अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने अपनी रिसर्च के जरिए माना है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सहयोग से भारत बायोटेक की बनाई हुई कोवैक्सीन कोरोना वायरस के अल्फा और डेल्टा दोनों रूपों को प्रभावी ढंग से बेअसर करती है. इसको लेकर एनआईएच ने बताया है कि जिन लोगों ने कोवैक्सीन की डोज ली थी, उनके रक्त सैंपल के दो अध्ययनों के परिणाम बताते हैं कि वैक्सीन एंटीबॉडी उत्पन्न करती है जो B.1.17 अल्फा और B.1.617 डेल्टा वेरिएंट को प्रभावी ढंग से बेअसर कर देती है. जानकारी के मुताबिक कोवैक्सीन में कोरोना वायरस का एक रूप शामिल है जो वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करता है.


एनआईएच ने बताया कि वैक्सीन के दूसरे चरण के परीक्षण से प्रकाशित परिणाम बताते हैं कि ये सुरक्षित और अच्छी तरह से सहन करने योग्य है. वहीं कोवैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण से सुरक्षा डेटा इस साल के अंत में उपलब्ध हो जाएगा. वहीं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज के निदेशक एंथनी एस फाउची ने कहा कि 'एक वैश्विक महामारी को समाप्त करने के लिए वैश्विक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है'.


एनआईएच ने किया सुनील के शोध का समर्थन


एनआईएच के मुताबिक एनआईएआईडी एडजुवेंट प्रोग्राम ने 2009 से वीरोवैक्स के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुनील डेविड के शोध का समर्थन किया है.


2021 के अंत तक 70 करोड़ डोज का होगा उत्पादन


एनआईएच ने कहा है कि 'कंपनी ने एलहाइड्रॉक्सिकिम-II का व्यापक सुरक्षा अध्ययन किया और उत्पादन को बढ़ाने की जटिल प्रक्रिया को अंजाम दिया है. भारत बायोटेक को 2021 के अंत तक कोवैक्सीन की अनुमानित 70 करोड़ डोज का उत्पादन करने की उम्मीद है'.


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