सितंबर, साल 1947. भारत की आजादी को महीना भर से ज्यादा हो चुका था. जम्मू–कश्मीर अभी भी न भारत में शामिल हुआ था न पाकिस्तान में. हरि सिंह जम्मू कश्मीर के महाराजा थे. जम्मू- कश्मीर में सक्रिय पाकिस्तान समर्थक दल मुस्लिम कांफ्रेंस और राज्य के कबीलाई इलाके डीर, हुंजा और चितराल के जागीरदार शुरू में महाराजा हरि सिंह को पाकिस्तान में शामिल होने का प्रलोभन दे रहे थे. धीरे धीरे ये प्रलोभन धमकी में तब्दील होने लगे.


सितंबर के मध्य में जम्मू-कश्मीर के पूंछ इलाके में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की कोशिश हुई जिसको सख्ती से निपटा गया. यहां हिंसा फैलाने के लिए खासतौर पर पाकिस्तान से लोग भेजे गये. उस समय जम्मू-कश्मीर में क्या स्थिति थी उसके बारे में महाराजा हरि सिंह के बेटे डॉ कर्ण सिंह ने 1968 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा में लिखा है, “अक्टूबर महीने के शुरुआती दिन थे...15 तारीख के आसपास हमारे पास खुफिया रिपोर्ट आने लगी थी कि पूंछ, मीरपुर और सियालकोट में सरहद पार से आने वाले जत्थे बड़े पैमाने पर कत्लेआम, लूट और बलात्कार की घटनाओं को अंजाम दे रहे थे. मेरे पिता कुछ खुफिया रिपोर्टस को मुझे दे देते थे. जिसे मैं पढ़कर डोगरी भाषा में अपनी मां को सुना सकूं. आज भी याद है कि रेप लफ्ज के आने पर मुझे काफी झिझक होती थी’’.


 


महाराजा हरि सिंह और दिल्ली को भी ये अंदेशा था कि पाकिस्तान चुप नहीं बैठेगा. आखिरकार वही हुआ जिस बात का सबको डर था. 22, अक्टूबर 1947, ये वही दिन था जब पाकिस्तान की तरफ से हथियार बंद कबाइलियों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला किया. इसका नेतृत्व पाकिस्तान सेना और वहां के मुस्लिम लीग के कुछ लोग कर रहे थे. रिटायर्ड कर्नल अजय सिंह का कहना है “उस रात अंधेरा होते ही जो कबाईली हमलावर अबोटाबाद में थे वे लोग बॉर्डर क्रास करके मुजफ्फराबाद में पहुंच गए. जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तान ने तीन तरफ से घेरने की रणनीति बनाई थी. मुख्य हमला अबोटाबाद, मुजफ्फराबाद, उरी और बारामूला होते हुए श्रीनगर पहुंचना था. हमलावरों का मकसद जल्द से जल्द श्रीनगर पहुंचना था’’


पाकिस्तान से आए हमलवरों को आदेश मिला था कि एयरपोर्ट, सरकारी इमारतों, रेडियो स्टेशन पर कब्जा कर लो और डिक्लेयर करो कि श्रीनगर पाकिस्तान का हिस्सा है. ये तीन तरफा हमला पाकिस्तान के लिए बहुत कारगर साबित हो रहा था. उरी क्रॉस करने के बाद हमलावर बारामूला तक पहुंच गए जो श्रीनगर से महज 55 किलोमीटर दूर है.


बारामूला पहुंचने के बाद कबाईली हमलावरों ने लूट और बलात्कार की दिल दहला देने वाली इबारत लिखी. उनके हाथ में जो कुछ आया उसे लूटना शुरू कर दिया. रिटायर्ड कर्नल अजय सिंह का कहना है “वहां एक क्रिश्चन मिशनरी हॉस्पिटल था, उनके नन को भी नहीं छोड़ा गया. कबाईली हमलावर ट्रक में लड़कियां और सामान भरकर पाकिस्तान ले जा रहे थे और वापस लड़ाई के लिए आ रहे थे”. दिल्ली के रहने वाले श्याम सुंदर के परिवार ने इन हमलों को सहा है. उनका कहना है “ जब अटैक हुआ तो लोगों तैयार थे उन्होंने जहर की पुडिया बनाकर रखी थी, कुल्हाड़ियां तैयार थी. वहां जगह छोड़ने से पहले लोगों ने अपनी बहू-बेटियों को मार दिया. जो लोग मार नहीं सकते थे उन्हें जहर दे दिया. जो लड़कियां कुल्हाडी, जहर या डूबने से बच गई और उम्र में जो 12 साल से बड़ी या 35 साल से छोटी थी वो हिंदुस्तान में नहीं आ पाई’’


दिल्ली में सरकार ये फैसला नहीं ले पा रही थी कि जम्मू-कश्मीर में सेना भेजी जाए या नहीं. जम्मू-कश्मीर के भारत के साथ अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर करने और शेख अब्दुल्ला को आपातकालीन प्रशासन का प्रमुख बनाने के बाद 26-27 की रात को दिल्ली के पालम एयर फिल्ड में एक इंफेंटरी बटालियन वन सिख को इक्ट्ठा किया गया. ये कंपनी अगले दिन यानि 27 अक्टूबर की सुबह पालम एयरपोर्ट से निकली. उनके कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजित राय थे. उनको पता नहीं था कि श्रीनगर में क्या हो रहा है.


कर्नल अजय सिंह का कहना है, “लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजित राय को बस इतना बताया गया था कि आप जल्द से जल्द श्रीनगर पहुंचकर रेडियो से संपर्क करें. अगर संपर्क नहीं होता है तो इसका मतलब है कि दुश्मन वहां पहुंच गए हैं. ऐसी स्थिति में बटालियन को जम्मू में उतारकर श्रीनगर की तरफ पैदल मार्च करना है. आठ सवा आठ बजे डकोटा श्रीनगर एयरफिल्ड के नजदीक आए. वहां लेफ्टिनेंट कर्नल राय को श्रीनगर एयरफिल्ड से वायरलेस मेसेज मिल गया. ऑल ओके टू लैंड. 27 अक्टूबर की सुबह पहला डकोटा श्रीनगर एयरफिल्ड पर लैंड हुआ. इंडियन आर्मी श्रीनगर में पहुंच गई थी. ये रेस बहुत टाइट रेस थी. अगर कबाईली हमलावरों का एक छोटा दस्ता भी वहां पहुंच जाता या वे एयरफिल्ड पर एक ट्रक भी पार्क कर देते तो भारतीय फौज नहीं पहुंच पाती’’


भारतीय फौज ने श्रीनगर में कदम रखते ही पाकिस्तान से आए हमलावरों को खदेड़ना शुरू कर दिया और इस तरह भारतीय फौज ने श्रीनगर पर पाकिस्तान को अपना झंडा फहराने से रोका. जम्मू-कश्मीर के हालात इतने खराब थे उसके बाद भी समय पर मदद क्यों नहीं पहुंचाई गई इसकी विस्तृत जानकारी आपको प्रधानमंत्री सीरीज के दूसरे एपिसोड में मिलेगी. आजाद भारत की पहली जंग कब तक चली वो आपको बताएंगे 8 फरवरी, शनिवार रात 10 बजे प्रधानमंत्री सीरीज के तीसरे एपिसोड में.


Pradhanmantri 2 Behind The Scenes: Fun side of Shekhar Kapur