्रणालियों का उत्पादन बंद कर दिया है.
कई देशों से खरीदे जहाज, अलग-अलग तकनीकपाकिस्तान ने अपने युद्धपोत चीन, तुर्की, अमेरिका और ब्रिटेन से खरीदे हैं. हर जहाज के लिए अलग तकनीकी विशेषज्ञता, अलग कल-पुर्जों का भंडार और विशेष मरम्मत प्रक्रियाएं चाहिए. यह विविधता पाकिस्तान के नौसेना ढांचे पर भारी पड़ रही है.
चीनी युद्धपोतों में तकनीकी समस्याएं2021 से 2023 के बीच मिले चीन के Type-054A फ्रिगेट में रडार और इंजन सिस्टम में बार-बार तकनीकी खराबियां आ रही हैं, जिससे इन्हें अक्सर शिपयार्ड लौटना पड़ता है.
जहाज मरम्मत की क्षमता सीमित, खर्च बढ़ाकराची शिपयार्ड में जरूरी डायग्नोस्टिक उपकरण और चीनी सॉफ़्टवेयर की कमी है, जिससे Type-054A फ्रिगेट की मरम्मत बाधित हो रही है. चीन के साथ तकनीकी सहयोग बनाने की कोशिशें भी महंगी लागत और तकनीकी हस्तांतरण की शर्तों के कारण सफल नहीं हो पा रहीं.
क्या हुआ रणनीतिक असर? अरब सागर में नौसेना नाकामपाकिस्तान की नौसेना यदि अरब सागर में मजबूती से मौजूद नहीं रहती, तो भारत की नौसेना इसे खाली क्षेत्र मानकर अपने अभ्यास और गश्त बढ़ा रही है.
ग्वादर बंदरगाह की रणनीतिक अहमियत घटीग्वादर बंदरगाह और संबंधित परियोजनाओं में चीन ने बड़े निवेश किए हैं. लेकिन यदि पाकिस्तान सुरक्षा नहीं दे सकता, तो इन परियोजनाओं का रणनीतिक मूल्य बहुत घट जाता है.
साझेदार देशों का भरोसा हिलानौसेना अभ्यासों को रद्द करने और जहाजों की अनुपलब्धता ने पाकिस्तान की छवि को एक अविश्वसनीय रक्षा साझेदार के रूप में नुकसान पहुंचाया है.