Yogendra Yadav Slams MK Stalin: केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति में तीन भाषा के फॉर्मूले को शामिल किया है, जिसके बाद तमिलनाडु में हिंदी भाषा के विरोध ने फिर एक बार जोर पकड़ा है. मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार और बीजेपी पर राज्यों में हिंदी थोपने का आरोप लगाया. स्टालिन ने कहा कि हिंदी ने कई भाषाओं को निगल लिया है. स्टालिन की इसी बात पर राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने को उन्हें करारा जवाब दिया है.
सीएम स्टालिन ने एक्स पोस्ट में लिखा था कि हिंदी ने भोजपुरी, मैथली, अवध, ब्रिज, बुंदेली, गढ़वाली, जैसी कई भाषाओं को निगला है. पोस्ट में स्टालिन ने कई और भाषाओं का भी जिक्र किया. सीएम स्टालिन पर राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने करारा जवाब देते हुए कहा, “आप जैसे वरिष्ठ नेता का यह पोस्ट पढ़कर निराशा हुई. मैं पक्षपातपूर्ण राज्यपाल केंद्रीय अनुदान रोकने और किसी भी भाषा नीति को लागू करने के विरोध में आपके और तमिलनाडु के लोगों के साथ हूं, लेकिन केंद्र सरकार के विरोध को हिंदी का विरोध नहीं बनना चाहिए.”
भाषा पर हमला कर रहे स्टालिन?
सीएम स्टालिन पर योगेंद्र यादव ने कहा, “ये कहना स्वाद को खराब कर रहा है यह कथन स्वाद में खराब है, क्योंकि यह एक भाषा पर हमला करता है, न कि केवल उसके ईर्ष्यालु समर्थकों पर. यह तथ्यों के मामले में कमजोर है. सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं को कई पड़ोसी भाषाओं को शामिल करके उन्हें बोलियों के स्तर पर लाकर मानकीकृत किया गया है. इन सभी भाषाओं को मान्यता देने का तर्क सही है, लेकिन केवल हिंदी को अन्य भाषाओं को निगलने के लिए दोषी ठहराना गलत है.
बहुत कम लोग पसंद करेंगे स्टालिन की बात को
स्टालिन पर निशाना साधते हुए योगेंद्र यादव ने कहा, “यह घटिया राजनीति है- हिंदी की इन उप-भाषाओं बोलने वाले बहुत कम लोग आपके इस कथन को पसंद करेंगे. हिंदी बनाम तमिल असली लड़ाई नहीं है. भाषाएं (तमिल और हिंदी सहित) बनाम अंग्रेजी का आधिपत्य ही भारत में वास्तविक भाषाई रंगभेद है. आप एक महान और सबसे पुरानी भाषाओं में से एक के उत्तराधिकारी हैं, जो हिंदी से भी अधिक पुरानी है. आपसे बेहतर भाषाई संवेदनशीलता और संवेदनशीलता की उम्मीद है.”
हिंदी को लेकर स्टालिन ने कहा था ये
एमके स्टालिन ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा था, “दूसरे राज्यों के मेरे प्यारे बहनों और भाइयों. क्या आपने कभी सोचा है कि हिंदी ने कितनी भारतीय भाषाओं को निगल लिया है. भोजपुरी, मैथली, अवध, ब्रिज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमावनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका हो, खरिया, खरटा, कुरमाली, खुक मुंडारी और कई अन्य अब अस्तित्व के लिए हांफ रहे हैं. एक अखंड हिंदी पहचान के लिए प्रयास ही प्राचीन मातृभाषाओं को नष्ट करता है. यूपी और बिहार कभी भी सिर्फ हिंदी हॉटलैंड नहीं थे. उनकी वास्तविक भाषाएं अब अतीत के अवशेष हैं.”
तीन भाषा नीति का विरोध करते आया तमिलनाडु
तमिलनाडु में पहले से ही तीन भाषा नीति का विरोध होता आया है. 1968 में जब यह फार्मूला लागू हुआ तब भी हिंदी थोपने की बात कहते हुए तमिलनाडु ने इसे लागू नहीं किया था. राज्य में अभी दो भाषा नीति ही लागू है. वहां स्टूडेंट्स को तमिल और इंग्लिश पढ़ाई जाती है. तीन भाषा नीति का हालिया विरोध ऐसे वक्त में हो रहा है जब दक्षिण के राज्य परिसीमन को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं. वहां से सियासी दलों को डर है कि परिसीमन होने पर लोकसभा में दक्षिण के राज्यों की सीटें कम हो सकती हैं, जिससे केंद्र में उनकी आवाज कमजोर पड़ जाएगी. तमिलनाडु में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं. उससे ठीक पहले हिंदी विरोध की टाइमिंग देखने को मिल रही है.
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