Greenland Ice Melting Faster: वैश्विक तापमान में वृद्धि और बढ़ते प्रदूषण की वजह से धरती (Earth) पर जन-जीवन को दुष्प्रभाव झेलना पड़ रहा है. कार्बन उत्‍सर्जन (Carbon Emissions) एवं ग्‍लोबल वॉर्मिंग (Global warming) के चलते ध्रुवीय प्रदेशों में ठंड कम हो रही है और ग्‍लेशियरों की बर्फ पिघल रही है. वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रीनलैंड के ग्लेशियर 20वीं सदी की तुलना में अब 3 गुना तेजी से पिघल रहे हैं.


बता दें कि ग्रीनलैंड (Greenland) दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप (IsLand) है. इसका क्षेत्रफल 2,166,086 वर्ग किमी है. यह पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव में स्थित है. और, इसलिए इसका अधिकांश हिस्सा बर्फ से ढका रहता है. मगर, बीते कुछ सालों में यहां मौजूद बर्फ पिघलकर कम होती जा रही है. यहां पर कई बड़े बर्फीले पर्वत और ग्लेशियर हैं, जिनका पिघलना दुनिया के लिए खतरे की घंटी है.




ध्रुवीय प्रदेशों की बर्फ पिघलने से धरती पर जलस्‍तर बढ़ रहा
जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स की स्‍टडी के मुताबिक, ग्रीनलैंड के ग्लेशियर के तेजी से पिघलने के कारण समुद्र में जलस्‍तर बढ़ रहा है और यदि ध्रुवीय प्रदेशों में इसी तरह ग्लेशियर पिघलते रहे तो समुद्र तट वाले कई देश डूबने लगेंगे. अब तक दुनिया के कई हिस्सों में बढ़ते जलस्तर की वजह से इंसानी बस्तियों विस्थापित हुई हैं, और लोगों को बेघर होना पड़ा है.




'जितना अनुमान लगाया, उससे ज्‍यादा पिघल रहे होंगे ग्‍लेशियर'
पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी में पर्यावरण, भूगोल और भूविज्ञान के स्कूल डॉ क्लेयर बोस्टन ने कहा कि यह समझना जरूरी है कि हमने अपने रिसर्च में केवल ग्लेशियरों और आइसकैप्स को देखा है, जो कम से कम एक किमी क्षेत्र में थे. और, यदि वहां पिघलने वाली बर्फ की कुल मात्रा को देखा जाएगा तो वो हमारे पूर्वानुमानों से भी अधिक होगी.




स्‍टडी में 5,327 ग्लेशियरों और आइस कैप्स की मैपिंग
आइएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिमी देशों के भू-विज्ञानियों ने अपनी स्टडी के दौरान ध्रुवीय प्रदेश के ऐसे 5,327 ग्लेशियरों और आइस कैप्स की मैपिंग की, जो वर्ष 1900 में लिटिल आइस एज के अंत के समय मौजूद थे. बाद में व्यापक शीतलन की अवधि में औसत वैश्विक तापमान में दो डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट आई, तो उनकी संख्‍या 5,467 हो गई थी. हालांकि, बीते कुछ सालों में ग्लेशियर की बर्फ पिघलना तेज हो गया, जो कि 1900 के बाद से दीर्घकालिक औसत से तीन गुना अधिक है.


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