अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के फिर से लागू होने के बाद ईरान ने रविवार (05 अक्तूबर) को घोषणा की कि संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी एजेंसी (IAEA) के साथ उसका सहयोग अब अप्रासंगिक हो गया है। विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने कहा कि सितंबर में हुई काहिरा समझौता (Cairo Agreement) मौजूदा परिस्थितियों में जारी नहीं रह सकता।

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अराघची ने कहा कि स्नैपबैक प्रतिबंध (Snapback Sanctions) की दोबारा सक्रियता और हालिया सैन्य तनावों ने स्थिति को पूरी तरह बदल दिया है. उन्होंने कहा, “काहिरा समझौता अब IAEA के साथ हमारे सहयोग के लिए प्रासंगिक नहीं है.”

पश्चिमी देशों पर ईरान का आरोप

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ईरानी विदेश मंत्री ने पश्चिमी देशों पर अनुचित मांगें और धमकी-आधारित कूटनीति का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि सैन्य कार्रवाई और आर्थिक प्रतिबंधों जैसी दबाव की नीतियां किसी भी समझौते को आसान नहीं बनातीं, बल्कि बातचीत को और कठिन कर देती हैं.

अराघची ने कहा कि ईरान ने बातचीत में हमेशा पारदर्शिता दिखाई है. यहां तक कि अमेरिका के साथ परोक्ष वार्ताओं में भी, लेकिन पश्चिमी देशों ने उनके प्रस्तावों को नजरअंदाज किया.  उन्होंने कहा,“अगर हमारे प्रस्तावों को गंभीरता से लिया गया होता और कूटनीति का रास्ता बंद न किया गया होता, तो एक समझौते तक पहुंचना असंभव नहीं था.”

"भविष्य की बातचीत में यूरोप की भूमिका घटेगी"

अराघची ने संकेत दिया कि ईरान संवाद के लिए अभी भी तैयार है, लेकिन आने वाले समय में बातचीत का प्रारूप और प्रतिभागी बदल जाएंगे. उन्होंने कहा कि यूरोपीय देशों की भूमिका भविष्य की बातचीतों में कम होगी.

उन्होंने यह भी जोड़ा कि IAEA के साथ मौजूदा सहयोग ढांचे को खत्म करने का फैसला सुरक्षा खतरों और परमाणु स्थलों पर हालिया हमलों के चलते लिया गया है. 

ईरान का दावा- 'हमारा परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण'

ईरान ने एक बार फिर दोहराया कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण है. अराघची ने कहा, “हमने अपनी सद्भावना और शांतिपूर्ण इरादे साबित करने के लिए हर कूटनीतिक रास्ता अपनाया है. अब पश्चिमी देशों के पास बातचीत से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं बचा है.” उन्होंने जोर देकर कहा कि ईरान विश्वास बहाली के लिए तैयार है, लेकिन केवल तभी जब दूसरे पक्ष भी ईमानदारी दिखाएं. 

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