पश्चिमी देशों में अक्सर बौद्ध धर्म को ध्यान और मन-शरीर की साधना से जोड़ा जाता है, लेकिन कंबोडिया, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों में बौद्ध धर्म का महत्व कहीं अधिक गहरा है. यहां बौद्ध होना सिर्फ़ व्यक्तिगत आस्था का विषय नहीं बल्कि राष्ट्रीय पहचान का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है.
2022 के प्यू रिसर्च सेंटर सर्वेक्षण के अनुसार, इन देशों में दस में से नौ बौद्ध मानते हैं कि सच्चे नागरिक होने के लिए बौद्ध धर्म से जुड़ाव आवश्यक है. उदाहरण के लिए, श्रीलंका में 95% बौद्ध मानते हैं कि सच्चे श्रीलंकाई होने के लिए बौद्ध होना जरूरी है. इससे यह स्पष्ट होता है कि इन देशों में बौद्ध धर्म केवल धर्म नहीं, बल्कि जीवनशैली, संस्कृति और परंपरा का गहरा हिस्सा है.
धर्म, संस्कृति और पारिवारिक परंपरा का संगमकंबोडिया, श्रीलंका और थाईलैंड में लोग बौद्ध धर्म को केवल एक धर्म नहीं मानते, बल्कि इसे संस्कृति, पारिवारिक परंपरा और जातीय पहचान के रूप में देखते हैं. इन देशों में अधिकांश लोग बौद्ध धर्म को अपनी राष्ट्रीय संस्कृति का मूल मानते हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी इसे अपनाना परिवार का कर्तव्य माना जाता है. उदाहरण के तौर पर 76% कंबोडियाई बौद्ध मानते हैं कि बौद्ध धर्म एक जातीय पहचान है , जिसमें कोई जन्म लेता है. इस प्रकार, धर्म और संस्कृति का यह गहरा संगम राष्ट्रीय एकता और पहचान को मजबूत करता है.
संवैधानिक और कानूनी मान्यताकंबोडिया, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों के संविधान और कानून भी बौद्ध धर्म की महत्ता को दर्शाने का काम करते हैं. कंबोडिया के संविधान में बौद्ध धर्म को राष्ट्रीय धर्म माना जाता है और राज्य को बौद्ध शिक्षा का समर्थन करने की जिम्मेदारी का एहसास दिलाता है. श्रीलंका के संविधान बौद्ध धर्म को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और सरकार को इसके संरक्षण और संवर्धन को दायित्व मानती है. थाईलैंड में बने नवीनतम संविधान के तहत राज्य को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई है कि बौद्ध धर्म किसी भी रूप में कमजोर न हो. यह संवैधानिक मान्यता बताती है कि बौद्ध धर्म सिर्फ़ आस्था का विषय नहीं बल्कि शासन और नीति का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है.
राजनीति और धार्मिक नेताओं की भूमिकासर्वेक्षण से पता चलता है कि इन देशों में नागरिक धार्मिक नेताओं की राजनीतिक भागीदारी पर भी मिश्रित विचार रखते हैं.कंबोडिया में 81% बौद्ध मानते हैं कि धार्मिक नेताओं को मतदान करने का अधिकार होना चाहिए. श्रीलंका और थाईलैंड में अपेक्षाकृत कम समर्थन मिला है, जो 66% और 54% है.हालांकि, थाईलैंड के संविधान में भिक्षुओं को मतदान करने की आजादी नहीं है, जो धर्म और राजनीति के बीच स्पष्ट विभाजन का उदाहरण है. फिर भी, कंबोडिया में लगभग आधे बौद्ध चाहते हैं कि धार्मिक नेता राजनीतिक विरोध प्रदर्शन में भाग लें या स्वयं नेता बनें.