कोरोना वायरस संक्रमण पर किए गए नये शोध में कुछ चौंकानेवाले खुलासे हुए हैं. कोविड-19 का मानसिक स्वास्थ्य पर पड़नेवाला प्रभाव महामारी के बाद भी लंबे समय तक रह सकता है. शोधकर्ताओं की समीक्षा को द लांसेट साइकियट्री नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है.
बड़े पैमाने पर नौकरी का छिन जाना, सोशल डिस्टेंसिंग के चलते अलग-थलग पड़ जाने से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में बढ़ोतरी के प्रति विशेषज्ञों ने चेताया है. कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक होने के बाद भी बेचैनी, तनाव और मानसिक दबाव का महीनों लोगों को सामना करना पड़ा. उनके मुताबिक उसी तरह आम लोगों के लिए भी खतरों की आशंका बढ़ सकती है.
सार्स और मर्स कोरोनावायरस से ठीक होने के बाद भी तीन साल करीब 15 फीसद लोगों को तनाव, बेचैनी से जूझना पड़ा. ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ता डॉक्टर जोनाथन रोजर्स कहते हैं, “अच्छी बात ये है कि अधिकतर लोग मानसिक बीमारी का शिकार नहीं हुए. यहां तक कि ICU में भर्ती होने पर भी उन्हें मानसिक रूप से बीमार नहीं होना पड़ा. जिसके चलते बड़े पैमाने पर लोग काम पर लौटने में कामयाब रहे.”
उनके मुताबिक कोविड-19 के चलते ICU में होना मानसिक रूप से ज्यादा घातक हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उच्च संक्रमण वाली बीमारी से पीड़ित मरीजों को आराम के सामान्य स्रोत छीन लिए जाते हैं. परिवार के लोग संक्रमित शख्स के पास बैठ नहीं सकते. स्वास्थ्य कर्मियों को भी मरीज के साथ संबंध स्थापित करना मुश्किल हो जाता है. स्वास्थ्य कर्मी सुरक्षित उपकरण पहनकर अपने आप को ढांके हुए रहते हैं. उन्हें आंखों के जरिए ही देखा जा सकता है.
उनका मानना है कि अन्य बीमारियों की तुलना में कोविड-19 ज्यादा तनावपूर्ण हो सकती है. ठीक होने के बाद मरीज वापस सामान्य जिंदगी की तरफ जल्दी वापस नहीं जा पाएंगे. सोशल डिस्टेंसिंग और आर्थिक परेशानी के बीच सामान्य जिंदगी छुपकर रह गई है. नीदरलैंड्स में यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के प्रोफेसर आइरिश सोमर का कहना है कि तनाव बीमारी से ठीक होने के बाद भी रह सकता है.
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