जम्मू: हाई कोर्ट की डिवीज़न बेंच ने जम्मू कश्मीर लैंड एक्ट जिसे रोशनी एक्ट भी कहा जाता है, पर गंभीर सवाल उठाए हैं. गौरतलब है कि साल 2001 में तत्कालीन नेशनल कांफ्रेंस सरकार ने इस एक्ट को बनाया था. जिसके मुताबिक 1999 से पहले कब्ज़े वाली सरकारी ज़मीन के पैसे लेकर मालिकाना हक़ देने का प्रावधान था. इस एक्ट को जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए डिवीज़न बेंच ने कहा कि जम्मू कश्मीर में यह किस तरह की व्यवस्था बनाई गयी थी. जिसमें सरकारी ज़मीनों पर क़ब्ज़े करने वालों को ही ज़मीन का मालिक बना दिया गया.


इस एक्ट पर सवाल उठाते हुए बेंच ने कहा कि क्या देश या केंद्र के किसी अन्य राज्य में ऐसा कोई कानून है, जिसमें सरकारी ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने वालों को उस ज़मीन का मालिकाना हक़ दिया गया हो. बेंच ने आगे कहा कि अगर देश के किसी हिस्से में ऐसा कानून है तो उस कानून की कॉपी बेंच के सामने पेश की जाए.


अधिवक्ता अंकुर शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए बेंच के पूर्व निर्देश अनुसार सरकार की तरफ से गुरुवार को इस एक्ट का लाभ पाने वालों की सूची बेंच के सामने पेश की गयी. इस सूची में दावा किया गया है कि जम्मू संभाग में 25 हज़ार और कश्मीर में 4500 लोगों को लाभ दिया गया. वहीं, बेंच ने राजस्व विभाग को यह निर्देश भी दिए कि विभाग के सचिव या उससे उच्च पद का कोई अधिकारी यह हलफनामा दे कि जो सूची बेंच के सामने पेश की गयी है वो सही है.


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गौरतलब, है कि तत्कालीन नेशनल कांफ्रेंस सरकार ने साल 2001 में रौशनी एक्ट बनाया था. इस एक्ट में 1999 से पहले क़ब्ज़े वाली सरकारी ज़मीनों के पैसे लेकर मालिकाना हक़ देने की बात थी. इससे मिलने वाले पैसे को बिजली सेक्टर ने निवेश करने की बात कही गयी थी. बाद में इस एक्ट को रद्द कर दिया गया.


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