Rishi Sunak Profile: पूरी दुनिया की नजरें इस वक्त ब्रिटेन (Britain) पर हैं. भारत के लोग भी ब्रिटेन पर नजरे जमाए बैठे हैं. वो इसलिए क्योंकि भारतीय मूल के ऋषि सुनक (Rishi Sunak) ब्रिटेन के पीएम पद के बड़े दावेदारों में हैं. गीता पर हाथ रखकर शपथ लेने वाले ऋषि सुनक भले ही भारतीय नागरिक नहीं हैं, लेकिन उनके दिल में भारत बसता है. अगर वो पीएम (PM) बनते हैं तो ब्रिटेन को मिलेगा पहला हिंदू पीएम (Hindu PM) मिल सकता है. भारत से सात हजार किलोमीटर दूर जन्में ऋषि सुनक, देश की उस पीढ़ी की कहानी है जो बंटवारे से पहले देश की मिट्टी छोड़ने को मजबूर हुई. इस वक्त भारत के 140 करोड़ लोगों की नजरें उनपर हैं. ये विधाता का इंसाफ ही है कि अंग्रेजों की तीन सौ साल की गुलामी सहने के बाद आज भारतीय मूल का एक शख्स अंग्रेजी हुकूमत की बागडोर संभालने के मुहाने पर खड़ा है. 


ये बात 1935 की है. उस वक्त ब्रिटेन के राजघराने की बागडोर किंग जॉर्ज पंचम के हाथ में थी. भारत में ब्रिटिश हुकूमत का नेतृत्व कर रहे थे गवर्नर-जनरल फ्रीमैन थॉमस. ये वही साल है जब आजादी की लड़ाई के बीच ब्रिटिश हुकूमत ने एक एतिहासिक कानून ‘द गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935’ पास किया था. 1935 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत की आजादी धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंच रही थी, लेकिन साथ ही देश के कई हिस्सों में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच दंगे भी हो रहे थे. अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गुजरांवाला शहर में भी हिंदू और मुस्लिम समुदाय आमने-सामने थे. उन्हीं हिंदू समुदाय में एक था ऋषि सुनक के दादाजी राम दास सुनक का परिवार. 


ऋषि सुनक के दादा गए थे केन्या


राम दास सुनक और उनकी पत्नी सुहाग रानी सुनक की शादी इन दंगों से कुछ साल पहले ही हुई थी. दोनों काफी पढ़े-लिखे परिवार से ताल्लुक रखते थे. वो गुजरांवाला में फैल रहे सांप्रदायिक तनाव से घबराए हुए थे. ऋषि सुनक की जीवनी 'गोइंग फॉर ब्रोक' (Going For Broke) के लेखक माइकल एशक्रॉफ्ट के मुताबिक 1935 में राम दास सुनक ने गुजरांवाला में बिगड़ते माहौल को देखते हुए तय किया कि यहां से निकलकर ही वो अपना बेहतर भविष्य बना सकते हैं. उन दिनों ब्रिटिश हुकूमत को पूर्वी अफ्रीका में स्किल्ड मैनपावर की जरूरत थी. राम दास सुनक को केन्या के नैरोबी शहर में एक क्लर्क की नौकरी मिल गई. उन्होंने पानी के जहाज का एक वन-वे टिकट बुक कराया और अकले ही केन्या चले गए. 


1937 में दादी भी पहुंची केन्या


राम दास की पत्नी सुहाग रानी सुनक अपने पति के साथ केन्या नहीं गई. वो इसलिए क्योंकि उन्हें लगा कि नई-नवेली दुल्हन को एक नई और अंजान जगह पर ले जाना सुरक्षित नहीं रहेगा. राम दास ने वादा किया कि एक-दो साल में वो उन्हें अपने पास बुला लेंगे. दूसरी तरफ गुजरांवाला में तनाव का माहौल देखते हुए सुहाग रानी सुनक ने भी शहर छोड़ना मुनासिब समझा. वो अपने सास-ससुर के साथ दिल्ली चली गईं. उन्हें अपने पुश्तैनी घर को छोड़ने में बहुत तकलीफ हुई. आखिरकार 1937 में सुहाग रानी अपने पति के पास केन्या चली गईं. 


दोनों के 6 बच्चे हुए


केन्या में राम दास सुनक अच्छा खासा कमाने लगे थे. राम दास ने वहां पर और पढ़ाई-लिखाई कर पेशेवर अकाउंटेंट की डिग्री ले ली थी. पढ़ाई-लिखाई के बाद वो वहां प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर हरंबी हाउस में काम करने लगे जिसे अब केन्या के राष्ट्रपति के घर और दफ्तर के तौर पर जाना जाता है. राम दास ने केन्या को अपनी कर्मभूमि बना लिया था. राम दास सुनक और उनकी पत्नी सुहाग रानी के लिए एक नए देश में नया जीवन शुरू करना आसान नहीं था. केन्या का महौल भारत से बहुत अलग था. वहां पर इन दोनों के 6 बच्चे हुए. तीन बेटे और तीन बेटियां. इन्हीं में से एक थे यशवीर सुनक, जो ऋषि सुनक के पिता हैं. यशवीर सुनक का जन्म 1949 में नैरोबी में हुआ था. 


जानिए ऋषि सुनक के माता-पिता के बारे में


राम दास भले ही भारत को छोड़ चुके थे, लेकिन उन्होंने इस देश से अपना रिश्ता पूरी तरह नहीं तोड़ा. उनके तीनों बेटों ने भले ही केन्या से बाहर निकलकर पश्चिमी देशों में पढ़ाई की, लेकिन दिलचस्प ये है कि अपनी तीनों बेटियों को पढ़ने के लिए उन्होंने भारत भेजा. सुनक परिवार आज भी भारत को अपनी मातृभूमि मानता है. ऋषि सुनक के पिता यशवीर सुनक 1966 में इंग्लैंड के लिवरपूल में पढ़ाई लिखाई करने पहुंचे. उनके भाई हरीश सुनक भी कुछ दिन पहले वहां पहुंच चुके थे. कुछ साल बाद पिता राम दास, मां सुहाग रानी के साथ पूरा परिवार ब्रिटेन में बस गया. 1974 में यशवीर ने लिवरपूल यूनिवर्सिटी से डॉक्टरी की पढ़ाई की और ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस में बतौर डॉक्टर जुड़ गए. अब वो लंदन से करीब 100 किलोमीटर दूर साउथैम्प्टन में रहते हैं. 


नाना भी भारत के पंजाब प्रांत से


ऋषि सुनक की मां ऊषा सुनक और यशवीर सुनक की मुलाकात ब्रिटेन में हुई. ऊषा ने भी ब्रिटेन की एस्टन यूनिवर्सिटी से 1972 में फार्माकोलॉजी की डिग्री ली थी. दोनों को एक दूसरे से पारिवारिक दोस्तों ने मिलाया था. 1977 में इंग्लैंड के लेस्टर शहर में दोनों ने शादी कर ली. खास बात ये है कि ऊषा सुनक के पिता यानी ऋषि सुनक के नाना भी भारत के पंजाब प्रांत से हैं. ऋषि सुनक के नाना रघुबीर बेरी पंजाब में ही पले-बढ़े थे जबकि उनकी नानी स्रक्शा बेरी का जन्म तंजानिया में हुआ था. रघुबीर रेल इंजीनियर के तौर पर तंजानिया काम करने गए थे. वहीं पर उनकी शादी हुई. 1960 के दशक में उनका परिवार भी ब्रिटेन में बस गया. ऋषि सुनक अक्सर अपने भाषणों में नाना-नानी और दादा-दादी का जिक्र करते हैं. 


बचपन में मां के साथ हाथ में बंटाते थे काम


12 मई 1980 को ऋषि सुनक का जन्म साउथैम्प्टन जनरल हॉस्पिटल में हुआ. ये यशवीर और ऊषा सुनक की पहली संतान थी. इसके बाद 1982 में ऋषि के छोटे भाई संजय सुनक का जन्म हुआ और आखिर में 1985 में इनकी छोटी बहन राखी सुनक इस दुनिया में आईं. ब्रिटेन में तीन बच्चों को बड़ा करना और उन्हों अच्छी शिक्षा देना आसान नहीं था. यशवीर इंग्लैंड के नेशनल हेल्थ सर्विस में डॉक्टर के तौर पर काम करने लगे. जबकि उनकी मां ऊषा ने सुनक फार्मेसी नाम की दवा की दुकान शुरू कर दी. ऋषि सुनक के माता-पिता ने दिन-रात एक करके इतना कमाया कि बच्चों को कभी कोई तकलीफ न हो. इसमें उनके बच्चों ने भी काफी साथ दिया. बचपन में ऋषि को पढ़ाई के बाद जब भी समय मिलता था तब वो अपनी मां का हाथ बंटाने के लिए अक्सर उनकी फार्मेसी जाते थे. वो कई बार स्कूल के बाद कस्टमर्स को डिलिवरी देने जाते थे और दुकान का हिसाब-किताब देखते थे. 


साउथैम्प्टन में स्थित मंदिर से है खास लगाव


ऋषि सुनक का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था इसलिए मंदिर जाने की आदत उन्हें बचपन से है. साउथैम्प्टन के हिंदू वेदिक सोसाइटी मंदिर में वो बचपन से दर्शन के लिए जाते रहे हैं. वो यहां की बाल विकास सोसाइटी के मेंबर थे. बचपन में यहां पर होने वाले नाटक, संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में खास तौर पर हिस्सा लिया करते थे. इस मंदिर से उन्हें इतना लगाव इसलिए भी है क्योंकि उनके दादा राम दास सुनक इस मंदिर के फाउंडिग मेंबर थे. फिलहाल उनके पिता यशवीर भी इस मंदिर के ट्रस्ट से जुड़े हैं. यशवीर और ऊषा सुनक मंदिर के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं और यहां पर होने वाले धार्मिक अनुष्ठान में विशेष भूमिका निभाते हैं. ऋषि सुनक अभी भी अक्सर लंदन से साउथैम्प्टन खास तौर पर इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं. वो यहां सेवा के कामों में भी हिस्सा लेते हैं. यहां पर रहने वाले भारतीय मूल के लोगों के बीच उठते-बैठते हैं. उनके साथ उनकी पत्नी और बेटियां भी आती है. 


विंचेस्टर कॉलेज में जगह मिली


ऋषि बड़े होकर राजनीति में जाएंगे ऐसा किसी ने नहीं सोचा था. उनके परिवार का राजनीति से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था. बचपन में उनके पड़ोसी और उनके दोस्तों के मुताबिक वो काफी शांत स्वभाव के थे. 1993 में ऋषि को ब्रिटेन के सबसे मशहूर विंचेस्टर कॉलेज में जगह मिली. ये ब्रिटेन के उन स्कूलों में है जहां पर सिर्फ श्वेत समुदाय के बच्चे ही ज्यादा पढ़ते थे. इतनी महंगी फीस देना सबके बस की बात नहीं. आज के दौर में इस स्कूल की फीस 45 हजार पाउंड सालाना है यानी करीब पैंतालीस लाख रुपये. 


ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में जाने का मौका मिला


ऋषि सुनक के लिए बड़ा मौका तब आया जब 1998 में ग्रैजुएशन के लिए इन्हें ब्रिटेन की सबसे मशहूर और दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटीज में से एक ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी जाने का मौका मिला. ऑक्सफर्ड के लिंकन कॉलेज में इन्होंने फिलोसफी, राजनीति और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की. ऑक्सफर्ड में पढ़ने के दौरान ही ऋषि ने ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी में इंटर्नशिप की. यहीं से उनके राजनीतिक रुझान का थोड़ा पता लगा. विंचेस्टर कॉलेज और ऑक्सफर्ड जैसी बड़ी-बड़ी जगहों पर पढ़ने की वजह से उनके मित्र भी अमीर परिवारों से थे. इसका जिक्र उन्होंने एक डॉक्यूमेंट्री में किया था. 


नारायणमूर्ति की बेटी से हुई शादी


ऑक्सफर्ड में पढ़ाई करने के बाद ऋषि सुनक ने 2001 से 2004 के बीच मशहूर इंवेस्टमेंट बैंक गोल्डमैन सैक्स में नौकरी की. नौकरी करने के बाद उन्होंने एक बार फिर पढ़ाई करने की सोची. उन्हें अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में एमबीए की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया. अपनी प्रतिभा के दम पर उन्होंने मशहूर फुल ब्राइट स्कॉलरशिप जीती. 2006 में उन्होंने स्टैनफर्ड से एमबीए की पढ़ाई पूरी की. अमेरिकी की स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात अक्षता मूर्ति से हुई. अक्षता मूर्ति भारत के मशहूर बिजनेसमैन और इंफोसिस कंपनी के चेयरमैन एनआर नारायणमूर्ति की बेटी हैं. साल 2009 में ऋषि सुनक ने बेंगलुरू में अक्षता मूर्ति से शादी की. 


कौन हैं अक्षता मूर्ति?


अक्षता मूर्ति पेशे से फैशन डिजाईनर हैं. अक्षता ने अमेरिका के कैलिफोर्निया के क्लेरमोंट मैकेना कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रैजुएशन की है. ग्रैजुएशन के बाद उन्होंने फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा किया. इसके बाद उन्होंने स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए किया. अब ब्रिटेन में वो अपना खुद का बिजनेस चलाती है. ऋषि सुनक और अक्षता की दो बेटियां हैं. एक का नाम कृष्णा और दूसरी का अनुष्का है. ऋषि सुनक के मुताबिक उनके ससुर एआर नारायणमूर्ति पर प्रभाव जमाना इतना आसान नहीं है. वो जल्दी इम्प्रेस नहीं होते. जब ऋषि ने राजनीति में आने का फैसला किया था तो नारायणमूर्ति काफी उत्साहित हुए और उन्होंने ऋषि का खूब समर्थन किया. 2015 में जब ऋषि पहली बार सांसद बनने के लिए उत्तरी इंग्लैंड के यॉर्कशर की रिचमंड सीट से खड़े हुए तो नारायणमूर्ति खुद एक साधारण कार्यकर्ता की तरह ऋषि के लिए कैंपेन करने गए थे.  


ब्रिटेन की राजनीति में कब उभरे


ब्रिटेन की राजनीति में तेजी से उभरे ऋषि के लिए बड़ा मौका तब आया जब 2020 में वो बोरिस जॉनसन की सरकार में वो वित्त मंत्री बने. इस दौरान उनके काम को खूब सराहा गया, लेकिन इस दौरान वो थोड़ा विवादों से भी घिरे रहे. खास तौर पर उनकी संपत्ति को लेकर ब्रिटिश मीडिया में काफी हंगामा हुआ. उनकी पत्नी अक्षता और उनकी संपत्ति करीब साढ़े सात सौ मिलियन पाउंड है यानी करीब साढ़े सात हजार करोड़ रुपये. 


ब्रिटेन की महारानी से भी हैं ज्यादा अमीर


इसमें से बड़ा हिस्सा अक्षता (Akshata Murthy) का है क्योंकि उनके पास इंफोसिस के शेयर हैं. ब्रिटेन में वो सबसे अमीर लोगों में से गिने जाते हैं. उनकी संपत्ति ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ (Queen Elizabeth) से भी ज्यादा है. एलिजाबेथ की संपत्ति करीब पांच हजार करोड़ रुपये है. ऋषि सुनक (Rishi Sunak) ब्रिटेन (Britain) के प्रधानमंत्री बने या न बने, लेकिन एक भारतीय मूल के शख्स का ब्रिटेन की राजनीति में इतनी ऊंचाई पर पहुंचना, भारतीय समाज की बढ़ती सामाजिक और सांस्कृतिक ताकत की बड़ी मिसाल है. भारत (India) की आजादी के 75वें साल में भारत को ब्रिटेन से इससे बड़ा गिफ्ट नहीं मिल सकता. 


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