बच्चे हर देश का भविष्य होते हैं. लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जिनका बचपन खेलने या स्कूल जाने में नहीं, बल्कि मजदूरी करते हुए बीतता है. दो वक्त की रोटी कमाने के लिए कुछ बच्चे काम करने को मजबूर हो जाते हैं. इसी वजह से 12 जून का दिन हर साल विश्व बाल श्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को बाल श्रम के प्रति जागरुक करना है.


अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ ने पहली बार अंतराष्ट्रीय स्तर पर बाल श्रम को रोकने की मांग उठाई थी. जिसके बाद 2002 में सर्वसम्मति से एक कानून पास कर किया गया. इस कानून के तहत छोटे बच्चों से काम कराना अपराध है. साल 2002 में ही 12 जून को पहली बार बाल श्रम निषेध दिवस मनाया गया.


संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 5 से 14 साल तक के बच्चों को किसी भी काम के माध्यम से बंदी बनाना या उन्हें हानि पहुंचाना अंतर्राष्ट्रीय कानून और राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करना माना जाता है. अगर काम उन्हें स्कूली शिक्षा से वंचित करता है तो वह काम 'बाल श्रम' है.


बाल श्रम की स्थिति और आंकड़े
2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 5 से 14 साल के 25.96 करोड़ बच्‍चों में से 1.01 करोड़ बाल श्रम कर रहे हैं. भारत में करीब 43 लाख से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करते हुए पाए गए हैं. यूनिसेफ के मुताबिक, दुनियाभर के कुल बाल मजदूरों में 12 फीसदी की हिस्सेदारी अकेले भारत की है.


दुनिया में 5 से 17 साल के बीच 152 मिलियन कामकाजी बच्चे हैं, जिनमें से 8 मिलियन बच्चे भारत में हैं. 152 मिलियन बच्चों में से 73 मिलियन बच्चे खतरनाक काम करते हैं. इनमें सफाई, कारखानों और घरेलू सहायक जैसे काम शामिल है.


सबसे ज्यादा संख्या अफ्रीका में है. यहां 7.21 करोड़ बच्चे बाल श्रम करते हैं. एशिया-पैसेफिक में 6.21 करोड़ और अमेरिका में एक करोड़ से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करते हैं.


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