डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका और भारत के बीच विश्वास का संकट गहराता जा रहा है. हाल ही में अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर 50% का भारी टैरिफ लगा दिया, जो एशिया में किसी भी देश पर सबसे ऊंचा है और दुनिया में ब्राजील के साथ टॉप पर है. यह कदम सीधे भारत की अर्थव्यवस्था और व्यापारिक हितों पर प्रहार के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन यह तनाव केवल आर्थिक नीतियों तक सीमित नहीं है.
रूस के साथ भारत की दोस्ती और पाकिस्तान के साथ हुए सैन्य संघर्ष पर ट्रंप की आक्रामक टिप्पणियों ने भी संबंधों में खटास बढ़ा दी. उन्होंने रूस और भारत की अर्थव्यवस्थाओं को "डेड इकनॉमी" कहा, जबकि उनके सहयोगी पीटर नवारो ने तो यहां तक कह दिया कि यूक्रेन युद्ध, मोदी का युद्ध है.
इजरायल के प्रमुख अखबार यरुशलम पोस्ट में एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें लिखा गया कि इजरायल मोदी से क्या सीख सकता है. इसमें कहा गया कि ट्रंप के अभूतपूर्व मौखिक हमलों का सामना करते हुए मोदी ने माफी मांगने या झुकने के बजाय राष्ट्रीय सम्मान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी. लेख के अनुसार, यह भारत का साफ संदेश था कि वह किसी भी स्थिति में अधीनस्थ राज्य की तरह व्यवहार स्वीकार नहीं करेगा. इजरायल ने अपनी सेना की ओर से खान यूनिस पर हमले में पत्रकारों की मौत पर माफी मांग ली थी, जिसे अखबार ने आलोचना के तौर पर पेश किया.
ट्रंप के दबाव के सामने भारत का अडिग रुख
भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद जहां पाकिस्तान ट्रंप के बुलावे पर तुरंत व्हाइट हाउस पहुंच गया, वहीं भारत ने अलग रास्ता अपनाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप के चार बार फोन करने और औपचारिक आमंत्रण भेजने के बावजूद वॉशिंगटन न जाने का विकल्प चुना. इस फैसले ने न केवल भारत की स्वतंत्र कूटनीतिक स्थिति को मजबूती दी, बल्कि यह भी दिखा दिया कि भारत किसी भी महाशक्ति के सामने झुकने को तैयार नहीं है. इस कदम की सराहना दुनिया भर में हो रही है, खासकर इजरायल में, जहां मीडिया और विश्लेषकों ने भारत के दृढ़ रुख को एक उदाहरण के रूप में पेश किया.
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