पचास साल पहले 6 अक्टूबर, 1973 को इजरायल पर अब तक का सबसे बड़ा हमला हुआ था. हमले से इजरायल बुरी तरह कांप गया था. इस घटना के ठीक 50 साल बाद एक बार फिर इजरायल हमलों से हिल गया है. 7 अक्टूबर, 2023 को जब गाजा पट्टी से 20 मिनट में 5000 रॉकेट दागे गए तो पूरा इजरायल कांप गया. लोग दहशत में आ गए और सैकड़ों की जान चली गई. ऐसे में सवाल उठा कि दुनिया की सबसे ताकतवर खुफिया एजेंसियों में शुमार इजरायली एजेंसी मोसाद और उसका एंटी रॉकेट मिसाइल सिस्टम हमले को रोकने में फेल कैसे हो गए. 


इजरायल के एयर डिफेंस सिस्टम 'आयरन डोम' का लोहा पूरी दुनिया मानती है. 90 प्रतिशत की एकुरेसी और दुश्मन मिसाइल का पता लगाकर उसका हवा में ही खात्मा करने के लिए मशहूर आयरन डोम इस बार हमास के हमलों को रोकने में असमर्थ हो गया. मई, 1948 में इजरायल की स्थापना के अगले ही दिन फलस्तीन समेत मिस्त्र, लेबनान, जॉर्डन और सीरिया जैसे देशों ने उस पर हमला बोल दिया, जिसका इजरायल ने भी मुंह तोड़ जवाब दिया. बाद में भी इस तरह के हमले होते रहे. ऐसे हमलों से निपटने के लिए इजरायल ने अपनी सीमाओं और डिफेंस सिस्टम को मजबूत करना शुरू कर दिया. आयरन डोम इजरायल के डिफेंस सिस्टम के सबसे ताकतवर हथियारों में से एक है. एंटी ड्रोन सिस्टम तो और भी देशों के पास हैं, लेकिन इजरायल का सिस्टम सबसे ताकतवर माना जाता है. 


आयरन डोम की लागत
रिपोर्ट्स के मुताबिक, दुश्मन मिसाइल और रॉकेटों को हवा में ही मार गिराने वाले इजरायल के सुरक्षा कवच आयरन डोम की लागत 3 लाख करोड़ रुपये के आस पास है. इसकी इंटरसेप्शन रेंज की बात करें तो यह 2.5 मील से 45 मील तक है. साल 2021 में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन संस्थान ने रिपोर्ट शेयर करके बताया था कि इजरायल के पास जो इंटरसेप्टर हैं उनकी लागत 1 लाख डॉलर है, जबकि एक इंटरसेप्टर की लागत 50,000 डॉलर है. इंटरसेप्टर ही दुश्मन मिसाइल का खात्मा करता है. मतलब अगर इजरायल हमास के सभी 5,000 रॉकेटों को मार गिराता तो उसकी लागत आती- 2,079 करोड़ रुपये. वहीं, हमास की मिसाइलों की बात करें तो इसके पास कासम रॉकेट हैं, जिनकी लागत 300 से 800 डॉलर है, यानी 25 हजार से 90 हजार के बीच हमास अपने एक रॉकेट को बनाने में खर्च करता है. इस हिसाब से हमास की एक मिसाइल को रोकने के लिए इजरायल लाखों रुपये खर्च कर देता है. द न्यू अरब ने इजरायली एक्सर्ट्स के हवाले से बताया कि हमास एक मिनट में करीब 140 मिसाइलें दाग सकता है. 


कैसे काम करता है आयरन डोम?
आयरन डोम के काम करने के तरीके में तीन मुख्य चीजें शामिल हैं. पहला- दुशमन मिसाइल की पहचान और ट्रैकिंग, दूसरा- युद्ध प्रबंधन और हथियार नियंत्रण और तीसरा- मिसाइल दागना. जैसे ही दुश्मन अपना इजरायल की तरफ रॉकेट दागता है तो आयरन डोम रडार सिस्टम की मदद से उसे पहचानता है और ट्रैक करता है. इसके बाद कंट्रोल सिस्टम इम्पैक्ट पॉइंट का पता करता है कि अगर रॉकेट गिरा को कितना नुकसान करेगा और उसको हवा में मार गिराएं तो कितनी दूरी तक इसका प्रभाव होगा. इसके बाद कंट्रोल सिस्टम से कमांड मिलने पर लॉन्चर से मिसाइल दागी जाती है. इसी मिसाइल को इंटरसेप्टर कहते हैं. मिसाइल रॉकेट के पास जाकर फट जाती है और इससे दुश्मन मिसाइल और इंटरसेप्टर दोनों ध्वस्त हो जाते हैं. इजरायल में इंटरसेप्टर को तामीर कहकर बुलाया जाता है.


इस बार क्यों फेल हो गया आयरन डोम
आयरन डोम 90 प्रतिशत एकुरेसी के साथ काम करता है. मतलब अगर उसकी तरफ एक साथ 100 मिसाइलें आईं तो वह 90 को हवा में ही नष्ट कर देगा. साल 2011 में इजरायल ने इसे तैनात किया था. हिजबुल्लाह आतंकियों के हमले के बाद साल 2006 में इजरायल ने आयरन डोम बनाना शुरू किया था. इस बार हमास ने इजरायल पर कम समय में और इतने ज्यादा रॉकेट दागे कि उनमें से कई को रोकने में आयरन डोम असमर्थ हो गया. उसकी क्षमता से ज्यादा रॉकेट हमास की तरफ से दागे गए. इजरायल के ताकतवर डिफेंस सिस्टम में हमास कमियां ढूंढने की कोशिश करता रहता है ताकि उस पर हमले कर सके.


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