राजधानी दिल्ली में अगले महीने यानी सितंबर को जी-20 का शिखर सम्मेलन होने वाला है. दिल्ली के प्रगति मैदान में 9 से 10 सितंबर तक आयोजित होने वाले इस सम्मेलन की तैयारियां अपने अंतिम चरण में हैं. पूरा देश अलग अलग देशों से भारत आने वाले नेताओं की मेजबानी करने के लिए तैयार है.


इस सम्मेलन में कई देशों के नेता शामिल होंगे. उन देशों में एक नाम भारत का पड़ोसी देश चीन का भी है. इससे पहले भारत और चीन 24 अगस्त को जोहान्सबर्ग में BRICS समिट में भी हिस्सा ले चुके हैं. ब्रिक्स ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका, ये पांच सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का एक ग्रुप है. 


इस समिट का प्रमुख विषय ब्रिक्स समूह का विस्तार था. इस बार ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की शुरुआत में हुए बिजनेस फोरम के बैठक से चीन के राष्ट्रपति नदारद रहें. उन्होंने खुद अपना भाषण नहीं दिया बल्कि उनकी तरफ से एक बयान जारी किया गया.


जिसमें उन्होंने ब्रिक्स समूह के विस्तार की बात कहकर सफाई देते हुए कहा कि चीन को महाशक्तियों के बीच टकराव करवाने की कोई इच्छा नहीं है और न ही हम गुटबाजी करना चाहते हैं. 


ऐसे में इस स्टोरी में आपको बताएंगे कि ब्रिक्स में शामिल देश चीन को किस नजरिए से देखता है और उनका चीन को लेकर क्या राय है. 


क्या कहते हैं भारत के लोग


दरअसल अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा हाल ही में किए गए एक ग्लोबल एटीट्यूड सर्वे के अनुसार ब्रिक्स ग्रुप में शामिल कुछ देश चीन को काफी आलोचनात्मक नजर यानी नेगेटिव तरीके से देखते हैं. इस देशों में सबसे पहला नाम भारत का आता है. सर्वे के अनुसार भारतीयों का अपने पड़ोसी के प्रति बहुत आलोचनात्मक दृष्टिकोण है. 


सर्वे के लिए सवालों का जवाब देने 50 प्रतिशत भारतीयों का चीन को लेकर बहुत अच्छा ओपिनियन नहीं है. जबकि अन्य 17 प्रतिशत लोगों कुछ हद तक पॉजिटिव प्रतिक्रिया दी है. बता दें कि भारत और चीन के रिश्तों में उतार-चढ़ाव आते रहना कोई नई बात नहीं है. 


प्यू रिसर्च सेंटर के इस सर्वे में भारत के 48 प्रतिशत लोगों का दावा है कि उन्हें वैश्विक मामलों के संबंध में शी जिनपिंग पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है, जबकि 58 प्रतिशत ने कहा कि वे अंतरराष्ट्रीय नीतिगत निर्णय लेते समय भारतीय हितों को ध्यान में नहीं रखेंगे.


ब्राजील को भी चीन पर नहीं भरोसा 


भारत के अलावा ब्राजील के लोगों से जब चीन के बारे में पूछा गया तो उनका भी मानना लगभग भारतीयों जैसा ही थी. अपनी विस्तारवादी नीतियों के लिए जाना जाने वाले देश चीन पर ब्राजीलियन लोगों ने भी संदेह दिखाया है.  


इस सर्वे में 50 प्रतिशत ब्राज़ीलियाई लोगों का मानना है कि भविष्य में चीन उनके देश के हितों को ध्यान में नहीं रखेगा. जबकि 67 प्रतिशत लोगों का मानना है कि वैश्विक राजनीतिक मंच पर शी जिनपिंग पर विश्वास नहीं किया जा सकता है. इसका मतलब है कि ब्राजील के 48 प्रतिशत उत्तरदाताओं की चीन के बारे में कुछ हद तक नकारात्मक राय है, जो 2019 से 27 प्रतिशत ज्यादा है. 


साउथ अफ्रीका 


सिर्फ भारत और ब्राजील ही नहीं, चीन पर भरोसा करने के मामले में साउथ अफ्रीका के लोगों से भी कुछ मिलता जुलता जवाब ही सुनने मिला. सर्वे के अनुसार साउथ अफ्रीका के 27 प्रतिशत लोगों को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर भरोसा नहीं है. वहीं 17 प्रतिशत लोगों ने चीन को लेकर पॉजिटिव जवाब दिया है. 


ग्राफिक्स से समझिये अन्य देशों का हाल 


नीचे दिखाए गए ग्राफिक्स में ब्रिक्स समूह के सभी देशों का नाम है. इन देशों के सामने गाढ़ हरे रंग का बॉक्स बताता है कि वैश्विक राजनीतिक मंच पर शी जिनपिंग पर पूरी तरह विश्वास किया जाता है. जबकि गाढ़े हरे रंग का मतलब है कि चीन पर ब्रिक्स में शामिल अन्य देश भरोसा तो करते हैं लेकिन बहुत ज्यादा नहीं. 


इसके अलावा भूरे रंग का बॉक्स बताता है कि इस देश के कितने प्रतिशत लोग चीन पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करते. जबकि नारंगी रंग के बॉक्स में दर्ज प्रतिशत बताता है कि वैश्विक राजनीतिक मंच पर चीन कम भरोसे के लायक है.




चीन पर अन्य देशों को क्यों है शक


ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में जो पांच देश शामिल है. उसकी साल 2022 की जीडीपी देखें तो चीन की अर्थव्यवस्था भारत के अर्थव्यवस्था से ढाई गुना ज्यादा है. जबकि भारत समूह के अन्य देशों की तुलना में दूसरा सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है.  


इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि भविष्य में जिन 9 देशों को ब्रिक्स में शामिल करने की बात की जा रही है उन 9 देशों की जीडीपी भी मिला दी जाए तो यह चीन के आर्थिक उत्पादन का आधा है. 


जिसे देखते हुए यह कल्पना करना मुश्किल लग रहा है कि भविष्य में किसी भी फैसले में चीन बाकी देशों को बराबर का महत्व देगा. हाल ही में प्यू रिसर्च ग्रुप के सर्वेक्षण से पता चला है, विश्व मंच पर चीन की भूमिका को उसके साझेदारों के बीच भी बहुत संदेह के साथ देखा जाता है, भारत, ब्राजील और अर्जेंटीना के अधिकांश लोगों को लगता है कि चीन शायद ही कोई बड़ा फैसला लेने से पहले उनके देश के हितों का ध्यान रखेगा. 


ग्राफिक्स से समझिए


नीचे दिए ग्राफिक्स में सभी देशों का नाम दिया गया है और जिस देश की जीडीपी जितनी ज्यादा उतने बड़ा बॉक्स में उस देश का नाम है. 





क्या है ब्रिक्स 


BRICS पांच देशों का एक ग्रुप है. जिसमें B से ब्राजील, R से रूस, I से भारत, C से चीन और S से दक्षिण अफ्रीका शामिल है. ये पांच देश दुनिया में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाला देश है.


BRICS इस नाम को ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओनिल ने दिया था. इस शब्द की खोज उन्होंने गोल्डमैन सैक्स में काम करने के दौरान की थी. पहले इस ग्रुप का नाम BRIC हुआ करता था. साल 2010 में साउथ अफ्रीका के शामिल होने के बाद इसे ब्रिक्स कहा जाने लगा.


इस समूह की स्थापना साल 2006 में की गई थी लेकिन इसमें शामिल सभी देशों का पहला सम्मेलन साल 2009 में किया गया था. फिलहाल रूस को छोड़ दें तो इस ग्रुप में शामिल सभी देश विकासशील देश हैं, जिसकी इकोनॉमी काफी रफ्तार से बढ़ रही है.


इस पांचों देशों का वैश्विक मामलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव हैं. BRICS में शामिल पांचों देश दुनिया की लगभग 42 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं.


हर साल होती है बैठक 


इस ग्रुप में शामिल सभी देशों का साल में एक बार सम्मेलन होता है. जहां इसके सदस्य राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्ष और सरकार के प्रमुख एक साथ मिलते हैं. हर साल जो राष्ट्र मीटिंग की मेजबानी कर रहा होता है, वो अगले एक साल तक इस ग्रुप की अध्यक्षता करता है.


ब्रिक्स का उद्देश्य क्या है


इस ग्रुप का उद्देश्य इन पांच विकासशील देशों में शिक्षा में सुधार करना, विकसित और विकासशील देशों के बीच में सामंजस्य बनाए रखें, आपस में राजनीतिक व्यवहार बना के रखना, जब कभी किसी देश को आर्थिक मदद की जरूरत हो तब आर्थिक मदद और सुरक्षा का व्यवहार बना के रखना, इन देशों के अंदर चल रहे किसी भी विवादों का निपटारा करना और एक दूसरे देश की सांस्कृतिक रक्षा करना है. 


ब्रिक्स के इस ग्रुप में विस्तार के बाद कौन कौन से देश शामिल होना चाहते हैं 


अब तक 40 से ज्यादा देशों ने इस मंच में खुद को शामिल करने की इच्छा जताई है. इन देशों में संयुक्त अरब अमीरात, , कोमोरोस, गैबॉन, अर्जेंटीना, ईरान, बोलीविया, इंडोनेशिया, मिस्र, इथियोपिया, क्यूबा, सऊदी अरब, अल्जीरिया,  कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और कजाकिस्तान शामिल है. 


ब्रिक्स के साथ जुड़ने की इच्छा रखने वाले सभी देश इस संगठन को पारंपरिक पश्चिमी शक्तियों के प्रभुत्व वाले वैश्विक निकायों के विकल्प के रूप में देखते हैं. इन देशों को उम्मीद है कि ब्रिक्स से जुड़ने पर उन्हें ना केवल फायदा होगा बल्कि अमीर देशों के वर्चस्व से लड़ने में भी मदद मिलेगी.