मुंबई: एनआईए के अधिकारों को लेकर केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार में टकराव शुरू हो गया है. हाल ही में केंद्र सरकार ने एल्गार परिषद मामले की जांच एनआईए को सौंपी है. ये जांच अब तक महाराष्ट्र की पुणे पुलिस कर रही थी. महाराष्ट्र सरकार ने इसे अपने अधिकारों का अतिक्रमण बताया है.


31 दिसंबर 2017 को महाराष्ट्र के पुणे में एक एल्गार परिषद का आयोजन किया गया था. पुणे पुलिस का आरोप है की इसी परिषद में जातीय हिंसा की योजना बनाई गई. परिषद के आयोजन के अगले ही दिन पुणे के पास भीमा कोरेगांव में दंगे भड़क उठे थे. इस सिलसिले में पुणे पुलिस ने नौ लोगों को गिरफ्तार किया था. ये सभी नौ लोग जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं और जन अधिकारों के लिए संघर्ष करते आए हैं. देवेंद्र फडणवीस सरकार के कार्यकाल में गिरफ्तार किए गए लोगों पर पुलिस ने अर्बन नक्सल होने का आरोप लगाया था.


हाल ही में एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक पत्र लिखा और कहा, "फड़नवीस सरकार ने गिरफ्तार किए गए लोगों को झूठे मामले में फंसाने की साजिश रची थी. गिरफ्तार लोगों पर दर्ज आपराधिक मामलों की समीक्षा की जरूरत है और इसके लिए एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम गठित की जानी चाहिए."


पवार के सुझाव के बाद महाराष्ट्र सरकार हरकत में आई. राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने एक समीक्षा बैठक बुलाई जिसमें पुणे पुलिस के आला अधिकारियों से कहा गया कि वे गिरफ्तार किए गए लोगों से संबंधित सबूत पेश करें. अभी उस समीक्षा बैठक का कोई नतीजा निकला भी नहीं था कि, केंद्र सरकार ने झटपट मामले की जांच को ही पुलिस से ट्रांसफर करके एनआईए को दे दिया.


सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर दो साल बाद अचानक केंद्र सरकार को ये मामला एनआईए को देने की क्यों सूझी. इसे केंद्र की ओर से राज्य सरकार के अधिकारों पर अतिक्रमण के तौर पर भी देखा जा रहा है, क्योंकि कानून व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी राज्य सरकार का विषय है. एन आई एक्ट में जांच एजेंसी को ये अधिकार दिए गए हैं की, वो खुद से किसी मामले की जांच अपने अधीन लेकर तहकीकात शुरू करें.


महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के मुताबिक केंद्र सरकार को इस मामले में दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए थी. उन्होंने इस हरकत को असंवैधानिक बताया है.


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