Iran-Israel War: कई दशक बीत गए, जब भारत ने मध्य पूर्व एशिया के दो सबसे ताकतवर देशों के साथ दोस्ती की थी. एक था दुनिया का सबसे ताकतवर इस्लामिक मुल्क ईरान, तो दूसरा था दुनिया का सबसे ताकतवर यहूदी मुल्क इजरायल. दोनों से ही भारत के रिश्ते शानदार थे. अब भी भारत के साथ दोनों ही देशों की अच्छी दोस्ती हैं, लेकिन अब जब ईरान और इजरायल के बीच जंग शुरू हो चुकी है तो सबसे बड़ी मुसीबत भारत के सामने है कि वो आखिर साथ किसका दे. अगर वो ईरान का साथ देता है तो इजरायल नाराज और अगर इजरायल का साथ देता है तो ईरान नाराज. ऐसे में एक तरफ कुंआ है तो दूसरी तरफ खाई. लेकिन सवाल ये है कि अगर ये जंग और बड़ी हुई तो भारत को अपना पाला चुनना ही होगा और किसी एक देश के साथ खड़े होना ही होगा. 



इजरायल और ईरान के बीच भारत किसके साथ खड़ा होगा, इस सवाल के जवाब से पहले उस तथ्य को समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर इजरायल और ईरान के जंग में भारत की एंट्री हो ही क्यों रही है. तो इसकी वजह है 13 अप्रैल को ईरान की ओर से इजरायल पर हुआ हमला, जिसमें ईरान की फोर्स ने इजरायल के उस जहाज को हाईजैक कर लिया, जिसपर 17 भारतीय नागरिक सवार थे. अब भारतीय नागरिक अगवा हुए तो जाहिर है कि विदेश मंत्रालय को हस्तक्षेप करना ही पड़ा. विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन से बात की और फिर ये तय हो गया कि भारत का प्रतिनिधिमंडल ईरान के कब्जे में फंसे भारतीय नागरिकों से बात कर सकेगा. हालांकि, इससे पहले भी भारत ने अपनी तरफ से ईरान और इजरायल में रह रहे अपने नागरिकों को एडवाइजरी जारी कर ये सलाह दे दी थी कि सभी लोग भारतीय दूतावास के संपर्क में रहें और अपनी सुरक्षा को लेकर सतर्क रहें. इतना ही नहीं भारत ने अपनी तरफ से ईरान और इजरायल की यात्रा पर जाने वाले भारतीयों को भी अगले नोटिस तक यात्रा न करने की सलाह दी थी.  


जंग हुई तो किसको चुनेगा भारत?
अब असल सवाल कि ये जंग और बड़ी हुई तो भारत क्या करेगा. क्या भारत ईरान के साथ खड़ा होगा, जिससे दोस्ती भी पुरानी है और कारोबार भी. या फिर भारत इजरायल के साथ खड़ा होगा, जिसके हथियार बड़ी मात्रा में भारतीय सेना में भी मौजूद हैं. इसका जवाब सिर्फ इतना सा है कि भारत अपने त तटस्थ रहने की कोशिश करेगा. बात अगर पाला चुनने की होगी, तो उसे चुनेगा, जहां नुकसान कम हो. नुकसान-फायदा कम-ज्यादा कहां होगा, इसे समझने के लिए थोड़ा ईरान और इजरायल के साथ भारत के रिश्ते को भी समझ लेते हैं. सबसे पहले बात करते हैं इजरायल की. विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद दस्तावेज के मुताबिक, भारत ने इजरायल को देश के रूप में मान्यता दी थी 17 सितंबर, 1950 को, लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापारिक और राजनैतिक संबंधों की शुरुआत हुई 1992 में. हालांकि, इससे पहले भी जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ 1971 की जंग लड़ी थी, तो इजरायल ने हथियारों से भारत की मदद की थी.


इजरायल के साथ कैसे हैं भारत के रिश्ते?
इजरायल की राजधानी तेल अवीव में भारत की एंबेसी है तो नई दिल्ली में इजरायल की. इसके अलावा, मुंबई और बेंगलुरु में भी काउंसलेट हैं. रूस के बाद इजरायल ही दूसरा ऐसा देश है, जिससे भारत अपने हथियार खरीदता है. 1997 में इजरायल के राष्ट्रपति एजर विजमैन पहली बार भारत आए थे. तब उन्होंने भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, उपराष्ट्रपति केआर नारायणन और प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा से मुलाकात की थी. साल 2000 में गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी इजरायल गए थे और ऐसा करने वाले वो पहले भारतीय मंत्री थे. फिर उसी साल विदेश मंत्री जसवंत सिंह भी इजरायल गए थे. 2003 में इजरायल के प्रधानमंत्री एरियल शेरोन भारत आए थे और ऐसा करने वाले वो पहले इजरायली प्रधानमंत्री थे. 2008 में जब मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था, तब भी इजरायल ने अपनी टीम भेजने और आतंकवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई में साथ देने की बात की थी. वो लगातार आतंक के खिलाफ भारत के साथ खड़े रहने की बात करता रहा है.

नवंबर 2014 में तब के भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इजरायल का दौरा किया था. 2015 में जनवरी और फरवरी में इजरायल के कृषि मंत्री और रक्षा मंत्री ने भारत का भी दौरा किया था. इसके बाद अक्टूबर 2015 में भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इजरायल की यात्रा पर गए थे. 2017 में पीएम मोदी भी इजरायल की यात्रा पर गए थे. ऐसा करने वाले वो पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं. जनवरी 2018 में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भारत की यात्रा पर आए थे. इस दौरान, उनके साथ 130 डेलिगेट्स थे और ये अब तक का सबसे बड़ा डेलिगेशन था. तब पीएम मोदी खुद प्रोटोकॉल तोड़कर उन्हें रिसीव करने के लिए एयरपोर्ट पहुंचे थे. पिछले कुछ साल में इजरायल और भारत के बीच हुई डिफेंस डील पूरी दुनिया जानती है और जब हमास ने इजरायल पर आतंकी हमला किया था तो भारत का इजरायल के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़े रहने को पूरी दुनिया ने देखा और अब भी हमास के मुद्दे पर तो भारत इजरायल के साथ ही खड़ा है.



ईरान के साथ कैसे हैं भारत के रिश्ते
बात अगर ईरान की करें तो भारत और ईरान के बीच रिश्तों की शुरुआत हुई थी 15 मार्च 1950 से. 1956 में ईरान के शाह भारत की यात्रा पर आए तो भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू 1959 में ईरान की यात्रा पर गए. फिर 1974 में इंडिरा गांधी ने ईरान की यात्रा की. उनके बाद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी 1977 में ईरान की यात्रा पर गए, जिसके जवाब में ईरान के शाह 1978 में भारत की यात्रा पर आए. 1979 में जब ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई तो भारत और ईरान के नेताओं का एक दूसरे देश में आना-जाना लगा रहा. अब भी भारत और ईरान के रिश्ते बेहद सहज हैं. वहीं, बात अगर कारोबार की करें तो भारत ईरान से कच्चा तेल खरीदता है. भारत को अपनी खपत का करीब 84% कच्चा तेल आयात करता है और इसमें में करीब 10 फीसदी तेल ईरान से ही खरीदा जाता है. आंकड़ों में बात करें तो भारत हर साल करीब  86,082 करोड़ रुपये का तेल ईरान से खरीदता है. वहीं, ईरान भारत से करीब 24 हजार करोड़ रुपये का सामान खरीदता है. इसके अलावा, अफगानिस्तान से अपने कारोबारी रिश्ते बनाए रखने के लिए भारत ईरान में चाबहार पोर्ट बनाने में भी ईरान की मदद कर रहा है.


पहले भी ऐसी ही स्थिति में फंस चुका है भारत
ऐसे में भारत के लिए इजरायल भी जरूरी है और ईरान भी. ये पहला मौका नहीं है, जब भारत के सामने ऐसी चुनौती आई है कि वो ईरान और इजरायल में से किसी एक देश के साथ का चुनाव करे. इससे पहले भी साल 2012 में फरवरी महीने में इजरायल के एक डिप्लोमेट की पत्नी पर भारत की राजधानी नई दिल्ली में हमला हुआ था. इस हमले के लिए इजरायल ने ईरान को जिम्मेदार ठहराया था. अभी साल 2021 में भी भारत में ईरान और इजरायल के राजदूत आपस में भिड़ गए थे. तब भारत ने दोनों को ही शांति से काम लेने की सलाह दी थी क्योंकि दोनों देशों के बीच की जंग में नुकसान सिर्फ कारोबार या हथियार का ही नहीं है. सबसे बड़ा नुकसान इंसानों का है क्योंकि विदेश मंत्रालय का आंकड़ा कहता है कि इजरायल में भारत के करीब 18 हजार लोग हैं. वहीं, ईरान में भी भारतीयों की संख्या 5 हजार से 10 हजार के बीच है. करीब 90 लाख भारतीय हैं जो गल्फ और पश्चिमी एशिया में काम करते हैं.


भारत की सबसे बड़ी चिंता यही है कि अगर ईरान और इजरायल के बीच की जंग बड़ी होती है तो सबसे बड़ा खतरा भारतीयों पर आएगा. बाकी तो भारत का 80 फीसदी तेल ही पश्चिमी एशिया से आता है और अगर जंग बड़ी हुई तो इस तेल सप्लाई पर असर पड़ना और फिर भारत में तेल का महंगा होना स्वाभाविक है. ऐसे में भारत की पूरी कोशिश इस जंग को रोकने की है और दुनिया के भी तमाम और मुल्क इसी कोशिश में लगे हैं कि जंग खत्म हो और अमन कायम हो. बाकी आखिरी फैसला तो ईरान और इजरायल को ही करना है कि वो चाहते क्या हैं.


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