कानपुर: 2019 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी अपना गढ़ भी नहीं बचा पाई. मोदी लहर की सुनामी में समाजवादी पार्टी का किला ढह गया. बीजेपी करीब 23 सालों बाद कन्नौज में कमल खिलाने में कामयाब हो गई.  समाजवादी पार्टी ने कन्नौज के स्थानीय नेताओं से दूरी बनाई और वहीं नेता बीजेपी के लिए वरदान साबित हो गए. सपा इन्हीं नाराज नेताओं के बल पर बीते दो दशकों से कन्नौज लोकसभा सीट पर राज कर रही थी.


2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के नाराज नेताओं से बीजेपी ने नजदीकियां बढ़ी. जिसका परिणाम ये निकला कि डिंपल को हार का सामना करना पड़ा और कन्नौज में बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब हुई.


बीते कई दशकों से शिवपाल सिंह यादव कन्नौज का जमीनी मैनेजमेंट देख रहे थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी शिवपाल सिंह यादव ने कन्नौज का मैनेजमेंट संभाला था. जिसकी वजह से डिंपल यादव बहुत ही नजदीकी जीत हासिल की थी.


कन्नौज लोकसभा सीट में आने वाली रसूलाबाद विधानसभा सीट में डिंपल यादव को सबसे बड़ी हार कर सामना करना पड़ा है. डिंपल यादव रसूलाबाद विधानसभा सीट से 16970 वोटों से हार मिली है. इस विधानसभा सीट से हार की सबसे बड़ी वजह है सपा सरकार में पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवकुमार बेरिया और पूर्व ब्लाक प्रमुख रहे कुलदीप यादव. सपा मुखिया अखिलेश यादव ने शिव कुमार बेरिया और कुलदीप यादव को दिसंबर 2018 में पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था. बीजेपी ने शिवकुमार बेरिया और कुलदीप यादव की टीम के साथ मिलकर रसूलाबाद को जीतने की रणनीति बनाई थी. जिसका नतीजा ये निकला कि सुब्रत को रसूलाबाद विधानसभा सीट पर 1,02,511 वोट मिले और डिंपल यादव को 85,541 वोट मिले है.


उमर्दा ब्लाक प्रमुख अजय वर्मा बीते कई वर्षो तक समाजवादी पार्टी की सेवा की थी. ब्लाक प्रमुख के चुनाव में अजय वर्मा और अखिलेश यादव में मनमुटाव हो गया था. इसके बाद अजय वर्मा ने सपा छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. अजय वर्मा ने उमर्दा ब्लाक में अविश्वास प्रस्ताव लाकर सपा के इन्द्रेश यादव को हटाकर खुद ब्लाक प्रमुख बन गए थे. तिर्वा विधानसभा सीट पर अजय यादव की जबर्दस्त पैठ है. जिसका खामियाजा लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव को उठाना पड़ा है. अजय वर्मा के कहने पर एससी वोटर ने बीजेपी का साथ दिया है. तिर्वा विधानसभा में बीजेपी के सुब्रत पाठक ने सपा की डिंपल यादव को 15358 वोटों से हराया है.


कन्नौज के जमीनी नेता पूर्व विधायक अरविंद प्रताप सिंह भी अखिलेश यादव से नाराज थे. उन्होंने सपा छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. अरविंद प्रताप सिंह ने ब्राह्मण और क्षत्रिय वोटरों में सेंध लगाने का काम किया. सुब्रत पाठक को गांव और कस्बों में प्रभावशाली लोगों से मिलवाने और बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया है.


2017 विधानसभा चुनाव से पहले शिवपाल सिंह यादव कन्नौज की टीम को मैनेज करने का काम करते थे. वो सभी जमीनी नेताओं का ख्याल रखते थे उनकी समस्याओं को सुनते थे. इसके साथ ही नेताओ से किए गए वादों को पूरा करते थे. इसी वजह से समाजवादी पार्टी कन्नौज में सबसे मजबूत स्थिति में थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में शिवपाल सिंह का ही मैनेजमेंट था जिसकी वजह से मोदी लहर भी डिंपल यादव हराने में कामयाब नहीं हो पाई थी.


अति आत्मविश्वास डिंपल यादव की हार का सबसे बड़ा कारण है. सपा ने बसपा से गठबंधन करने के बाद डिंपल की जीत का दावा कर दिया था. सपा ने आकलन किया था ओबीसी ,मुस्लिम और एससी वोटर गठबंधन होने के बाद सपा का साथ देगा. लेकिन सपा ने जमीनी स्तर पर कन्नौज कोई भी रणनीति नहीं तैयार कि क्यों कि उसे अति आत्मविश्वास था कि कन्नौज में उनकी जीत तय है.


2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सुब्रत पाठक ने सपा की डिंपल यादव को 12,353 वोटों से हराया है. सुब्रत को 5,63,087 वोट मिले हैं. वहीं डिंपल यादव को 5,50,734 वोट हासिल हुए हैं. नोटा करने वालों की संख्या 8142 है.


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