लखनऊ: 2019 लोक सभा चुनाव से पहले तैयारी में बीजेपी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. यूपी में लोकसभा की 80 सीटें है और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने 73+ का चुनावी लक्ष्य बनाया है लिहाज़ा संभावित गठबंधन से पहले बीजेपी सभी जातियों का सामाजिक सम्मलेन कर रही है. बीजेपी 7 सितम्बर से लखनऊ में 20 जातियों का सम्मलेन कर रही है जो 24 सितम्बर तक चलेगा.
दिल्ली की गद्दी का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है, सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें यूपी से ही हैं और माना जाता है जिसने यूपी में जो ज्यादा सीट पाता है, केंद्र में उसकी सरकार बनना तय रहता है. पिछली बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 73 सीटें मिली थीं. सपा से मुलायम सिंह यादव का परिवार और कांग्रेस से राहुल और सोनिया गांधी ही जीत पायी थीं, जबकि बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली थी. लिहाज़ा इस बार संभावित महागठबंधन की चर्चा चल रही है. लेकिन बीजेपी भी इतनी आसानी से इन्हें कामयाब नहीं होने देना चाहती है. पिछले लोकसभा चुनाव में जातीय राजनीति का समीकरण ध्वस्त करने वाली बीजेपी सभी जातियों को साध रही है.
''सबका साथ सबका विकास'' का नारा देने वाली बीजेपी अब जातीय सम्मलेन कर रही है. आज बीजेपी ने केवल जाट वर्ग का सम्मलेन ही नहीं किया बल्कि उनके आरक्षण की मांग का भी साथ दिया.इन सम्मेलनों की कमान बीजेपी का पिछड़ा चेहरा रहे और उसी आधार पर डिप्टी सीएम बने केशव प्रसाद मौर्या कर रहे हैं. लेकिन आज के कार्यक्रम में सीएम योगी आदित्यनाथ भी शामिल हुए.
अब तक बीजेपी प्रजापति समाज राजभर समाज नाई समाज अर्कवंशीय समाज विश्वकर्मा समाज पाल बघेल समाज साहू राठौर समाज लोधी समाज भुर्जी समाज निषाद कश्यप समाज हलवाई समाज चौरसिया समाज यादव समाज जायसवाल समाज जाट समाज का सम्मलेन कर चुकी है.
आने वाले दिनों में स्वर्णकार समाज कुर्मी पटेल समाज चौहान लोनिया समाज गुजर समाज दर्जी छीपा समाज मौर्या कुशवाहा समाज और शाक्य सैनी समाज का सम्मलेन किया जायेगा. बीजेपी ने इन जातियों के सम्मलेन को सामाजिक सम्मलेन कह रही है.एसटी-एससी एक्ट का दुरूपयोग नहीं होगा बल्कि सबके साथ न्याय होगा. ये मूलमंत्र इन सम्मेलनों में जरूर दिया जा रहा है.
इसके पहले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ खुद दलित गावों रात बिताने और सहभोज का कार्यक्रम कर चुके हैं. इन सम्मेलनों में आये कार्यकर्ताओं और प्रतिनिधियों को बूथ की भी ज़िम्मेदारी दी जा रही है. इनके समाज को बीजेपी से जोड़ने की भी जिम्मेदारी दी जा रही है. यानि आगामी लोकसभा चुनाव में ''साफ़ नियत सही विकास'' के नारे के साथ ही बीजेपी जातीय समीकरण को भी आज़माने जा रही है.