Diwali Amazing Facts: पूरा देश आज (12 नवंबर) दिवाली मना रहा है. एक दिन पहले यानी शनिवार (11 नवंबर) को अयोध्या में दिवाली के मौके पर दीप जलाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया गया. दिवाली के दो चेहरे हैं, एक है घर के अंदर जहां लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है, तो वहीं दूसरा चेहरा है रंग-बिरंगी लाइटों से जगमगाते घर, जलते दीये और आतिशबाजी के बीच इस त्योहार को सेलिब्रेट करते लोग.


पर इन सबके बीच कई लोगों के मन में ये सवाल आता है कि आखिर दिवाली मनाने की परंपरा कब से शुरू हुई, कब से और कहां लोग इसमें दीये जलाने लगे, कब से आतिशबाजी इसमें शामिल हुई. आज हम आपके इन सभी सवालों के जवाब देंगे साथ ही दिवाली से जुड़ी और भी कई रोचक जानकारियां आपको बताएंगे.


कब से मनाते हैं दिवाली, पहले ये समझें


हिंदू धर्म ग्रंथ स्कंदपुराण और अग्निपुराण में रोशनी के इस त्योहार का जिक्र है. माना जाता है कि दिवाली त्रेतायुग के बाद द्वापर युग से मनाई जा रही है. तब इसे पांच दिन तक मनाते थे. माना जाता है कि दिवाली मनाने की परंपरा 5000 साल पुरानी है. स्कंद पुराण के कार्तिक महात्म्य में भगवान श्रीकृष्ण ने दीपकों को सूर्य का अंश बताया है. यहां हम आपको स्कंद पुराण के कुछ श्लोक भी बता रहे हैं जिससे दीपावली का पता चलता है.


सूर्यांशसंभवा दीपा अंधकारविनाशका:।। 10 ।।


बलिराज्यं समासाद्य यैर्न दीपावलि: कृता ।। 45 ।।


सबसे पहला दीपदान उत्सव कहां


स्कंद पुराण में एक श्लोक है “मद्राज्ये ये दीपदानं भुवि कुर्वंति मानवा: ।। 54 ।।“ इस श्लोक को जब आप ठीक से पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि सबले पहले मद्र राज्य के लोगों ने दीपदान किया था यानी दीया जलाया था. हम जिस मद्र राज्य की बात यहां कर रहे हैं, अब वह पाकिस्तान की तक्षशिला (POK) और कश्मीर के बीच में पड़ने वाली एक जगह है. माना जाता है कि जब उस समय दैत्यराज बलि को दीपदान का पता चला तो उन्होंने अपने राज में दीप जलाने की परंपरा शुरू कराई.


कहां मिला पहला दीया


सिंधु घाटी सभ्यता से करीब चौथी सहस्त्राब्दी पूर्व में यानी करीब 5 हजार साल पहले से मिट्टी के दीये इस्तेमाल होने के प्रमाण मिल चुके हैं. सबसे पहले सिंधु घाटी में खुदाई के दौरान मेहरगढ़ में मिट्टी के प्राचीन दीये पुरातत्व विभाग की टीम को मिले थे. बाद में इनकी कार्बन डेटिंग कराई गई तो पता चला कि यह करीब 5 हजार साल पुराने दीये हैं. इसके अलावा भारत के संघल में भी इस तरह की घटना हो चुकी है. वहां 2500 साल पहले मौर्यकालीन दीपक मिल चुके हैं.


रॉकेट और बारूद का इस्तेमाल कब


अगर आप कौटिल्य के लिखे अर्थशास्त्र को पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि सबसे पहले रॉकेट इस्तेमाल कब किया गया था. करीब 2396 साल पहले लिखे अपने अर्थशास्त्र के 14वें चैप्टर में कौटिल्य ने ‘तेजनचूर्ण’ बनाने का तरीका बताया है. तेजनचूर्ण में आग डालने पर चिंगारी निकलती थी. युद्ध में दुश्मनों को विचलित करने के लिए इसे जलाकर जहरीला धुआं छोड़ा जाता था.


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