कुशीनगर: कौन कहता है कि आसमां छेद नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों. कुछ ऐसा ही कारनामा कुशीनगर की दो बेटियां कर रही हैं. पिता को लकवा मारने के बाद इन दोनों बेटियों ने पूरे परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रखा है. बेटियों ने बिना लाज, शर्म, संकोच छोड़कर पिता का काम सीखा और फिर खुद नाई बन गईं. परिवार चलाने के लिए इन दोनों बहनों ने अपना हुलिया तक बदल दिया. दोनों बहनों ने अपना नाम भी बदलकर लड़कों वाला रख दिया.
कुशीनगर के कसया तहसील के बनवारी टोला चौराहे पर अपने पिता की छोटी सी दुकान को दोनों बेटियां चलाती हैं. सामाजिक बंधनों को दरकिनार करते हुए नाई बनी इन बेटियों नें अपने परिवार को सहारा दिया है जिससे आज इस परिवार का पेट भरता है. सबसे पिछड़े इलाकों में शुमार कुशीनगर के एक छोटे से चौराहे पर अपने बुलंद हौंसलों और समाज की परवाह किये बिना इन बेटियों ने हेयरकटिंग का जो काम शुरू किया है, वह अपने आप में नजीर है. इन दोनों बेटियों के हौंसलों को स्थानीय लोगों के साथ सुनने वाले सभी लोग सैल्यूट कर रहे हैं.
बनवारी टोला गांव निवासी ध्रुव नारायण गांव में गुमटी लगा दाढ़ी-बाल बनाने का काम किया करते थे. छह बेटियों के पिता ने छोटी सी दुकान की कमाई के बूते चार बेटियों के हाथ पीले कर दिए. सब ठीक चल रहा था. अब दो छोटी बेटियों की जिम्मेदारी ही सिर पर थी. 13 साल की ज्योति और 11 साल की नेहा. दोनों स्कूल में पढ़ती थीं. साल 2014 में ध्रुव नारायण को लकवा मार गया. हाथ-पैर ने काम करना बंद कर दिया. अब दुकान बंद हो गई..घर का चूल्हा जलना दूभर हो उठा परिवार में फांकाकशी की नौबत आ गई. ऐसे में इस परिवार की बेटी ज्योति ने पिता की बंद पड़ी दुकान को खोला और वहां हेयरकटिंग करना शुरू कर दिया. काम कतई आसान न था लेकिन कोई और रास्ता भी नहीं था इसलिए ज्योति को लोगों का ताना सुनने के बाद भी काम करना पड़ा.
इंटर पास ज्योति ने पांच साल में पिता की गुमटीनुमा दुकान को सलून की शक्ल दे दी. काम बढ़िया चल रहा है. छोटी नेहा भी दीदी का हाथ बंटाने लगी है. दोनों बहनों ने परिवार को भंवर से उबार लिया है. आज लोग इन्हें हैरत से देखते हैं. स्वाभाविक भी है. लोगों ने लड़कियों को ये काम करते न तो कभी देखा था न सुना था. ज्योति बताती है, यह काम बहुत कठिन था. तमाम तरह की परेशानियां आईं. लेकिन उनके पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं था. बेटियों ने हिम्मत नहीं छोड़ी. जैसे-जैसे हिम्मत बढ़ती गई हालात बदलते गए. ज्योति का कहना है कि आज नेहा भी मेरे साथ दुकान में लोगों के दाढ़ी-बाल बनाने का काम करने लगी है. हमारी कमाई से ही घर का खर्च चल रहा है और पिता का इलाज भी चल रहा है.
ज्योति का कहना है कि हमारे समाज में यह काम पुरुष ही करते आए हैं. जैसे मेरे दादा-परदादा और पिता ने भी किया. मैंने जब पिता की दुकान संभाली तो बहुत परेशानी हुई. इतनी कि मुझे अपना वेश बदलने को मजबूर होना पड़ा. लड़कों जैसे बाल रखे, लड़कों जैसे कपड़े पहने और लड़कों सा बर्ताव करती. नाम भी बदला. दीपक उर्फ राजू. इन सब से थोड़ी आसानी हुई।.लोगों को पता चल ही जाता है. लेकिन तब तक लोग भी इस नई व्यवस्था में ढलते गए. आज यहां सभी को पता है कि हम लड़कियां हैं. ज्योति और नेहा बतातीं हैं कि दुकान से रोजाना 400 तक कमा लेती हैं. आजकल पिता भी साथ आते हैं. दुकान के बाहर बैठे रहते हैं. इससे संबल मिलता है.
पिता ध्रुव नारायण का कहना है कि ईमानदारी के काम से कमाती हैं मेरी बेटियां. समाज क्या कहता है, इसकी चिता नहीं हैं. मुझे खुशी है इनके इस साहस ने परिवार को संभाल लिया. मेरी बेटियां बेटों के समान हैं. उनके इस साहस और संघर्ष को देख आंखें भर आती हैं, लेकिन सीना गदगद हो जाता है.
मां लीलावती कहती हैं कि पति के लकवा मारने के बाद परिवार पर मुसीबत आ गई जिसके बाद दोनों बेटियों ने हेयरकटिंग शुरू कर दिया. उनका कहना है कि मेरी बेटियों ने जिस तरह हिम्मत जुटा परिवार को संकट से उबारा, पूरा घर संभाला है, मुझे उनके इस साहस पर लाज नहीं, नाज है. बावजूद इसके लीलावती अब अपनी दोनों बेटियों को काम छोड़ने के लिए कहती हैं लेकिन नेहा और ज्योति परिवार की बिगड़ी माली हालत देखकर अभी भी काम करती है.
इन बेटियों की कहानी सुन क्षेत्रीय विधायक भी पहुंचे और उन्होंने दोनों बेटियों के सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने की बात कही. कुशीनगर से विधायक रजनीकांत मणि त्रिपाठी ने दोनों बेटियों की हौंसला अफजाई करते हुए कहा कि शासन और प्रशासन बेटियों और महिलाओं को मुख्यधारा में लाने के कृत संकल्पित है. इन दोनों बेटियों की भी हर संभव मदद की जायेगी.