नई दिल्ली: साल 2017 अपने शुरुआत से ही भारतीय राजनीति के लिए बेहद अहम होने जा रहा है और इसके सबसे बड़े कारण हैं पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव, जिनमें खासा अहम है यूपी और पंजाब. वैसे तो सभी राज्यों के चुनाव बीजेपी के लिए अहम है लेकिन नजरें यूपी पर टिकी हुई हैं, जिसके बूते 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की पटकथा लिखी जाएगी.
हाल ही में यूपी में सीएसडीएस (सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड पॉलीटिक्स) द्वारा किए गए एक ताजा सर्वे में पाया गया है कि लोगों के बीच पीएम मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की लोकप्रियता सबसे अधिक है. इस सर्वे के नतीजे अपने आप में खास हैं, क्योंकि जहां एक तरफ यूपी में सपा परिवार में मचे घमासान से पार्टी की साख पर असर पड़ा है, वहीं बीजेपी यूपी को फतह करने की हरसंभव कोशिशों में लगी हुई है.
सर्वे में लोगों ने पीएम मोदी के बड़े फैसले लेने के अंदाज को सराहा है तो वहीं अखिलेश यादव के विकास कार्यों के लिए पसंद किया गया है. लोगों ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जबाव देने के लिए केंद्र सरकार की वाहवाही की है. सर्वे में लोगों ने सर्जिकल स्ट्राइक के फैसले का जोरदार स्वागत किया है.
सीएसडीएस कानपुर के निदेशक प्रो. एके वर्मा ने कहा कि जहां लोग पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिए जाने के फैसले से खुश हैं तो वहीं सत्तारुढ़ पार्टी सपा द्वारा गांवों में किए गए विकास और राज्य के इन्फास्ट्रक्चर में किए गए सुधार से खुश हैं.
अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में प्रो. एके वर्मा के अनुसार लखनऊ मेट्रो, लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे, पुल निर्माण और बिजली की स्थिती में सुधार जैसे अहम मुद्दों के लिए शहरी वोटर्स सपा के कामकाज से संतुष्ट हैं. इसके साथ ही किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त पानी दिए जाने जैसी सुविधाओं के दम पर सूबे की सरकार ने अपनी पैठ मजबूत की है. इतना ही नहीं समाजवादी पेंशन योजना और कन्या विद्या धन जैसी स्कीम्स के बूते अखिलेश यादव ग्रामीण इलाकों में रहने वाले मतदाताओं को आकर्षित करने में कामयाब रहे हैं.
सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि मोदी सरकार द्वारा ट्रिपल तलाक का विरोध किए जाने से मुस्लिम मतदाताओं में हलचल पैदा हुई है और कुछ लोगों की नाराजगी भी है. लेकिन बीजेपी के लिए सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि ट्रिपल तलाक का विरोध किए जाने के बाद मुस्लिम महिला मतदाताओं का बीजेपी की तरफ झुकाव बढ़ा है क्योंकि वे इस तरह के मुद्दों का खुले तौर पर समाज में विरोध नहीं कर पाती हैं.