नई दिल्ली: बिहार में नीतीश कुमार एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गये हैं जिससे निकलने के लिए उन्होंने अपनी चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को आगे किया है. आज उन्हें पार्टी का उपाध्यक्ष बनाकर नंबर दो की कुर्सी दी गई. ऐसा करने के पीछे खास तरह की रणनीति है. दरअसल एससी-एसटी एक्ट, प्रमोशन में आरक्षण, सवर्णों पर केस, नेताओं के खिलाफ नाराजगी, मंत्रियों का घेराव, नीतीश कुमार की तरफ चप्पल और कांग्रेस का बढ़ता प्रभाव, ये वो कारण हैं जिसकी वजह से पिछले कई दिनों से बिहार की राजनीति अपने चरम पर है. जेडीयू और बीजेपी के मंत्री जहां भी जा रहे हैं, वहां उन्हें सवर्ण समाज के लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ रहा है.
पिछले बीस दिनों में भागलपुर में अश्विनी चौबे, गोपालगंज में स्मृति ईरानी, मुजफ्फरपुर में रामकृपाल यादव, सासाराम में मनोज तिवारी, लखीसराय में ललन सिंह और भागलपुर में शाहनवाज हुसैन जैसे नेताओं को सवर्णों के विरोध का सामना करना पड़ा है. खुद सीएम नीतीश कुमार पर पिछले हफ्ते चप्पल फेंकी गई.
ये उस समाज की नाराजगी है जो एनडीए का परंपरागत वोटर रहा है. अब नीतीश और बीजेपी के सामने चुनौती ये आ रही है कि इस समाज को कैसे साधकर रखा जाए. क्योंकि कांग्रेस इस समाज के दम पर मजबूत हो रही है और बीजेपी के सांसद सीपी ठाकुर से लेकर जहानाबाद के सांसद अरुण कुमार तक बिहार सरकार से नाराज चल रहे हैं. अरुण कुमार कहने को तो एनडीए में हैं लेकिन नीतीश पर बरस रहे हैं.
अब सवर्ण समाज के इस विरोध की बारिश को थामने के लिए एक बड़ी प्लानिंग की जा रही है. जेडीयू यानी नीतीश कुमार ने चुनावी रणनीतिकार और पिछले महीने ही पार्टी में शामिल हुए प्रशांत किशोर को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है. प्रशांत किशोर ब्राह्मण जाति के हैं. उनका कद बढ़ाकर ये संदेश देने की कोशिश है कि नीतीश कुमार सवर्णों का भी खयाल रखते हैं. वहीं बीजेपी खेमे से मिली जानकारी के मुताबिक केंद्र में मंत्री बीजेपी के एक बड़े और दबंग सवर्ण नेता को बिहार में डिप्टी सीएम बनाने पर विचार हो रहा है, ताकि सवर्णों की नाराजगी पर पानी डाला जा सके. माना जा रहा है कि दशहरा के बाद यानी अगले हफ्ते बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है, जिसमें 2019 की तैयारी के हिसाब से फैसले लिए जाएंगे.
बिहार में करीब 15 फीसदी सवर्ण वोटर हैं. कांग्रेस की नजर ब्राह्मण और भूमिहार वोट बैंक पर है. ये दोनों जातियां बीजेपी को वोट करती रही हैं. सवर्णों की नाराजगी का फायदा अगर कांग्रेस ने उठा लिया तो बिहार नीतीश और बीजेपी के लिए लोकसभा ही नहीं बल्कि विधानसभा चुनाव में भी दिक्कत होगी. यही वजह है कि भूमिहार और ब्राह्मण नेताओं को तरजीह देने की तैयारी हो रही है.