अफगानिस्तान में दूसरी बार तालिबानी हुकूमत बनने पर पाकिस्तान ने खुशी जताई थी. लेकिन अब यही पाकिस्तान अफगानिस्तान को जवाबी कार्रवाई की धमकी दे रहा है. इसकी वजह तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (TTP) आतंकवादी संगठन है. इस आतंकवादी संगठन की अफगान-पाकिस्तान सीमा के दोनों ओर मजबूत पकड़ है, और ये पाकिस्तानी बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स के खिलाफ लड़ रहा है. टीटीपी सशस्त्र संघर्ष के जरिए एक मजबूत राजनीतिक पकड़ स्थापित करना चाहता है.


मौजूदा वक्त में TTP के हमलों के चलते तनाव बढ़ा हुआ है. ऐसा लगने लगा है कि 14 साल बाद पाकिस्तान एक बार फिर से TTP की वजह से सुरक्षा खतरों का सामना करेगा. याद दिला दें कि 20 सितम्बर, 2008 पाकिस्तान में घरेलू विद्रोह चरम पर था. पाकिस्तान ने इस विद्रोह का जिम्मेदार TTP को ही ठहराया था. 


अफगानिस्तान स्थित एक समाचार आउटलेट के अनुसार, जब से तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता में लौटा है, तब से पाकिस्तान में आतंकी गतिविधि काफी बढ़ गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान को पहले भारत में आतंकवादी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए पाकिस्तान खुद ट्रेनिंग दे रहा था, लेकिन उसी तालिबान शासन ने अब पाकिस्तान को चुनौती दी है.


कुछ दिनों पहले पाकिस्तान के गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह खान ने अफगान-तालिबान सरकार से कहा कि वह अफगान धरती पर आतंकी ठिकाने को नष्ट करे और आतंकवादियों को सुरक्षा बलों को सौंप दे, वरना पाकिस्तान सीमा पार आतंकवादी गतिविधियों को कंट्रोल करने के लिए अफगान क्षेत्र में  तालिबानी ठिकाने पर हवाई हमला कर सकता है. 


मंत्री के बयान के जवाब में तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं कर सकता है और पाकिस्तान के सरकारी अधिकारियों को देश और उसके संबंधों की गरिमा बनाए रखने के लिए बोलते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए. 


रिपोर्ट्स की मानें तो टीटीपी पाकिस्तान पर उसी तरह से कब्जा करना चाहता है जैसे उसने अफगानिस्तान में किया है. पिछले कुछ हफ्तों में अफगान-पाकिस्तान सीमा क्षेत्रों में कई बम विस्फोटों की सूचना मिली है. लगातार हो रहे हमले के बाद अमेरिका को भी बीच में आना पड़ा है. सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान इस बार इन हमलों को राजधानी तक पहुंचने से रोक पाएगा? या पाक और अफगानिस्तान जंग की तरफ जाएंगे. 


पहले समझते हैं TTP कैसे बना और इसके पाकिस्तान में मजबूत होने की क्या कहानी है 


तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पाकिस्तान में एक गैरकानूनी संगठन है. इसकी स्थापना 2007 में इस्लामी आतंकवादियों के एक समूह के रूप में की गई थी. टीटीपी की जड़ें अफगानिस्तान युद्ध से जुड़ी हैं. अफगानिस्तान में इस संगठन ने पश्चिम से लड़ने के अलावा पाकिस्तानी राज्य का भी विरोध किया है. 


संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक टीटीपी अफगानिस्तान में कई हजार लड़ाके भी समेटे हुए है, जिसका गढ़ अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा के दोनों ओर है. टीटीपी की जड़ें अफगानिस्तान पर 2001 के अमेरिकी आक्रमण के बाद अंतर-जिहादी राजनीति के बाद उपजना शुरू हुई थी.


टीटीपी का दावा है कि उसके सशस्त्र संघर्ष का उद्देश्य शरिया कानून को बढ़ावा देना है और पाकिस्तान में एक इस्लामी राजनीतिक प्रणाली स्थापित करना है. टीटीपी का मानना है कि ये एक ऐसा काम है जो 1947 में पाकिस्तान की स्थापना के समय सबसे बड़ा लक्ष्य था. इस मकसद को हासिल करने के नाम पर टीटीपी ने पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर खूनखराबा किया है. 


तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और उससे जुड़े आतंकवादी समूहों ने 2022 में पाकिस्तान में कुल 179 लोगों की हत्या की.


2023 में टीटीपी ने जनवरी में पेशावर की एक मस्जिद में 100 से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी. ये हमला हालिया वर्षों में सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है. टीटीपी के इस हमलों में कम से कम एक दर्जन या उससे ज्यादा लोगों के हताहत होने की भी खबर थी.


दिसंबर 2007 में TTP ने पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को ही मार डाला, जिनकी सरकार ने तालिबान की मदद की थी. भुट्टो की हत्या में जनरल परवेज मुशर्रफ का हाथ होने की बात सामने आई, लेकिन बाद में पूर्वी अफगानिस्तान में टीटीपी से जुड़े 16 साल के एक लड़के ने कबूल किया था कि वह घटनास्थल पर सुसाइड वेस्ट पहनकर बैकअप के तौर पर तैयार बैठा था. बेनजीर अगर पहले फिदाईन से बच जातीं तो वह उन्हें मार डालता. 


2014 में टीटीपी ने एक और बड़ा अटैक किया. उसने पेशावर में एक सैनिक स्कूल को निशाना बनाया. उस हमले में 132 बच्चों सहित डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों की जान चली गई. 


आतंक के जाल में फंसा पाकिस्तान


आतंकी हिंसा में हर साल सैकड़ों लोगों की मौत के साथ पाकिस्तान निश्चित रूप से खुद के पाले हुए आतंकवाद का शिकार बन रहा है. पाकिस्तान दशकों से राज्य नीति के रूप में आतंकवाद का समर्थन करता रहा है. वही टीटीपी जो आज सैकड़ों पाकिस्तानियों की हत्या कर रहा है, जिसे पाकिस्तान ने वर्षों से समर्थन दिया था, वही तालिबान जो अफगानिस्तान के अंदर टीटीपी के सुरक्षित ठिकानों को हटाने से इनकार कर रहा है, उसे पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने सार्वजनिक रूप से अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे का जश्न भी मनाया था. 


अब तालिबान ने टीटीपी के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के साथ ही पाकिस्तान के साथ संबधों को खराब करने की धमकी दे रहा है. आतंक के साथ पाकिस्तान के संबंधों पर लिखते हुए  विशेषज्ञ बिल रोजियो ने द संडे गार्जियन में लिखा कि पाकिस्तान ने संयुक्त राज्य अमेरिका और आतंकवादी समूहों के बीच दोहरा खेल खेला है. जिसका नतीजा उसे भुगतना पड़ रहा है. 


उन्होंने लिखा "पाकिस्तान ने देश में शरण लेने वाले शीर्ष अल कायदा नेताओं और गुर्गों को पकड़ने और मारने में संयुक्त राज्य अमेरिका की मदद की है, लेकिन उसने अफगान तालिबान को फंडिंग, हथियार, सलाह, प्रशिक्षण और सुरक्षित आश्रय देकर दोहरा खेल खेला है. अफगान तालिबान ने पाकिस्तान से अल कायदा और दूसरे आतंकवादी समूहों के लिए भी समर्थन लिया है.  


पाकिस्तानी जानता था कि तालिबान का समर्थन करना उसके देश के लोगों के लिए भी सीधा खतरा है, फिर भी उसने रणनीति के तहत समर्थन करना जारी रखा ताकि भारत में आतंकवादी हमले कराए जा सकें.


आउटलुक में छपी खबर के मुताबिक फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज (एफडीडी) के सीनियर फेलो रोजियो ने कहा, 'यह आतंक का पहिया है, आज भी बेरोकटोक जारी है. अब इसका खामियाजा भुगतने से पाकिस्तान घबरा रहा है'.


तालिबान के साथ टीटीपी के संबंध पाकिस्तान के लिए बना सिर दर्द


अफगानिस्तान में जब दूसरी बार तालिबान की हुकूमत बनी थी तो पाकिस्तान ने खुशी जताई थी. उसे उम्मीद भी थी कि तालिबान सरकार TTP की नकेल कसेगी. लेकिन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और अफगान तालिबान के पुरान संबंध रहे हैं.


टीटीपी ने अपनी स्थापना के समय अफगान तालिबान का विस्तार होने का दावा किया था. द लॉन्ग वॉर जर्नल में छपी एक रिपोर्ट में ये बताया गया है कि टीटीपी और अफगान तालिबान दोनों ने वर्षों से एक-दूसरे की मदद की है.


इस बीच, टीटीपी - जिसका एकमात्र लक्ष्य पाकिस्तान में इस्लामी कानून की स्थापना करना है जैसा कि उसके सहयोगियों ने अफगानिस्तान में कर दिया है, इसी मकसद को पूरा करने के लिए टीटीपी  बेरहमी से पाकिस्तान के नागरिकों पर हमला कर रहा है. 


बता दें कि तालिबान और पाकिस्तान तालिबान  में पश्तून मुसलमान हैं. 1990 के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत संघ का दखल था. तब तमाम अफगानी पाकिस्तान में आ गए थे. 1996 में तालिबान ने पहली बार काबुल पर कब्जा किया, और पाकिस्तान तालिबान ने अफगान तालिबान की मदद की थी.


साल 2001 में अमेरिका ने तालिबान को खदेड़ना शुरू किया, तो अफगान तालिबान ने पाकिस्तान के उन्हीं सीमावर्ती इलाकों में पनाह ली थी, जहां पाकिस्तान तालिबान की जड़े पहले से जमीं थी. वहीं, 2021 में दोबारा सरकार बनने पर तालिबान ने TTP के सैकड़ों लोगों को अफगान जेलों से रिहा कर दिया था. 


बता दें कि पाकिस्तान आर्मी का सीमावर्ती इलाका पंजाबियों और सिंधियों के दबदबे वाला इलाका है. वहां के लोग टीटीपी को लेकर ज्यादा नाराज रहते हैं, लेकिन टीटीपी अफगान तालिबान की ही तरह पाकिस्तान में अपनी हुकूमत कायम करना चाह रहा है. 


इस पूरी कहानी में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के इतिहास की भी भूमिका रही है. डूरंड लाइन दोनों देशों की सीमा तय करती है, अफगानों का मानना है कि अंग्रेजों ने यह सीमा मनमाने ढंग से तय कर दी और अभी पाकिस्तान में जो सीमावर्ती पश्तून इलाके हैं, वे दरअसल अफगानिस्तान में होने चाहिए. अफगान तालिबान का भी यही रुख है. टीटीपी और अफगान तालिबान के रिश्तों के इन पहलुओं से पार पाना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं है. 


क्या TTP पर काबू पाने के लिए पाकिस्तान अफगानिस्तान पर हमला कर सकता है?


तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) ने 30 जनवरी को पेशावर के उच्च सुरक्षा वाले पुलिस लाइंस इलाके में एक मस्जिद पर हमला किया था. 100 से ज्यादा लोग मारे गए और 200 से अधिक घायल हो गए, हताहतों में से अधिकांश अधिकारी सहित सुरक्षाकर्मी थे. टीटीपी ने हाल के दिनों में पाकिस्तान में पुलिस थानों और सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर हमले तेज कर दिए हैं. 


पिछले साल नवंबर तक, टीटीपी पाकिस्तानी सरकार के साथ बातचीत कर रहा था, लेकिन फिर उसने संघर्ष विराम की समाप्ति की घोषणा की और पाकिस्तानी राज्यों के खिलाफ आक्रमण की घोषणा कर दी. तब से अब तक सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. 


पाकिस्तान सरकार को उम्मीद थी कि काबुल में तालिबान के सत्ता में आने से टीटीपी को काबू करने में मदद मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. शीर्ष पाकिस्तानी मंत्रियों ने काबुल का दौरा किया है, लेकिन अभी तक कोई ठोस समझौता नहीं हुआ है. पाकिस्तानी घबराया हुआ  है और राहत के लिए बेताब है क्योंकि वह वित्तीय और सुरक्षा संकट की दोहरी मार से जूझ रहा है. 


पाकिस्तान अब अफगान तालिबान को 2020 के दोहा एग्रीमेंट की याद दिला रहा है. दोहा एग्रीमेंट के तहत ये समझौता हुआ था अफगानिस्तान किसी भी आतंकवादी गुट को अपने इलाके से काम नहीं करने देगा. दोहा एग्रीमेंट की याद दिलाने पर तालिबान सरकार ने कहा है कि टीटीपी के लोग उसके इलाके में नहीं हैं. उसने यह भी कि दोहा करार अमेरिका के साथ हुआ था, पाकिस्तान के साथ नहीं. 


अफगानिस्तान के ऐसे रुख पर पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा है कि अफगानिस्तान ‘पड़ोसी और दोस्ताना मुल्क होने का अपना फर्ज भूल रहा है . 50-60 लाख अफगान लोगों ने 40-50 सालों तक पाकिस्तान में शरण ली थी. दूसरी तरफ पाकिस्तानियों का खून बहाने वाले आतंकवादियों को अफगानिस्तान में पनाह मिल रही है. यह सब नहीं चलने दिया जाएगा.  हम अपने इलाके में रहते हुए भी आतंकवादियों पर एक्शन ले सकते हैं'.


दूसरी तरफ 12 जुलाई को पेशावर में TTP के हमले के बाद जनरल मुनीर ने 14 जुलाई को अफगान तालिबान को चेतावनी दी. मुनीर ने कहा कि अफगानिस्तान की तरफ से उचित कदम नहीं उठाए जाने पर पाकिस्तान फौज ‘प्रभावी कार्रवाई’ करेगी. जनरल मुनीर ने सेना के कोर कमांडरों की मीटिंग भी बुलाई. कड़े होते तेवरों से ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान फौज सीमावर्ती अफगान इलाकों में एक्शन ले सकती है और ऐसा हुआ तो तालिबान चुप बैठेगा, ऐसा लगता नहीं है.