Armenia-Azerbaijan Conflict: कनाडा के साथ विवाद के बीच भारत के लिए एक बुरी खबर सामने आई है. दरअसल, उसका एक मित्र देश बड़ी मुसीबत में घिर गया है. हम बात कर रहे हैं आर्मेनिया की. हाल ही में अजरबैजान ने आर्मेनिया के कब्जे वाले नागोर्नो-काराबाख पर कब्जा कर लिया है. अजरबैजान की ओर से करीब 4403 वर्ग किलोमीटर इलाके पर यह कब्जा किया गया है.


अब इस इलाके में रहने वाले लोग जान बचाने के लिए अपने-अपने घर को छोड़कर दूसरी जगह जाने को मजबूर हैं. इससे आर्मेनिया में शरणार्थी संकट पैदा होता दिख रहा है. भारत के लिए यह चिंता की बात इसलिए है क्योंकि आर्मेनिया को हराने वाला देश पाकिस्तान का दोस्त है. ऐसे में कई विशेषज्ञ इसे भारत से भी जोड़कर देख रहे हैं. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला और कैसे यह भारत पर असर डाल सकता है.


क्या है नागोर्नो-काराबाख, जिसे लेकर हो रहा युद्ध


नागोर्नो-काराबाख को अर्मेनिया के लोग आर्टसख के नाम से भी जानते हैं. यह अजरबैजान के अंदर कराबाख पर्वत श्रृंखला के दक्षिणी छोर पर एक पहाड़ी क्षेत्र है. इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अजरबैजान के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है, लेकिन इसके 120,000 निवासी मुख्य रूप से अर्मेनियाई जातीय के हैं, उनकी अपनी सरकार है जो आर्मेनिया के करीब है लेकिन आधिकारिक तौर पर आर्मेनिया या किसी अन्य देश की ओर से मान्यता प्राप्त नहीं है. अर्मेनियाई जो ईसाई हैं, इस क्षेत्र में ईसा से कई शताब्दियों पहले की लंबी उपस्थिति का दावा करते हैं. वहीं अजरबैजान जिसके निवासी ज्यादातर तुर्क मुस्लिम हैं, इस क्षेत्र के साथ गहरे ऐतिहासिक संबंधों का दावा करते हैं. ऐसे में दोनों देशों के लोग इसे लेकर एक सदी से भी ज्यादा समय से संघर्ष कर रहे हैं.


आर्मेनिया की हार का भारत से क्या संबंध?


बात आर्मेनिया की करें तो यह दक्षिण काकेशस में स्थित एक ईसाई बहुल राष्ट्र है. इसके भारत से अच्छे संबंध हैं और यह भारत का सहयोगी देश है. कुछ समय पहले ही आर्मेनिया ने भारत से पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर समेत टीसी-40 होवित्जर की डील की थी. वहीं, भारत आर्मेनिया को राजनयिक समर्थन देता है. दूसरी तरफ आर्मेनिया का दुश्मन अजरबैजान है और इसकी भारत के दुश्मन पाकिस्तान से अच्छी दोस्ती है. अजरबैजान कश्मीर मुद्दे पर कई बार पाकिस्तान का साथ दे चुका है.


यही नहीं, अजरबैजान को तुर्किए भी समर्थन दे रहा है. वह अजरबैजान का बहुत करीबी मित्र है. वहीं, भारत और तुर्किए के संबंध अच्छे नहीं रहे हैं. दूसरी ओर पाकिस्तान के तुर्किए से काफी अच्छे संबंध हैं. पाकिस्तान, तुर्किए और अजरबैजान ने 2021 में "थ्री ब्रदर्स" रक्षा अभ्यास शुरू किया था. ये तीनों देश कश्मीर पर भी साझा रुख रखते हैं. तुर्किए कई बार कश्मीर पर पाकिस्तान का साथ दिया है. अजरबैजान भी कई मौकों पर कश्मीर के मसले में पाक का साथ दे चुका है. यही वजह है कि विशेषज्ञ आर्मेनिया की हार को भारत के साथ भी जोड़कर देख रहे हैं.


कैसे हारी हुई बाजी जीत गया अजरबैजान?


आज जिस आर्मेनिया को अजरबैजान ने हराया है, उससे कभी वह हार चुका है. नागोर्नो-काराबाख के लोगों ने 1980 के दशक में आर्मेनिया में शामिल होने के लिए वोट किया था. इसके बाद से अजरबैजान के साथ युद्ध छिड़ गया था. 1990 में जाकर आर्मेनिया ने युद्ध जीत लिया. इसके बाद जातीय अर्मेनियाई अलगाववादियों का नागोर्नो-काराबाख पर कब्जा हो गया. पर अजरबैजान चुप नहीं बैठा. उसने खुद को ताकतवर बनाना शुरू किया. तेल और गैस निर्यात की वजह से अजरबैजान की अर्थव्यवस्था बेहतर हुई. तुर्किए और इजराइल से मदद लेकर इसने अपनी सेना को आधुनिक बनाया. 2020 में जाकर इसने आर्मेनिया पर हमला किया और 90 के दशक में खोए हुए अधिकांश क्षेत्रों पर फिर से कब्जा जमा लिया.


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