'प्रधानमंत्री' सीरीज 2 लेकर एबीपी न्यूज़ एक बार फिर आ चुका है. हर शनिवार और रविवार रात 10 बजे आप ये सीरीज एबीपी न्यूज़ पर देख सकते हैं. टीवी के अलावा आप-यू-ट्यूब और वेबसाइट पर भी देख सकते हैं. हर रोज एबीपी न्यूज़ आपके लिए इस सीरीज  से संबंधित एक आर्टिकल भी प्रकाशित करेगा. आज पढ़िए और जानिए कि जिन्ना ने कब, किसे और क्यों कहा कि 'गुंडो की जमात मुसलमानों की नुमाइंदगी नहीं कर सकती है’.


शेख अब्दुल्ला, जम्मू- कश्मीर की राजनीति के अहम किरदार हैं. शेख अब्दुल्ला के दादा कश्मीरी ब्राह्मण थे और उन्होंने इस्लाम धर्म कबूल किया. इनका परिवार कपड़ा बुनने का काम किया करता था. शेख अब्दुल्ला के जन्म से दो महीने पहले पिता का इंतकाल हो गया. शेख अब्दुल्ला जम्मू- कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे उमर अबदुल्ला के दादा थे. तकदीर कहें या संयोग मां को पांच भाई और एक बहन में शेख कुछ अलग से लगे, इसलिये इन्हें पढ़ने भेजा. शेख अब्दुल्ला श्रीनगर से लाहौर और लाहौर से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पहुंचे. यहां से इन्होंने साइंस से एम एस सी पूरी की लेकिन कश्मीर पहुंचे तो कॉलेज में नौकरी नहीं मिली. वे एसपी स्कूल में केमिस्ट्री पढ़ाने लगे. वरिष्ठ पत्रकार जवाहरलाल कौल का कहना है, ‘’शेख अबदुल्ला को लगता था कि शायद मुसलमान होने की वजह से उनके साथ रियाअत की जाए जो नहीं की गई क्योंकि उनके नंबर कम थे.’’


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शेख अब्दुल्ला भाषण देने में माहिर थे. 1931 में उन्होंने जम्मू -कश्मीर मुस्लिम कांफ्रेंस का गठन किया. वे इस पार्टी के पहले अध्यक्ष चुने गए. उनके नेतृत्व में मुस्लिम कांफ्रेंस 1939 में नेशनल कांफ्रेंस में तब्दील हो गई. यहां से इस पार्टी की नीतियां कांग्रेस की नीतियों के करीब जाने लगी. शेख अब्दुल्ला ने पार्टी का नाम बदलने से पहले बतौर अध्यक्ष कहा था ‘’हमारी तरह, हिंदू और सिखों की बड़ी तादाद गैर जवाबदेह हुकूमत के हाथों पीस रही है . उन्हें अपने हक के बारे में पता नहीं है. मैं आज उस बात को दोहरा रहा हूं, हमें मसलों को मुसलमान या गैर मुसलमान नजरिये से नहीं देखना चाहिेए. ये सोच साम्प्रदायिक है. दूसरी बात सभी के पास वोट देने का अधिकार होना चाहिए. इनके बगैर जम्हूरियत बेजान होगी.


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मुस्लिम कांफ्रेंस से नेशनल कांफ्रेंस का ये बदलाव बहुत बड़ा था. शेख अब्दुल्ला यहीं नहीं रुके . 1941 उनकी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस, ऑल इंडिया स्टेट्स पीपुल्स कॉन्फ्रेंस में शामिल हो गई. ये संस्था देसी रियासतों में राजतंत्र के खिलाफ आंदोलनों में लगी थी. इसका मतलब ये भी था कि शेख ने नेशनल कांफ्रेंस के जरिए अपनी राजनीति, मोहम्मद अली जिन्ना की राजनीति से अलग कर ली थी.


मोहम्मद अली जिन्ना धर्म के आधार पर विभाजन की मांग कर रहे थे. जब यही मांग जिन्ना ने जम्मू-कश्मीर में की तो शेख ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. शेख अब्दुल्ला ने कहा, “मुसलमानों की एक जमीन है, एक कलमा है, एक खुदा है और मैं एक मुस्लिम हूं और मेरी सारी हमदर्दी सिर्फ मुसलमानों के हक से है’’ जिन्ना यहीं नहीं रूके, उन्होंने शेख अबदुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस को गुंडो की जमात तक कह दिया, साथ ही कहा ‘गुंडो की जमात मुसलमानों की नुमाइंदगी नहीं कर सकती है’.



जिन्ना के बयानों का जवाब शेख अब्दुल्ला ने तुरंत दिया. उन्होंने कहा, “इस जमीन की जो गुरबत है, जो परेशानी है उसका इलाज तभी मुमकिन है जब हिंदू, मुस्लिम और सिख साथ खड़े हों” शेख अब्दुल्ला, मोहम्मद अली जिन्ना और उनकी राजनीति को किसी भी हाल में समर्थन देने को तैयार नहीं थे.


वरिष्ठ पत्रकार जवाहर लाल कौल का मानना है “जिन्ना ने गुलाम अब्बास को जम्मू कश्मीर में मुस्लिमों का वाहिद नेता घोषित कर दिया जिसके बाद शेख अबदुल्ला जिन्ना के खिलाफ हो गए. यहां से शेख अब्दुल्ला के रास्ते अलग हो गए. एक रास्ता जो शेख के लिए पाकिस्तान का बंद हो गया था तो दूसरा रास्ता नई दिल्ली की तरफ जा रहा था. शेख अब्दुल्ला को जवाहर लाल नेहरू में क्षमता दिखी जिसको वो महाराजा के खिलाफ इस्तेमाल कर सकते थे.”


जम्मू- कश्मीर में राजशाही को लेकर शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और जवाहरलाल नेहरू का रुख एक जैसा था. जबकि पाकिस्तान को बनाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना राजशाही को लेकर ये कह रहे थे कि फैसला करने का अख्तियार राजा या रियासत के नवाब का होगा. शेख अब्दुल्ला की राजनीति और नेहरू की कश्मीर नीति को विस्तार से जानने समझने के लिए न्यूज टेलीविजन इतिहास की सबसे बड़ी सीरीज प्रधानमंत्री 2 के पहले एपिसोड़ को देखें. 1 फरवरी 2020, रात 10 बजे प्रसारित होने वाला प्रधानमंत्री सीरीज का दूसरा एपिसोड जम्मू- कश्मीर और उसके किरदारों पर अधिक रोशनी डालेगा.


Pradhanmantri 2 Behind The Scenes: Fun side of Shekhar Kapur