नेपाल के मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस (एनसी) ने प्रधानमंत्री पद पर दावा पेश करने का फैसला किया है. इससे एक दिन पहले राष्ट्रपति ने राजनीतिक पार्टियों से गुरुवार यानि आज नई सरकार गठन करने के लिए कहा था क्योंकि के पी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार विश्वास मत हार चुकी है. शेर बहादुर देउबा ने नयी सरकार के गठन का रास्ता तलाश करने के लिए मंगलवार को विपक्षी नेताओं के साथ बैठक भी की थी.  इस बैठक में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी माओइस्ट सेंटर (सीपीएन-एमसी) के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ और जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल (जेएसपीएन) के द्वितीय अध्यक्ष उपेंद्र यादव शामिल हुए.


नए प्रधानमंत्री के तौर पर देउबा को समर्थन देने पर बंटे हुए हैं JSPN सदस्य


 राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के कार्यालय ने सोमवार को कहा था कि उन्होंने नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 76 (2) के तहत बहुमत वाली सरकार बनाने के लिए पार्टियों को आमंत्रित करने का फैसला किया है. प्रचंड ने संकेत दिया है कि उनकी पार्टी प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने पर देउबा का समर्थन करेगी. हालांकि, 271 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 32 सीटों वाली जेएसपीएन के सदस्य नए प्रधानमंत्री के तौर पर देउबा को समर्थन देने के मुद्दे पर बंटे हुए हैं. प्रतिनिधि सभा में 61 सीटों के साथ नेपाली कांग्रेस और 49 सीटों वाली माओइस्ट सेंटर बिना जेएसपी-एन के समर्थन के बहुमत वाली सरकार नहीं बना सकती. हालांकि जेएसपी-एन के द्वितीय अध्यक्ष ने देउबा की उम्मीदवारी को समर्थन देने का आश्वासन दिया है जबकि पार्टी के प्रथम अध्यक्ष महंत ठाकुर इस विचार के खिलाफ हैं.


JSPN के महंतठाकुर धड़े के 15 सांसद विश्वास मत के दौरान तटस्थ रहे


 जेएसपी-एन के महंत ठाकुर और राजेंद्र महतो की अगुवाई वाले धड़े के 15 सांसद सोमवार को हुए विश्वास मत के दौरान तटस्थ रहे थे और उन्होंने अभी इस बात का फैसला नहीं किया है कि वे एनसी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार का समर्थन करेंगे या नहीं. अगर जेएसपी-एन एनसी का समर्थन नहीं करती है तो पार्टी यूएमएल के नेपाल-खनाल गुट के 28 सांसदों को इस्तीफा देने के लिए प्रभावित करने की कोशिश करेगी. इस स्थिति में सदन की क्षमता घटकर 243 रह जाएगी और एनसी तथा सीपीएन-एमसी, उपेंद्र यादव और बाबुराम भट्टराई के प्रति निष्ठा रखने वाले जेएसपी-एन के 15 सांसदों के साथ मिलकर सरकार बना सकेंगी.


किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत ने मिलने पर राष्ट्रपति के पास है ये अधिकार


 


 अनुच्छेद 76 (2) के तहत अगर सदन में किसी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है तो राष्ट्रपति सदन के किसी सदस्य को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकते हैं जो प्रतिनिधि सभा की दो या अधिक पार्टियों से बहुमत जुटा सकता है. अगर सदन अनुच्छेद 76 (2) के तहत सरकार बनाने में नाकाम रहता है या इस प्रावधान के तहत नियुक्त प्रधानमंत्री 30 दिन के अंदर विश्वास्त मत हासिल करने में विफल रहता है तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 76 (3) लागू कर सकते हैं.उस स्थिति में ओली एक बार फिर सरकार बनाने का दावा कर सकते हैं. ओली सदन में सबसे बड़ी पार्टी के नेता हैं. अगर ओली को संविधान के तहत नियुक्त किया जाता है तो उन्हें नियुक्ति की तारीख से 30 दिन के भीतर विश्वास मत जीतना होगा.


नेपाल में 20 दिसंबर को छाया था राजनीतिक संकट


बता दें कि नेपाल में पिछले साल 20 दिसंबर को तब राजनीतिक संकट गहरा गया था जब प्रधामंत्री ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने प्रतिनिधि सभा को भंग करने और चुनाव कराने की घोषणा की थी. ओली ने सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में सत्ता को लेकर गतिरोध के बीच यह सिफारिश की थी. शीर्ष अदालत ने फरवरी में सदन को भंग करने के फैसले को खारिज करते हुए उसे बहाल कर दिया था.