Guest House Kand Mayawati: 2 जून, 1995. यूपी के सियासी इतिहास का वो काला दिन है, जब 'गेस्ट हाउस कांड' ने समाजवादी पार्टी के दिवंगत नेता मुलायम सिंह यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच कड़वाहट घोल दी थी. रिश्ते इस कदर बिगड़े थे कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा और सपा के गठबंधन के बाद भी मायावती के दिमाग से 1995 का वो 'गेस्ट हाउस कांड' निकल नहीं सका था. कहा जाता है कि गेस्ट हाउस कांड के बाद से ही मायावती ने साड़ी पहनना छोड़ दिया था और सलवार सूट पहनने लगी थीं. आइए जानते हैं क्या है ये गेस्ट हाउस कांड?


भाजपा को हराने के लिए बसपा और सपा का गठजोड़


रामजन्मभूमि आंदोलन के बाद बसपा के संस्थापक कांशीराम को मुलायम सिंह यादव ने नई पार्टी बनाने की सलाह दी. 1992 में समाजवादी पार्टी बनी और अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को टक्कर देने के लिए बसपा के साथ गठबंधन किया गया. सपा 109 सीटें और बसपा 67 सीटें जीतने में कामयाब रही. भाजपा 177 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सत्ता में नहीं आ सकी. मुलायम सिंह ने कांग्रेस समेत दूसरे छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बना ली. सपा की इस सरकार में बीएसपी के 11 मंत्री बनाए गए थे, लेकिन बसपा ने बाहर से ही सरकार को समर्थन दिया था.


बसपा के विधायकों पर पड़ने लगे सपाई डोरे


बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1995 में उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में सपा को बड़ी जीत मिली. 50 जिलों में से 30 पर सपा का परचम फहरा. नौ जिलों में भाजपा, पांच पर कांग्रेस और बसपा को सिर्फ एक सीट ही मिली. यहीं से सपा-बसपा गठबंधन टूटने की पटकथा लिखी जाने लगी. मुलायम सिंह यादव बसपा के विधायकों को अपने खेमे में करने की कोशिश करने लगे. वहीं, बसपा ने भाजपा के साथ बातचीत बढ़ा दी.


मुलायम को लगी गठबंधन टूटने की भनक


मुलायम सिंह यादव की सरकार चल जरूर रही थी, लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा होने लगी थी कि सपा-बसपा गठबंधन के बीच दरार आने लगी है. दरअसल, सपा-बसपा गठबंधन को मैनेज कर रहीं मायावती के भाजपा के साथ करीबी बढ़ाने और सरकार बनाने की बातें जोर पकड़ने लगी थीं. इसकी भनक लगते ही 23 मई 1995 को मुलायम सिंह यादव ने अस्पताल में भर्ती कांशीराम से बात करना चाही, लेकिन उन्होंने मना कर दिया.


कांशीराम ने मायावती से पूछा- सीएम बनोगी?


बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, उसी रात कांशीराम ने भाजपा ने लालजी टंडन से फोन पर गठबंधन को लेकर बात की. जब मायावती अस्पताल पहुंची, तो उनसे कांशीराम ने पूछा कि क्या वो सीएम बनेंगी? एक जून 1995 को मायावती लखनऊ पहुंचीं और गठबंधन टूटने का ऐलान हो गया. इसके अगले दिन ही गेस्ट हाउस कांड के रूप में यूपी की सियासत का सबसे काला अध्याय लिखा गया था.


क्या था गेस्ट हाउस कांड?


2 जून 1995 को लखनऊ के मीराबाई स्टेट गेस्ट हाउस में मायावती बसपा के विधायकों के साथ मीटिंग कर रही थीं. समर्थन वापस लिए जाने से मुलायम सिंह यादव के समर्थकों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था. मायावती पर अजॉय बोस की किताब 'बहन जी' के अनुसार, जातिसूचक गालियां देते हुए सैकड़ों की संख्या में सपा के कार्यकर्ता और विधायक गेस्ट हाउस में जबरन घुस आए. उन्मादी भीड़ को देख मुख्य द्वार बंद कर दिया गया. जिसे तोड़ भीड़ अंदर घुस आई और बसपा विधायकों को मारने-पीटने के साथ घसीट कर ले जाने लगी. भीड़ ने गेस्ट हाउस का बिजली-पानी तक काट दिया था.


जब बचने के लिए कमरे में छिप गई थीं मायावती


किताब के अनुसार, मायावती को गेस्ट हाउस कांड से बचाने वालों में पुलिस अफसर विजय भूषण और सुभाष सिंह बघेल की बड़ी भूमिका थी. इन्होंने ने ही उन्मादी सपा कार्यकर्ताओं की भीड़ को कुछ सिपाहियों के साथ पीछे खिसकने पर मजबूर कर दिया. वहीं, बीबीसी की एक रिपोर्ट में शरत प्रधान बताते हैं कि भीड़ से बचने के लिए मायावती एक कमरे में जाकर छिप गई थीं. उन्होंने कहा कि मायावती को बचाने में मीडिया के कैमरों का भी बड़ा सहयोग था.


मायावती ने सपा पर लगाए गंभीर आरोप


देर रात जब गेस्ट हाउस में भारी पुलिस फोर्स पहुंच गई और माहौल पूरी तरह से शांत हो गया, तब मायावती को बाहर निकाला गया. मायावती ने अपनी आत्मकथा 'मेरा संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज मूवमेंट का सफरनामा' में लिखा है कि 'मुलायम सिंह का आपराधिक चरित्र उस समय सामने आया, जब उन्होंने स्टेट गेस्ट हाउस में मुझे मरवाने की कोशिश करवाई. उन्होंने अपने बाहुबल का इस्तेमाल करते हुए न सिर्फ हमारे विधायकों का अपहरण करने की कोशिश की, बल्कि मुझे मारने का भी प्रयास किया.' इस घटना के अगले दिन भाजपा, कांग्रेस, जनता दल और कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन से मायावती उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बन गईं.