अमेरिका की करेंसी दुनिया की सबसे ताकतवर मुद्राओं में गिनी जाती है. फिलहाल 1 अमेरिकी डॉलर की कीमत लगभग 88.67 भारतीय रुपए है. हालांकि भारत में लेन-देन और करंसी एक्सचेंज के बाद इसका मूल्य थोड़ा अलग होकर 84.12 रुपए तक रह जाता है. यदि कोई व्यक्ति अमेरिका से 1 लाख डॉलर लेकर भारत आता है तो यह रकम भारतीय मुद्रा में लगभग 88 लाख 67 हजार रुपए के बराबर हो जाएगी.
यह अंतर केवल संख्याओं का नहीं, बल्कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्था, मांग-आपूर्ति और वैश्विक बाजार में स्थिरता पर भी आधारित होता है. आज डॉलर दुनिया की रिजर्व करंसी (Reserve Currency) है, लेकिन ऐसा हमेशा से नहीं था. अमेरिका में शुरुआती दौर में कोई आधिकारिक करेंसी नहीं थी. लोग आवश्यक सामान खरीदने के लिए तंबाकू के पत्ते, सीप (shells), अनाज या जमीन के टुकड़े देकर लेन-देन किया करते थे. समय के साथ सोना और चांदी व्यापार का माध्यम बना. 1792 में अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर "डॉलर" को राष्ट्रीय मुद्रा घोषित किया. यह बदलाव केवल लेन-देन की सुविधा तक सीमित नहीं था, बल्कि इसने अमेरिका को वैश्विक व्यापार में एक मजबूत पहचान दी.
क्यों अमेरिकी डॉलर है दुनिया की सबसे ताकतवर करेंसी?डॉलर की ताकत केवल उसके नोट की छपाई में नहीं, बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मजबूती में है. अमेरिका की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी और स्थिर अर्थव्यवस्थाओं में गिनी जाती है. तेल और गोल्ड ट्रेड ज्यादातर डॉलर में होता है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार और रिजर्व फंड में डॉलर का ही इस्तेमाल होता है. 180 से अधिक देशों की करेंसी डॉलर के मुकाबले अपनी कीमत तय करती है. भारत जैसे देश में भी अंतरराष्ट्रीय लेन-देन का बड़ा हिस्सा डॉलर पर आधारित है. यही कारण है कि डॉलर की कीमत बढ़ने या घटने से सीधे तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था और आम आदमी की जेब पर असर पड़ता है.
भारतीय रुपए पर डॉलर का प्रभावभारतीय रुपया, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले समय-समय पर मजबूत और कमजोर होता रहता है. डॉलर की कीमत बढ़ने से आयात (import) महंगा हो जाता है, जैसे पेट्रोल-डीजल, इलेक्ट्रॉनिक सामान और विदेशी शिक्षा. वहीं डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होने पर भारत को विदेशी व्यापार में लाभ होता है. भारतीय निवेशक और स्टूडेंट्स के लिए भी डॉलर की कीमत बहुत मायने रखती है.