Economic Crisis: भारत के पड़ोसी देशों में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. पाकिस्तान को हाल ही में एक और प्रधानमंत्री मिला है. वहीं, श्रीलंका 1948 में आजाद होने के बाद सबसे बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है. श्रीलंका के बाद नेपाल पर भी आर्थिक संकट मंडरा रहा है. विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से कम हो रहा है. आर्थिक अनिश्चितता को देखते हुए नेपाल ने अपने केंद्रीय बैंक प्रमुख को सस्पेंड कर दिया है. वहीं, चीन में चिंता सता रही है कि नए कोविड-19 प्रतिबंध उसकी अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर सकते हैं.


भारत के पड़ोस में संकट पैदा हो रहा है, जिसके कई कारण हैं. सभी देशों में एक आम बात अर्थव्यवस्था और कोविड-19 महामारी है. जहां तक अर्थव्यवस्था का सवाल है, तो आइए जानते हैं कि भारत के पड़ोस में क्या चल रहा है?


पाकिस्तान 


पाकिस्तान में एक बार फिर प्रधानमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा किए बिना सत्ता से बाहर हो गए. 2018 में प्रधानमंत्री का पदभार संभालने वाले इमरान खान 'नया' पाकिस्तान बनाने के वादे के साथ सत्ता में आए थे. मार्च 2022 में कर्ज और महंगाई के बीच बेरोजगारी की संख्या रिकॉर्ड पर रही. इसके जवाब में वजीर-ए-आजम ने कहा था, मैं टमाटर और आलू की कीमतों को जानने के लिए राजनीति में नहीं आया. इसके एक महीने से कम समय में ही इमरान खान को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा, जिसमें उन्होंने बहुमत खो दिया और पाकिस्तान को एक और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ मिले. 


शरीफ ने भी आर्थिक संकट से युद्ध स्तर पर निपटने का वादा किया है. शहबाज शरीफ ने शपथ लेने के तुरंत बाद ही मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा, "संघीय मंत्रिमंडल के गठन के बाद सरकार महंगाई पर काबू पाने और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की योजना के साथ आएगी." स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (SBP) ने पिछले हफ्ते महंगाई के परिदृश्य में गिरावट का अनुमान लगाया था, जो पिछले कुछ समय से दोहरे अंकों के साथ बनी हुई है. पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक ने कहा कि मार्च में मुद्रास्फीति उम्मीद से अधिक थी. 


श्रीलंका


भारत के दक्षिण के पड़ोसी देश श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट में है. श्रीलंका के लोगों को दूध, चावल, रसोई गैस, बिजली और दवाओं जैसी बुनियादी चीजों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. श्रीलंका में आर्थिक संकट को लेकर सरकार के विरोध में जनता सड़कों पर उतर आई है. वहीं, मंत्रियों को सामूहिक इस्तीफा तक देना पड़ा. श्रीलंका में मुद्रास्फीति की दरें रिकॉर्ड तोड़ अपने उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं. विदेशी मुद्रा की गंभीर कमी के कारण जरूरी वस्तुओं के आयात में भारी कमी आई है. श्रीलंका के दिवालिया होने में सरकार की गलत नीतियां सबसे ज्यादा जिम्मेदार है. इसमें एक बड़ी गलती जनता को लुभाने के लिए मुफ्त का खेल भी बताया जा रहा है.


श्रीलंका में अलग-अलग मदों में अलग-अलग टैक्स व्यवस्था लागू थी. आवश्यक वस्तुओं पर टैक्स दर कम होने के साथ-साथ ऊंची आय वालों पर 30 फीसदी तक का टैक्स लगता था, लेकिन लोगों की नजर में बेहतर होने के लिए सरकार ने टैक्स दरें घटाकर आधा कर दीं. केवल 15 फीसदी का टैक्स लेने से सरकार को प्रति वर्ष 60 हजार करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ. वहीं, कुछ समय बाद कोविड-19 महामारी ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया, जो पर्यटन पर बहुत अधिक निर्भर थी. मार्च के अंत में श्रीलंका का विदेशी भंडार 1.93 अरब डॉलर था. पिछले दो वर्षों में श्रीलंका के भंडार में दो-तिहाई से अधिक की गिरावट आई है, क्योंकि कर कटौती और कोविड-19 महामारी ने इसकी पर्यटन-निर्भर अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया.


नेपाल 


भारत के पूर्व के पड़ोसी देश नेपाल भी आर्थिक उथल-पुथल का सामना कर रहा है. श्रीलंका की तरह कोरोना महामारी के चलते एशिया में पर्यटन में मंदी से नेपाल का विदेशी भंडार प्रभावित हुआ है. नेपाल राष्ट्र बैंक के उप प्रवक्ता नारायण प्रसाद पोखरेल ने कहा, "नेपाल राष्ट्र बैंक को लगता है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार दबाव में है और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को प्रभावित किए बिना गैर-आवश्यक वस्तुओं के आयात को प्रतिबंधित करने के लिए कुछ किया जाना चाहिए." इसके परिणाम में नेपाल कार, सोना और कॉस्मेटिक के आयात पर सख्ती बरत रहा है. सरकार ने केंद्रीय बैंक के गवर्नर को भी निलंबित कर दिया है और उनके डिप्टी को अंतरिम प्रमुख नामित किया है.


नेपाल, विदेशी मुद्रा भंडार के लिए पर्यटन और सीमित वस्तुओं के निर्यात पर बहुत ज्यादा निर्भर है, जिससे देश को अपने आयात के खर्च को पूरा करने की आवश्यकता है. देश में राजनीतिक संकट के बाद केपी शर्मा ओली सरकार गिरने के तुरंत बाद जुलाई 2021 से विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आ रही है. तब से आयात बढ़ रहा है और पर्यटन और निर्यात से आय में गिरावट आई है. नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार जुलाई 2021 के मध्य में 11.75 अरब डॉलर से घटकर इस साल फरवरी में 9.75 अरब डॉलर हो गया.


चीन 


चीन कोरोना महामारी के दौरान अपनी अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण रखने में कामयाब रहा है. वहीं, देश में अभी कोरोना की नई लहर चल रही है. फिलहाल चीन के 23 शहरों में पूरी तरह या आंशिक लॉकडाउन लागू है, जिससे 193 मिलियन लोग घरों में कैद हैं, जो चीन की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद में 22 फीसदी योगदान देते हैं.


चीन में यूरोपियन यूनियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ने कहा है कि मौजूदा रणनीति के परिणामस्वरूप प्रांतों में और बंदरगाहों के जरिए माल परिवहन में कठिनाइयां बढ़ रही हैं, जिससे कारखाने के उत्पादन को नुकसान हो रहा है, जो चीन की निर्यात करने की क्षमता को प्रभावित करेगा, जो अंततः मुद्रास्फीति को बढ़ा सकता है.


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