पर्यावरणविद् सद्गुरु ने ब्रिटेन से भारत के लिए मोटरसाइकिल से 30,000 किमी की यात्रा शुरू कर दी है. वो बीएमडब्ल्यू K1600 GT मोटरसाइकिल के जरिए यूके से भारत के लिए यात्रा पर निकल पड़े हैं. ब्रिटेन की राजधानी लंदन के ट्राफलगर स्क्वायर से सद्गुरु (Sadhguru) ने धरती बचाने के अपने अभियान के तहत 100 दिनों की बाइक यात्रा की शुरुआत की. मिट्टी बचाओ जागरूकता अभियान के दौरान वो 27 देशों में जाएंगे और करीब 30 हजार किलोमीटर दूरी तय करेंगे. वो अपने 100 दिवसीय दौरे में इस हफ्ते के दौरान बीएमडब्ल्यू K1600 GT मोटरसाइकिल पर सवार होकर एम्स्टर्डम, बर्लिन और प्राग जाएंगे. 


सद्गुरु का मिट्टी बचाओ अभियान


सद्गुरु का पूरा नाम जगदीश वासुदेव है. अपने रास्ते में प्रमुख शहरों में निर्धारित कार्यक्रमों की एक श्रृंखला के बाद भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के सम्मान में 75 दिनों में नई दिल्ली में घर वापसी का लक्ष्य है. मिट्टी संरक्षण को लेकर उन्होंने कहा कि ये बेहद महत्वपूर्ण है कि हम अभी से ही इस पर गंभीरता से विचार करें. मैं इस बारे में करीब 24 सालों से बात कर रहा हूं लेकिन समाधान तभी हो सकता है जब हर देश में इसको लेकर सकारात्मक नीति हो. उन्होंने कहा कि यूरोप के कई हिस्सों में अभी भी बर्फबारी हो रही है और हम इस उम्र में दोपहिया वाहन पर अपने अभियान की शुरुआत की है. ये वास्तव में आनंद की सवारी नहीं है तो मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं? क्योंकि पिछले 20 सालों में 300,000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली है.


मिट्टी और पानी को संरक्षित करना जरूरी


सद्गुरु ने मिट्टी संरक्षण को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया के दूसरे देशों में भी किसान खुदकुशी कर रहे हैं. उपजाऊ मिट्टी की कमी बेहद ही चिंता की बात है. मिट्टी बचाओ आंदोलन का उद्देश्य दुनिया का ध्यान मृत होती मिट्टी और बढ़ते मरुस्थलीकरण की ओर आकर्षित करना है. सद्गुरु का मानना है कि हमारे पास कितना भी धन, शिक्षा और पैसा हो, हमारे बच्चे तब तक ठीक से नहीं रह सकते जब तक हम मिट्टी और पानी को संरक्षित नहीं करते. ये अभियान विश्व खाद्य कार्यक्रम और संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन की ओर से समर्थित है. ये दुनिया भर के नीति निर्माताओं से मिट्टी के पुनर्जनन को प्राथमिकता देने का आह्वान करता है.


मृत होती मिट्टी की वजह से कई प्रजातियां हो सकती हैं विलुप्त


संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) के मुताबिक धरती की 90 फीसदी से अधिक मृदा 2050 तक खराब हो सकती है, जिससे दुनिया भर में खाद्य सामग्री और पानी की कमी, सूखा और अकाल, प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन, बड़े पैमाने पर पलायन जैसी समस्या से लोगों को जूझना पड़ सकता है. दुनिया की कई प्रजातियां विलुप्त भी हो सकती हैं.


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