पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस गाजी (PNS Ghazi) का 53 साल बाद विशाखापत्तनम तट पर मलबा मिला है. यह पनडुब्बी 1971 में भारत और पाकिस्तान युद्ध के दौरान डूब गई थी. पाकिस्तान ने इसे गुपचुप तरीके से भारतीय विमानवाहक पोत INS विक्रांत को खत्म करने के लिए भेजा था, लेकिन पाकिस्तान का इससे संपर्क भी टूट गया और यह डूब गई.


यूरेशियन टाइम्स ने बताया कि भारतीय नौसेना के डीप सबमर्जेंस रेस्क्यू व्हीकल (DSRV) ने पीएनएस गाजी का मलबा ढूंढा. इंडियन आर्मी के एक सेवारत अधिकारी ने इसकी पुष्टि की कि विशाखापत्तन के तट से कुछ मील दूर डूबी पाकिस्तानी पनडुब्बी का मलबा मिला है. इसे स्कैन किया गया, लेकिन शहीद नौसैनिकों के सम्मान की परंपरा को ध्यान में रखते हुए इसे अछुता ही छोड़ दिया गया.


DSRV ने ढूंढा पीएनएस गाजी का मलबा
भारत उन 6 देशों में शामिल है, जिसके पास डीएसआरवी तैनात करने की क्षमता है. भारत ने इन वाहनों को 2018 और 2019 में लीज पर लिया था. भारतीय नौसेन ने चल रहे मिलान अभ्यास के दौरान अपनी डीएसआरवी क्षमता का प्रदर्शन किया. पीएनएस गाजी पर 93 लोग सवार थे.


PNS Ghazi के डूबने की पूरी कहानी क्या है?
ये बात 1971 में भारत और पाकिस्तान के युद्ध के दौरान की है. 14 से 22 नवंबर के बीच पाकिस्तान ने बिना बताए अपनी कई पनडुब्बयों को भारत की तरफ भेजा. इन पनडुब्बियों को भारत के पश्चिमी क्षेत्र को कवर करने वाले गश्ती क्षेत्र में भेजा गया था, लेकिन पीएनएस गाजी को आईएनएस विक्रांत का पता लगाने के लिए बंगाल की खाड़ी में उतारा गया. आईएनएस विक्रांत पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश बन चुका है, को पश्चिमी पाकिस्तान से अलग करते हुए पूर्वी मोर्चे पर नौसैनिक नाकाबंदी कर रहा था.


पाकिस्तानी नौसेना इतिहास अनुभाग की पुस्तक 'स्टोरी ऑफ पाकिस्तान नेवी: 1947-1972' में कहा गया है कि पीएनएस गाजी को भेजना देश की योजना का मूल हिस्सा नहीं था, बल्कि पूर्वी कमान को मजबूत करने के लिए मिलिट्री हाईकमान के आग्रह पर उठाया गया कदम था. हालांकि, भारत में इसको एक रणनीतिक कदम माना गया क्योंकि दुश्मन के नियंत्रण वाले पानी में मिशन को अंजाम देने की रेंज और क्षमता का यह पाकिस्तान के पास एकमात्र जहाज था.


इंडियन आर्मी ने PNS Ghazi को फंसाने के लिए चली ये चाल
14 नवंबर को पनडुब्बी करांची बंदरगाह से रवाना हुई और इसके कमांडर जफर मोहम्मद खान थे. पनडुब्बी की 26 नवंबर को वापसी की उम्मीद थी, लेकिन जब तय समय पर पनडुब्बी की वापसी नहीं हुई तो पाक नौसेना के मुख्यालय से संपर्क स्थापित किया गया, लेकिन सारी कोशिशें नाकाम हो गईं. यही समय था जब भारत को पीएनएस गाजी के बारे में पता चला. 9 दिसंबर को नौसेना हेडक्वार्टर ने पनडुब्बी के डूबने का संदेश भेजा और पनडुब्बी के डूबने की जानकारी दी. 


अब भारतीय नौसेना ने पीएनएस गाजी को फंसाने के लिए चाल चली और आईएनएस विक्रांत को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया. सेकंड वर्ल्ड वॉर के पुराने आईएनएस राजपूत को रिटायर करके विशाखापत्तनम भेजा जाना था. ऐसे में नेवी ने इसको आईएनएस के तौर पर पेश किया और भारी वायरलेस ट्रैफिक उत्पन्न किया गया.


नेवी ने आईएनएस राजपूत, जिसे विक्रांत के तौर पर प्रस्तुत किया गया, पर एक नाविक को निजी टेलीग्राम से सिग्नल भेजकर जानबूझकर उसकी मां की तबियत के बारे में बात की. ये सुरक्षा प्रोटोकॉल का उल्लंघन था, लेकिन ऐसा पीएनएस गाजी को फंसाने के लिए जानबूझकर किया गया. गाजी इसमें फंस गई और विक्रांत की तलाश शुरू कर दी. तब तक देर हो चुकी थी और यह डूब गई. भारतीय नौसेना का दावा है कि उसके टॉरपीडो के कारण पनडुब्बी डूबी, जबकि पाकिस्तान का कहना है कि बारूदी सुरंगों के विस्फोट के कारण पनडुब्बी डूब गई.


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