ओपेक देशों के बीच विवाद चलने की वजह से तेल उत्पादक राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था की दयनीय स्थिति सामने नजर आ रही है. रूस की अर्थव्यवस्था इन दिनों बुरे दौर से गुजर रही है. कच्चे तेल के कारोबार पर पड़ रहे असर से इसकी दयनीय स्थिति बनी हुई है. कई जानकार यह बताते हैं कि इस तरह की अर्थव्यवस्था की दयनीय स्थिति सिर्फ रूस के लिए ही नहीं बल्कि उन सभी देशों पर की भी है जिन की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कच्चे तेल के निर्यात पर निर्भर करती है.


रूस के उप विदेश मंत्री के मुताबिक ऐसा मुमकिन है कि कच्चे तेल का उपभोग की चरम सीमा अब गुजर चुकी है, इसमें यह दीर्घकालिक खतरा तब पैदा हुआ कि जब हाइड्रोजन यानी कच्चे तेल और गैस के निर्यात से हासिल होने वाला राजस्व अपने उससे भी ज्यादा घट जाए, ऐसी पहले भी भविष्यवाणी की जा चुकी थी. 


उप विदेश मंत्री के बयान के पहले जारी सेंट्रल बैंक ऑफ रशिया की रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोरोनावायरस की मार दुनिया पर जारी रही तो इस तरह ही रूस के निर्यात में तेल की कीमत में 2021 के दौरान $25 प्रति बैरल तक गिर सकती है. उल्लेखनीय है कि इस तरह की भविष्यवाणी मौजूदा कच्चे तेल के प्रति बैरल की कीमत की आधी होगी.


रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इस तरह की अर्थव्यवस्था में आई मंदी से चिंतित हैं उन्होंने कहा कि अगले 5 साल तक दुनिया में कच्चे तेल की मांग हर साल से 1 फ़ीसदी ही बढ़ रही होगी,  इसके बावजूद भी देश के अंदर मांग में आई गिरावट चिंताजनक है.