नेपाल की राजधानी काठमांडू में सोमवार (8 सितंबर 2025) को जिस तरह का प्रदर्शन हो रहा है वह बांग्लादेश में पिछले साल हुए तख्तापलट की याद दिला रहा है. नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे पर मांग की जा रही है. नेपाल के युवा सोशल मीडिया पर पोस्ट कर पीएम ओली से इस्तीफा मांग रहे हैं. काठमांडू में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में अब तक 21 लोगों की मौत हो चुकी है.
काठमांडू सहित कई शहरों में लगा कर्फ्यू
काठमांडू में अचानक विरोध प्रदर्शन शुरू हआ, जिसमें 26 साल से कम उम्र के युवा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध और भ्रष्टाचार के विरोध में सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच बात इतनी बिगड़ गई कि सुरक्षाबलों के गोली तक चलानी पड़ी. काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक झड़प के बाद काठमांडू के अलावा बुटवल और भैरहवा शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है.
युवाओं में इतना गुस्सा था कि वे नेपाल की संसद में घुसने लगे, जिसके बाद भीड़ को तितर बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस और रबर की गोलियां चलाई. बांग्लादेश में पिछले साल अगस्त में प्रदर्शनकारी युवा प्रधानमंत्री आवास में घुस गए थे. उस समय ढाका सहित दूसरे राज्यों में ऐतिहासिक इमारतों को गिरा दिया गया था.
चीन के करीबी रहे हैं केपी शर्मा ओली
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली चीन के काफी करीबी रहे हैं. वह नेपाल में चीन जैसा सेंसरशिप लागू करना चाहते हैं. उन्होंने फेसबुक, व्हाट्सएप, एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन भ्रष्टाचार को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की.
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक काठमांडू जिला कार्यालय के प्रवक्ता मुक्तिराम रिजाल ने बताया कि स्थिति पर काबू पाने के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया, जो स्थानीय समयानुसार रात 10 बजे तक लागू रहेगा. उन्होंने बताया कि भीड़ पर काबू पाने के लिए पानी की बौछारें, लाठियां और रबर की गोलियों का इस्तेमाल करने के आदेश दिए गए थे.
नेपाल में भी तख्तापलट का बांग्लादेशी मॉडल?
भारत के जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्ट सुशांत शरीन ने नेपाल में हो रहे प्रदर्शन को बांग्लादेश और श्रीलंका में हुए प्रोटेस्ट से जोड़ा है. उन्होंने एक्स पर पोस्ट कर कहा, "अब नेपाल की बारी है. क्या हमसे कुछ चूक हो गई है कि सड़कों पर गुस्से का ये जबरदस्त विस्फोट दिखाई दे रहा है. बस एक चिंगारी की जरूरत है। हमने इसे श्रीलंका, बांग्लादेश और अब नेपाल में देखा. इंडोनेशिया और म्यांमार में भी ऐसे आंदोलन तेज हो रहे हैं. हमने इसे किसान आंदोलन और शाहीन बाग के दौरान देखा."
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