Israel Palestine Conflict: इजरायल और गाजा पट्टी से चलने वाले चरमपंथी संगठन हमास के बीच करीब एक हफ्ते जंग चल रही है. दोनों ओर से हजारों लोग मारे जा चुके हैं. इजरायल ने हमास को नेस्तनाबूत करने की कसम खाई. पिछले शनिवार (7 अक्टूबर) की सुबह अचानक हमास के बंदूकधारियों ने दक्षिणी इजराइल पर रॉकेटों से हमला कर दिया था और घुसपैठ कर नागरिकों को निशाना बनाया. तब से दोनों के बीच जंग थमने का नाम नहीं ले रही है. लड़ाई में इजरायल के आक्रामक रुख के कारण सऊदी अरब और ईरान को करीब आते हुए देखा जा रहा है. 


दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, यह पुरानी कहावत इस तिकड़ी में चरितार्थ होती दिख रही है. इजरायल के साथ सऊदी अरब या ईरान के संबंध अच्छे नहीं हैं. सऊदी और इजरायल के बीच कभी भी औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं रहे हैं.


इजरायल के साथ कैसे हैं सऊदी अरब और ईरान के संबंध? 


1947 में सऊदी अरब ने संयुक्त राष्ट्र के फलस्तीन के विभाजन वाले प्लान के खिलाफ मतदान किया था और वर्तमान में वह इजरायल की संप्रभुता को मान्यता नहीं देता है. हालांकि, 2023 में इजरायल-सऊदी के संबंध सामान्य करने की दिशा में द्विपक्षीय वार्ता जारी है, जिसमें अमेरिका दोनों पक्षों के मध्यस्थ के रूप में काम कर रहा है.


वहीं, ईरान ने भी 1947 में फलस्तीन के विभाजन वाले यूएन के प्लान के खिलाफ मतदान किया था. ईरान और इजरायल के बीच संबंधों को चार प्रमुख चरणों में समझा जा सकता है. दोनों के बीच 1947 से 1953 तक का समय दुविधापूर्ण काल के रूप में जाना जाता है.


1953 से 1979 तक ईरान के आखिरी शाही पहलवी राजवंश के दौर में दोनों के बीत संबंध मैत्रीपूर्ण रहे. 1979 से 1990 तक ईरानी क्रांति के बाद संबंध बिगड़ते चले गए और 1991 में खाड़ी युद्ध की समाप्ति के बाद से दोनों के बीच खुली शत्रुता का दौर जारी है. 


वहीं, ईरान मौजूदा स्थिति में परोक्ष रूप से हमास का समर्थन कर चुका है जबकि सऊदी अरब ने भी फिलिस्तीनियों के हितों की बात करते हुए जंग का रोकने का आह्वान किया है. ज्यादातर मुस्लिम देश इस लड़ाई में फिलिस्तियों के हक की बात उठा रहे हैं.


कैसे पास आ रहे हैं सऊदी और ईरान?


हमास पर इजरायल की आक्रामकता के बीच सऊदी अरब और ईरान करीब आ रहे हैं, इसको ऐसे समझा जा सकता है कि बीते बुधवार (11 अक्टूबर) को दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व ने फोन पर बात की थी. सऊदी अरब के क्राउन फ्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने फोन पर फलस्तीन इजरायल संघर्ष के बारे में चर्चा की.


यह बातचीत इसलिए खास थी क्योंकि चीन की मध्यस्थता के बाद फिर से रियाद और तेहरान के बीच शुरू हुए संबंधों के बाद दोनों नेताओं के बीच यह पहली टेलीफोन कॉल थी. चूंकि इस दौरान हमास के खिलाफ इजरायल गाजा में हवाई हमले कर रहा है. ऐसे में इन दो नेताओं के बीच बातचीत उनके एक-दूसरे के करीब आने का संकेत देती है. 


क्या बातचीत हुई सऊदी के क्राउन प्रिंस और ईरानी राष्ट्रपति के बीच?


ईरानी मीडिया ने कहा कि रायसी और सऊदी क्राउन प्रिंस ने फलस्तीन के खिलाफ युद्ध अपराधों को खत्म करने की जरूरत पर चर्चा की. सऊदी अरब की सरकारी समाचार एजेंसी एसपीए ने कहा कि सऊदी क्राउन प्रिंस ने अपनी तरफ से यह पुष्टि की कि उनका देश मौजूदा तनाव को रोकने के लिए सभी अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के साथ संवाद करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है. क्राउन प्रिंस ने यह भी दोहराया कि किसी तरह से नागरिकों को निशाना बनाना अस्वीकार होगा.


बता दें कि सऊदी अरब और ईरान ने इसी साल (2023) मार्च में चीन की मध्यस्थता के चलते सात साल पुरानी दुश्मनी भुलाकर संबंधों को फिर से शुरू करने पर सहमत हुए थे. इससे पहले सऊदी अरब और ईरान की शत्रुता ने खाड़ी में स्थिरता और सुरक्षा को खतरे में डाल दिया था और इसकी वजह से यमन से सीरिया तक मध्य पूर्व में संघर्ष को बढ़ावा मिला था.


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