तालिबानी कब्जे के बाद आखिरकार अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी पूरी हो गई है.  इसके साथ ही युद्धग्रस्त देश में अमेरिकी सेना के 20 साल के सफर का अंत हो गया है. यूएस सेंट्रल कमांड के कमांडर केनेथ मैकेंजी ने कहा कि एयरफोर्स के आखिरी सी-17 विमान ने 30 अगस्त को काबुल हवाईअड्डे से उड़ान भरी. पिछले 20 सालों में अलग-अलग लड़ाईयों में अमेरिका ने अपने 2461 सैनिकों को खो दिया. जानिए 20 सालों में अफगानिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी में क्या क्या हुआ.


साल 2001


तालिबान का विरोध करने वाले उत्तरी गठबंधन के कमांडर अहमद शाह मसूद की अल-कायदा के गुर्गों ने हत्या की. पंजशीर के शेर के रूप में जाने जाने वाले मसूद की हत्या तालिबान विरोधी प्रतिरोध के लिए एक गंभीर झटका थी. आतंकवाद विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी हत्या के बाद तालिबान ने ओसामा बिन लादेन को सुरक्षा प्रदान करने का आश्वासन दिया था.


सितंबर 2001



  • 9/11 हमला


अमेरिका में हुए इन हमलों के लिए अल कायदा के 19 आतंकियों ने चार विमान हाइजैक किए. इनमें से दो विमानों को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के टॉवर्स से टकरा दिया, जबकि तीसरे विमान से पेंटागन पर हमला किया गया. एक विमान पेंसिलवेनिया में क्रैश हो गया था. इस हमले में करीब तीन हजार लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ड बुश ने अल कायदा को पनाह देने के लिए तालिबानियों को सजा देने का फैसला किया.


दिसंबर 2001


हमलों के बाद दिसंबर 2001 में 9/11 हमलों का मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन को काबुल के दक्षिण-पूर्व में टोरा बोरा गुफा में ट्रैक किया गया. इस दौरान इलाके में अफगान सेना और अल कायदा के आतंकियों के बीच लड़ाई होती है और ओसामा बिन लादेन घोड़े पर सवार होकर पाकिस्तान भाग जाता है.


अक्टूबर और दिसंबर 2001 के बीच में अमेरिका और उसके सहयोगियों ने अफ़गान उत्तरी गठबंधन के साथ मिलकर तालिबान को सत्ता खदेड़ दिया. तालिबान के जाने के बाद अफ़गान के नागरिक नेता जर्मनी के बॉन में मिले और इसके बाद दो साल के लिए राष्ट्रपति हामिद करज़ई की अध्यक्षता में एक सरकार का गठन कर दिया गया.


मार्च 2002


लगभग दो हजार अमेरिकी और एक हजार अफगान सैनिकों ने गार्डेज़ शहर के दक्षिण में शाह-ए-कोट घाटी में आठ सौ अल-कायदा और तालिबान लड़ाकों के खिलाफ ‘ऑपरेशन एनाकोंडा’ के तहत पहला बड़ा जमीनी हमला किया.


अप्रैल 2002


तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने वर्जीनिया सैन्य संस्थान में अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण का आह्वान किया. इसके बाद अमेरिकी कांग्रेस ने 2002 से 2009 तक अफगानिस्तान को मानवीय और पुनर्निर्माण सहायता में 38 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च करने की योचना बनाई.


जनवरी 2004


अफगानिस्तान का नया संविधान बनाया गया. नए संविधान को लोकतंत्र की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा गया. 502 अफगान प्रतिनिधियों की एक सभा ने अमरिका और उसके अंतरराष्ट्रीय भागीदारों की तरफ से लोकतांत्रिक संस्थानों की नींव रखने के साथ साथ राष्ट्रीय चुनावों के लिए एक रूपरेखा तैयार की.


अक्टूबर 2004


देश में अक्टूबर महीने में राष्ट्रपति चुनाव में हामिद करजई अफगानिस्तान के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए पहले राष्ट्रपति बने. हिंसा की धमकियों के बावजूद मतदाताओं ने बड़ी संख्या में उनके पक्ष में मतदान किया.


मई 2005


अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने एक संयुक्त बयान में दोनों देशों को रणनीतिक साझेदार होने की घोषणा की. इस दौरान घोषणा की गई कि अमेरिकी सेना आतंकवाद के खिलाफ युद्ध और हिंसक चरमपंथ के खिलाफ अफगान को सैन्य सुविधाएं प्रदान करेगी.


मई 2007


अफगानिस्तान के दक्षिण में अफगान, अमेरिका और नाटो बलों के संयुक्त अभियान में तालिबान सैन्य कमांडर मुल्ला दादुल्ला मारा गया. माना जाता है कि दादुल्ला हेलमंद गुरिल्ला बलों का नेता था, आत्मघाती हमलावरों को तैनात करता था और पश्चिमी लोगों के अपहरण का आदेश देता था.


फरवरी 2009


नए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अफगानिस्तान में 17 हजार और सैनिक भेजने की योजना की घोषणा की. अगले ही महीने राष्ट्रपति ओबामा ने अफगानिस्तान के लिए एक नई रणनीति की घोषणा की. रणनीति के मुताबिक, अमेरिका पाकिस्तान में अल कायदा और उसके सुरक्षित ठिकानों को नष्ट करेगा और पाकिस्तान या अफगानिस्तान में उनकी वापसी को रोकेगा.


नवंबर 2009


इसी साल 20 अगस्त को हुए विवादित राष्ट्रपति चुनाव के करीब दो महीने बाद यानि नवंबर में राष्ट्रपति हामिद करजई ने फिर देश की सत्ता संभाली. इस चुनाव में करजई को शीर्ष दावेदार अब्दुल्ला अब्दुल्ला और अशरफ गनी के खिलाफ खड़ा किया गया था. हालांकि उनपर धोखाधड़ी के आरोपों लगाए गए.


मई 2011


एक मई 2011 को अल-कायदा नेता और न्यूयॉर्क और वाशिंगटन में 9/11 के हमलों के लिए जिम्मेदार ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी सेना ने पाकिस्तान में मार गिराया. इस दौरान पाकिस्तान पर आतंकियों के पनाह देने के आरोप लगने शुरू हुए.


जून 2011


राष्ट्रपति ओबामा ने 2012 की गर्मियों तक 33 हजार सैनिकों को अफनिस्तान से वापस लाने की घोषणा की. हालांकि करीब 70 हजार अमेरिकी सैनिक साल 2014 तक वहीं रुकने वाले थे. इसी दौरान अमेरिका ने तालिबान नेतृत्व के साथ प्रारंभिक शांति वार्ता शुरू की.


जून 2013


नाटो की तरफ से अफगान सेना को 90 जिलों पर नियंत्रण करने की घोषणा की गई. इसके बाद देश के सभी इलाकों पर पूरी तरह से अफगान सेना का कब्जा हो गया. इस दौरान अमेरिकी सौनिकों ने अफगान सेना को ट्रेनिंग दी.


मई 2014


राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2016 के आखिर तक अफगानिस्तान से अधिकांश अमेरिकी बलों को वापस लेने के लिए एक टाइम टेबल की घोषणा की. पहले चरण में 9,800 अमेरिकी सैनिकों को 2014 के आखिर तक देश वापस आने के लिए कहा गया.


सितंबर 2014


नवनिर्वाचित राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी अब्दुल्ला अब्दुल्ला के साथ सत्ता-साझाकरण समझौते पर हस्ताक्षर किए. अब्दुल्ला अब्दुलाल ने चुनाव परिणामों को चुनौती देने के लिए हजारों प्रदर्शनकारियों को लामबंद किया था.


अप्रैल 2017


नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में अमेरिका ने अपने सबसे शक्तिशाली गैर-परमाणु बम को पूर्वी नंगरहार प्रांत में इस्लामिक स्टेट के संदिग्ध आतंकवादियों पर एक गुफा परिसर में गिराया. इस हथियार को बोलचाल की भाषा में ‘मदर ऑफ ऑल बम’ के रूप में जाना जाता है.


फरवरी 2020


29 फरवरी 2020 को अमेरिका और तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में चल रहे लगभग दो दशकों के युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसे अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी शांति की दिशा में पहला कदम कहा जा रहा था. समझौते के तहत अमेरिका 14 महीने में अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमत हुआ था.


नवंबर 2020


अमेरिका के रक्षा सचिव क्रिस्टोफर सी. मिलर ने जनवरी 2021 के मध्य तक अफगानिस्तान में सैनिकों की संख्या को आधा करने की योजना की घोषणा की ये घोषणा उन्होंने जो बिडेन के राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने से कुछ दिन पहले की थी.


अप्रैल 2021


इसी साल अप्रैल में राष्ट्रपति जो बिडेन ने यूएस-तालिबान समझौते के तहत अपने सभी सैनिकों को 11 सितंबर 2021 तक पूर्ण रूप से अफगानिस्तान छोड़ने की घोषणा की.


अगस्त 2021


अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बीच तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. इस दौरान देश में अफरा तफरी मच गई. अफगान समेत भारत-अमेरिका जैसे कई देशों के नागरिक देश छोड़ने को मजबूर हो गए. जिसके बाद सभी देशों ने काबुल से अपने नागरिकों को निकालना शुरू किया.


31 अगस्त 2021


आज 20 साल बाद अमेरिका ने अपने सैनिकों को वहां से पूरी तरह निकाल लिया है. अमेरिका ने अपने सैनिकों की वापसी, अमेरिकी नागरिकों और अफगान नागरिकों को वहां से निकालने के लिए सैन्य मिशन खत्न करने की भी घोषणा कर दी. काबुल हवाईअड्डे से देर रात तीन बजकर 29 मिनट (ईस्टर्न टाइम ज़ोन) पर आखिरी विमानों ने उड़ान भरी.


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