मेरठ से लेकर प्रयागराज तक बन रहे गंगा एक्सप्रेसवे काम दिन-रात चल रहा है.रायबरेली के ऐहार गांव के बरुवाहार नाम की जगह पर बड़ी-बड़ी मशीनें काम में लगी हुई हैं.  इन मशीनों की आवाजाही और मिट्टी ढो रहे ट्रकों से निकली धूल आसपास के गांवों के घरों के अंदर तक पहुंच रही है. लेकिन यहां के लोगों के लिए ये कोई खास परेशानी की बात नहीं है. 


ऐहार गांव के रहने वाले एक किसान अपने खेत के पास खड़े होकर गंगा एक्सप्रेसवे को देखते रहते हैं. सरकार ने इस इलाके के कई किसानों की जमीनें ली हैं और बदले में अच्छा-खासा मुआवजा भी दिया गया है. इसका असर इन गांवों के आर्थिक हालात पर दिख रहा है. 


जमीनों की कीमतें बढ़ गई हैं और इसकी वजह से वर्षों से सहमति से हुए बंटवारे और वादे भी टूट रहे हैं. धूल की वजह से मुंह में गमछा डाले एक किसान का कहना है कि सरकार ने कुछ लोगों को इतना पैसा दिया है कि उनकी पीढ़ियां बैठकर खा सकती हैं. 


नाम न बताने की शर्त पर किसान का कहना था कि मुआवजे की ये रकम गांव के युवाओं में नशे और तमाम दूसरे गलत कामों को बढ़ावा भी दे रही है.   दूसरी ओर कुछ युवाओं ने इस पैसे का इस्तेमाल नए-नए बिजनेस में भी किया है और अब उनका रोजगार चल भी गया है और ठीक-ठाक आय हो जा रही है. 


लेकिन राजनीतिक नजरिए से देखें तो यूपी में बन रहे तमाम एक्सप्रेसवे और इनके जरिए बांटा जा रहा मुआवजा चुनाव जीतने का सबसे बड़ा फॉर्मूला और वजह बन सकता है. भारत में उत्तर प्रदेश पहला ऐसा राज्य है जहां 13 एक्सप्रेसवे हैं. ये सभी कुल 3,200 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे. इनमें से 6 एक्सप्रेसवे पर वाहनों की आवाजाही शुरू हो चुकी है. 




इनमें से यमुना एक्सप्रेसवे और नोएडा एक्सप्रेसवे मायावती सरकार और लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे अखिलेश सरकार के समय बने हैं.


 


यूपी में एक्सप्रेसवे का ये जाल दरअसल लोकसभा चुनाव में उस चक्रव्यूह की तरह है जिसको भेद पाना आसान नहीं होगा. क्योंकि बीते 8 सालों में प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना और कोरोनाकाल में शुरू की गई मुफ्त अनाज योजना और किसान सम्मान निधि योजना से देश में एक नए तरह का मिडिल क्लास तैयार हुआ है जिसमें ज्यादातर लाभार्थी किसान हैं.




इन किसानों में बड़ा हिस्सा उन लोगों का है जिनके लिए खेती कई वर्षों से घाटे का सौदा साबित होता रहा है. लेकिन रोजगार का कोई दूसरा साधन न होने की वजह से खेती ही एकमात्र आय का साधन था. 


लेकिन सरकार की इन योजनाओं से जो राहत मिली है उससे इन घरों के युवाओं में महत्वाकांक्षाएं भी बढ़ी हैं. लेकिन एक्सप्रेसवे के लिए ली गई जमीनों के बदले मिला मुआवजे ने इनको लोअर मिडिल क्लास से उच्च क्रय क्षमता वाले समूह में पहुंचा दिया है. अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं जिन किसानों की सालाना आया 4-6 लाख हुआ करती थी उनको एकमुश्त 30 लाख से 1-1 करोड़ तक मुआवजा मिला है. 


इतना ही नहीं सरकार की ओर से ये भी दावा किया जा रहा है कि इन एक्सप्रेसवे के किनारे-किनारे उद्योग लगाने की भी तैयारी की जा रही है. मतलब जिनकी जमीनें अभी अधिग्रहीत नहीं हुई हैं वो इसका इंतजार कर रहे हैं. 


एक्सप्रेसवे की लंबाई और सीटों की संख्या
बीजेपी सरकार के कार्यकाल तैयार हो रहे 10 एक्सप्रेसवे प्रदेश की 80 लोकसभा क्षेत्रों में बड़ी संख्या को कवर रहे हैं. इसको समझने के लिए हमने सभी एक्सप्रेसवे के रूट को आकलन किया है.


दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे
दिल्ली से मेरठ को जोड़ने वाले एक्सप्रेसवे की लंबाई 96 किलोमीटर है. लेकिन इसकी वजह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों से दिल्ली आने वाले लोगों को बड़ा फायदा हुआ है. दिल्ली से गाजियाबाद और मेरठ को जोड़ता है. ये यूपी की 2 लोकसभा सीटों से गुजरता है.


पूर्वांचल एक्सप्रेसवे
341 किलोमीटर लंबा ये एक्सप्रेसवे शुरू हो चुका है. ये लखनऊ बाराबंकी, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, अमेठी, सुल्तानपुर, आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर से होकर गुजरता है. ये 9 लोकसभा सीटों से गुजरता है. ये पहला एक्सप्रेसवे है जो पूर्वांचल को सीधे लखनऊ से जोड़ता है. लखनऊ से गाजीपुर तक जाने के लिए अब सिर्फ ज्यादा से ज्यादा 4 घंटे का समय लगता है. पूर्वांचल एक्सप्रेस के किनारे-किनारे उद्योग लगाए जाने की भी तैयारी है. यानी जमीन के मुआवजे के साथ-साथ रोजगार बढ़ाने का भी दावा किया जा रहा है. इस एक्सप्रेसवे और बनने वाले इंडस्ट्रियल एरिया से 11 जिलों को फायदा हो सकता है. इस एक्सप्रसवे को अभी 6 लेन का बनाया गया है जिसे 8 लेन तक किया जा सकेगा. ये प्रोजेक्ट 22500 करोड़ का था.


बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे
296 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेसवे पर 14,850 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. इसको लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे से भी जोड़ा गया है. ये एक्सप्रेसवे शुरू किया जा चुका है जो चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन औरेया और इटावा से गुजरता है. यानी 6 लोकसभा सीटें इसके दायरे में आती हैं.


गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे
गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे की लंबाई 91.352 किलोमीटर है. इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 5876.67 करोड़ रुपये है. गोरखपुर, आजमगढ़, अंबेडकरनगर, संत कबीरनगर से गुजरता है. यानी 4 लोकसभा सीटों से गुजर रहा है.


लखनऊ-कानपुर एक्सप्रेसवे
63 किलोमीटर लंबे इस एक्सप्रेसवे को बनाने के लिए उन्नाव 31 और लखनऊ जिले के 11 गांवों की जमीन अधिग्रहीत की गई है. इस ये एक्सप्रेसवे तीन लोकसभा क्षेत्रों कानपुर, उन्नाव और लखनऊ से गुजरेगा.


गंगा एक्सप्रेसवे
मेरठ से लेकर प्रयागराज के फाफामऊ तक बन रहे इस एक्सप्रेसवे को साल 2024 के आखिरी तक लगभग पूरा कर लिया जाएगा. ये एक्सप्रेसवे मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, अमरोहा, बदायूं, शाहजहांपुर, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़ और प्रयागराज तक बनेगा. यानी ये एक्सप्रसवे 10 लोकसभा सीटों से गुजरेगा. पीआईबी से मिली जानकारी के मुताबिक इस एक्सप्रेसवे पर 36,200 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. ये उत्तर प्रदेश का सबसे लंबा एक्सप्रेसवे होगा जो राज्य के पश्चिमी हिस्से को पूर्वी हिस्से से सीधे जोड़ेगा.


कानपुर-गाजियाबाद एक्सप्रेसवे
380 लंबा ये एक्सप्रेसवे गाजियाबाद से होकर अलीगढ़, बुलंदशहर, कासगंज, कन्नौज और कानपुर तक जाएगा. ये एक्सप्रेसवे 9 लोकसभा सीटों से गुजरेगा. इस एक्सप्रेसवे से प्रदेश के दो औद्योगिक शहरों की दूरी 3 घंटे तक कम हो जाएगी. अभी कानपुर से गाजियाबाद जाने में 6 घंटे तक लग जाते हैं.


गोरखपुर-सिलीगुड़ी एक्सप्रेसवे
केंद्र सरकार की भारतमाला परियोजना के तहत बनाया जा रहा ये एक्सप्रेसवे गोरखपुर से सिलीगुड़ी को जोड़ेगा. यूपी में गोरखपुर से निकलकर देवरिया और कुशीनगर से गुजरेगा. इसके बाद बिहार के 9 जिले पूर्वी चंपारण, ईस्ट चंपारण, सीतामढ़ी, सिहोर, दरभंगा, सुपौल, कासगंज, मधुबनी, फॉरबिसगंज से होते हुए सिलीगुड़ी तक जाएगा. इसको बनाने के लिए यूपी के 50 से ज्यादा गांवों की जमीन ली गई है. इस एक्सप्रेसवे की लंबाई 519 किलोमीटर होगी.


दिल्ली-सहारनपुर-देहरादून एक्सप्रेसवे
इस एक्सप्रेसवे को बनाने में 8,300 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. इस एक्सप्रेसवे के बनने से दिल्ली से देहरादून की दूरी मात्र ढाई घंटे की रह जाएगी. ये एक्सप्रेसवे गाजियाबाद, बागपत,शामली, सहारनपुर से होते हुए देहरादून तक जाएगा.


गाजीपुर-बलिया-मांझीघाट एक्सप्रेसवे 
यूपी-बिहार की सीमा पर बनने वाले इस एक्सप्रेसवे से दो राज्यों के लोगों को फायदा पहुंचेगा.  132.76 किलीमीटर लंबे बनने वाला ये एक्सप्रेसवे वाराणसी और गाजीपुर और बलिया को जोड़ेगा.


यूपी की 45 सीटों के आसपास का खेल
बीजेपी कार्यकाल में बनाए जा रहे ये एक्सप्रेसवे करीब 45 लोकसभा सीटों को छू रहे हैं.जहां पर मुआवजे का पैसा जमीन मालिकों के बीच खूब बांटा जा रहा है. हालांकि कुछ जगहों पर मामला कोर्ट में भी है लेकिन ये विवाद मुआवजे की रकम ज्यादा करने को लेकर है. कहीं भी जमीन अधिग्रहण का विरोध नहीं किया गया है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी इन एक्सप्रेसवे को मुद्दा जरूर बनाएगी.


दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे तो 5 राज्यों से गुजरेगा
यूपी में जहां 10 एक्सप्रेसवे 40 से ज्यादा लोकसभा सीटों पर असर डाल सकते हैं तो वहीं दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे 5 राज्यों से होकर गुजरेगा. इन राज्यों में दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र शामिल हैं. माना जा रहा है लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इस एक्सप्रेसवे को अंतिम रूप देकर शुरू कर दिया जाएगा.  1400 किलोमीटर इस लंबे एक्सप्रेसवे को बनाने में 1 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं. जिसमें 8 लेन होंगे. भारत का सबसे लंबा एक्सप्रेसवे बनने जा रहा है.


दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे और लोकसभा सीटें
दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे 36 लोकसभा सीटों से गुजर रहा है. जिसमें ज्यादातर सीटें बीजेपी के पास ही हैं. जिन राज्यों से एक्सप्रेसवे गुजर रहा है अगर वहां की बात करें तो दिल्ली की सभी सातों बीजेपी के पास हैं. गुजरात की सभी 26, राजस्थान की सभी 25 और हरियाणा की सभी 10 सीटों पर बीजेपी की ही कब्जा है. महाराष्ट्र की 48 में से 41 सीटों पर बीजेपी और शिवसेना गठबंधन जीता था. 


साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी मोदी लहर के रथ पर सवार होकर सभी समीकरणों को ध्वस्त कर दिया था. क्या इस बार बीजेपी इन एक्सप्रेसवे के जरिए अपना रास्ता आसान करने की कोशिश कर रही है क्योंकि जिन राज्यों में ये एक्सप्रेसवे बन रहे हैं वहां पर बीजेपी को खुद को अपना प्रदर्शन दोहराने के लिए किसी करिश्मे की ही जरूरत पड़ेगी. सवाल इस बात का भी कि क्या विपक्ष इन एक्सप्रेसवे को देख रहा है?