पटना: करीब 21 लाख की आबादी वाला शहर पटना इन दिनों पानी-पानी है. ज्यादातर सड़कें पूरी तरह डूब चुकी हैं. अस्पतालों के वॉर्ड तक में पानी भरा है और ऊपर पलंग पर मरीज मौजूद हैं. 40 सालों में पहली बार पटना में बारिश के बाद ऐसी तबाही मची है लेकिन पटना डूबा क्यों? इस खबर में हम इसी सवाल का जवाब तलाशेंगे.

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पटना के राजेंद्र नगर में कई हिस्से ऐसे हैं जहां एनडीआरएफ की रेस्क्यू बोट नहीं पहुंच पा रही. लोग बच्चों के पानी और दूध के लिए साड़ी और दुपट्टों की मदद से एक किनारे से दूसरे किनारे तक सामान पहुंचा रहे हैं. ये उस पटना की हालत है जो कभी मगध साम्राज्य का सबसे बड़ा सत्ता का केंद्र हुआ करता था. ये वो पटना है जिसे भविष्य में स्मार्ट सिटी बनाने की योजना है. बता दें कि पटना को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 620 करोड़ का बजट रखा गया है.

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जिस शहर का इतिहास इतना स्मृद्ध है, जिस शहर के लिए भविष्य की महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं वो शहर नाले के गंदे पानी में इसलिए डूबा है क्योंकि उसके ड्रेनेज सिस्टम पर कभी कोई काम ही नहीं हुआ.

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साल 2017 में पटना नगर निगम पर कैग की रिपोर्ट बताती है कि नागरिक सुविधाएं मुहैया कराने वाली योजना की कोई तैयारी ही नहीं थी. सुविधाओं के लिए पैसा दिया गया लेकिन वो इस्तेमाल ही नहीं हुआ. 31 करोड़ के बारे में ये हिसाब ही नहीं है वो कहां खर्च किया गया.

Flood in Patna

सत्ता संभालने वालों ने ड्रेनेज सिस्टम पर कोई काम नहीं किया और अब पटना के डूबने पर कह रहे हैं कि ये तो कुदरत का कहर है. सवाल ये भी है कि पटना की भौगोलिक स्थिति जानने के बाद भी हालात से निपटने के इंतजाम क्यों नहीं किए गए.

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पटना शहर सोन और गंगा नदी से घिरा हुआ है. इसके अलावा कुमकुम और कुछ दूसरी नदियां पटना से सटी हुई हैं. जबकि पटना शहर कटोरे जैसे आकार का है और ये निचले इलाके में है. यानि बहुत ज्यादा बारिश होने पर पटना शहर का पानी बाहर नहीं निकल पाता और ओवरफ्लों होने की वजह से नदियों का पानी भी शहर के भीतर घुसने लगता है.

Weather: Flood in Patna

पटना को लो लाइंग कहकर राज्य की सरकार टोपी ट्रांसफर कर देती है लेकिन यूरोप के एक देश नीदरलैंड्स का उदाहरण सबके सामने है. नीदरलैंड्स का 50 फीसदी हिस्सा समंदर से निचले इलाके में है यानि लो लाइंग है लेकिन नीदरलैंड्स ने अपना ड्रेनेज सिस्टम इतना एडवांस किया है कि वो पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया है.

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वहां के पार्क और सार्वजनिक जगहों पर ऐसी व्यवस्था की गई है कि अगर बहुत ज्यादा बारिश होती है तो उस पानी को शहर से बाहर निकालकर उसको इकट्ठा किया जा सकता है. बजट तो पटना के लिए भी मिलता है लेकिन नीदरलैंड्स और पटना में फर्क इतना है कि वहां का सिस्टम जागरूक है लेकिन बिहार में इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया.