ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक कोविड-19 के खिलाफ अपनी सफलता को देखते हुए एचआईवी वैक्सीन का परीक्षण कर रहे हैं. इस सप्ताह शुरू हुए मानव परीक्षण के प्रथम चरण में 18-65 साल वाले 13 एचआईवी-निगेटिव व्यस्कों को शामिल किया जाएगा क्योंकि उनको संक्रमण का ज्यादा जोखिम वाला नहीं समझा जाता है. इस दौरान प्रतिभागी शुरू में एचआईवी वैक्सीन का एक डोज लेंगे और फिर चार सप्ताह बाद उनको एक अतिरिक्त बूस्टर डोज दिया जाएगा.


वैज्ञानिक फिर उनका ब्लड सैंपल उनके इम्यून रिस्पॉन्स की मॉनिटरिंग करने के लिए लेंगे और पता लगाएंगे कि क्या वैक्सीन सुरक्षित है और एचआईवी संक्रमण को रोक सकती है. एचआईवी की वैक्सीन बनाने के लिए पूर्व के प्रयास नाकाम साबित हुए थे क्योंकि वायरस तेजी से बदलता है. लेकिन नई वैक्सीन वायरस को निशाना बनाएगी. एचआईवी-पॉजिटिव व्यस्कों को बाद में परीक्षण का हिस्सा बनाया जाएगा.


HIV के लिए HIVconsvX वैक्सीन का परीक्षण किया शुरू


मानव परीक्षण यूरोपीय एड्स वैक्सीन पहल HIV-CORE 0052 का हिस्सा है. ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोगात्मक रिसर्च प्रोजेक्ट है जिसको यूरोपीय आयोग फंडिंग कर रहा है. पहले चरण के मानव परीक्षण के नतीजे अगले साल अप्रैल में आने की उम्मीद है, अगर नतीजे हौसला बढ़ानेवाले रहे, तो मानव परीक्षण को बड़े पैमाने पर आगे भी किया जाएगा. एचआईवी के खिलाफ नई वैक्सीन का नाम HIVconsvX रखा गया है. वैक्सीन के असर की जांच केन्या, जॉम्बिया और यूगांडा में भी की जाएगी, जहां एचआईवी सबसे व्यापक है. एचआईवी की ज्यादातर वैक्सीन उम्मीदवार बी-सेल्स के जरिए पैदा एंटीबॉडीज को प्रेरित करती हैं.


कोविड-19 वैक्सीन बनानेवाले वैज्ञानिकों का बड़ा कदम


लेकिन नई HIVconsvX वैक्सीन इम्यून सिस्टम के टी-सेल्स को ट्रिगर करती है, जो शक्तिशाली हैं और रोगजनकों को नष्ट करती हैं. नई वैक्सीन का निर्माण वायरस के एक ऐसे एरिया को निशाना बनाने के लिए किया गया है जो शायद ही कभी बदलता है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने कहा है कि उसकी वैक्सीन उम्मीदवार एड्स महामारी को खत्म करने का 'सबसे अच्छा हल' है. ऑक्सफोर्ड के जेनेर इंस्टीट्यूट के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर टोमस हानके ने बताया कि वैक्सीन को बनाने में 40 साल हो गए. इन 40 वर्षों में जबसे वायरस का पता चला, करीब 5 वैक्सीन का परीक्षण किया गया है. शोधकर्ताओं का कहना है कि एचआईवी के खिलाफ सुरक्षा पाना काफी चुनौतीपूर्ण है और जरूरी है कि हम एंटीबॉडी और इम्यून सिस्टम के रक्षक टी-सेल्स दोनों की सुरक्षात्मक क्षमता को मजबूत करें.


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