लोकसभा में बुधवार (20 सितंबर) को संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के 33 फीसद आरक्षण के लिए लाया गया नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल पास हो गया. अब बिल राज्य सभा में पेश किया जाएगा और यहां भी पारित होने के बाद महिलाओं के 33 फीसदी आरक्षण के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी. बिल पारित होने के बाद शायद कानून भी जल्द ही बन जाए, लेकिन इसे लागू करने की राह में कई रोड़े हैं, जिसके चलते 2029 या 2034 तक का भी इंतजार करना पड़ सकता है. दरअसल, बिल पास होने के लिए जनगणना और परिसीमन होना जरूरी है.


बिल में कहा गया है कि जनगणना के आंकड़ों के बाद परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही बिल के प्रावधान लागू हो सकेंगे. यानी बिल का लागू होना इन दोनों प्रक्रियाओं पर निर्भर है. परिसीमन के जरिए लोकसभा और विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्रों को पुनर्निधारण किया जाता है.


क्या होता है परिसीमन?
बढ़ती आबादी के चलते परिसीमन करना एक आवश्यक प्रक्रिया होती है ताकि आबादी का समान रूप से प्रतिनिधित्व किया जा सके और सबको समान अवसर मिल सकें. समय-समय पर जनगणना के बाद परिसीमन के जरिए निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुर्निर्धारण किया जाता है. हालांकि, 2021 में जनगणना होनी थी, जिसका काम अभी तक पूरा नहीं हो सका है. परिसीमान का काम 2026 से शुरू होना है. परिसीमन के बाद निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बढ़ जाती है, लेकिन देश में 1971 से लोकसभा में सांसदों की संख्या 543 ही है.


1973 से ही लोकसभा में सांसदों की संख्या 543 क्यों?
आजादी के बाद से अब तक 7 बार जनगणना हुई, लेकिन परिसीमन सिर्फ चार 1952, 1963, 1973 और 2002 में ही हो सका. हालांकि, आखिरी बार जब 2002 में परिसीमन हुआ था तो निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ था यानी 1971 से लोकसभा सदस्यों की संख्या 543 ही है. 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 42वां संविधान संशोधन विधेयक बिल लेकर आई थीं, जिसमें 2001 तक निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं के पुनर्निधारण पर रोक लगाने का प्रस्ताव था. उन्होंने फैमिली प्लानिंग को बढ़ावा देने का हवाला देते हुए संसद में यह प्रस्ताव दिया था. 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 91वां संविधान संशोधन विधेयक पेश कर इस रोक को 2026 तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया. पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने भी जनसंख्या स्थिरीकरण एजेंडे का हवाला देकर रोक को बरकरार रखा था.


क्यों जरूरी है परिसीमन?
लोकतंत्र में आबादी का एकसमान प्रतिनिधित्व हो सके इसलिए परिसीमन किया जाता है. राज्यों की आबादी समय-समय पर बदलती रहती है. ऐसे में जनसंख्या बढ़ने के बाद भी सभी का समान प्रतिनिधित्व हो सके इसलिए भी निर्वाचन क्षेत्रों का पुनिर्धारण किया जाता है. लोकसभा क्षेत्रों का हर राज्य की जनसंख्या के अनुपात में विभाजन करना जरूरी होता है और यही नियम विधानसभाओं पर भी लागू होता है.  संविधान में भी जनगणना के बाद परिसीमान को लेकर प्रावधान है. अनच्छेद 82 में हर राज्य के लोकसभा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनिर्धारण का जिक्र किया गया है.  वहीं, आर्टिकल 81, 170, 330 और 332, जिनमें सीटों के आरक्षण का जिक्र है, उनमें भी यह बात कही गई है. परिसीमन का काम एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है, जिसका फैसला ही आखिरी होता है. किसी कोर्ट में इसे चुनौती नहीं दी जा सकती. 


दक्षिण राज्यों को परिसीमन से होगा नुकसान?
दक्षिण राज्य परिसीमन का विरोध क्यों कर रहे हैं, क्या इससे उन्हें कोई नुकसान होगा? दक्षिण राज्य में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और जागरूकता की वजह से जनसंख्या नियंत्रित हुई है, जबकि हिंदी बेल्ट के राज्यों में जनसंख्या तुलनात्मक रूप से बढ़ी है. फिलहाल, दक्षिण से लोकसभा में 129 सदस्य चुने जाते हैं, जबकि सिर्फ उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से ही 134 सांसद चुने जाते हैं. ऐसे में परिसीमन के जरिए जब निर्वाचन क्षेत्रों का पुनिर्धारण किया जाएगा तो जनसंख्या वृद्धि के कारण हिंदी भाषी राज्यों में निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या भी बढ़ जाएगी. 1951 में हुई जनगणना के बाद लोकसभा सीटों की संख्या 489 से बढ़कर 494 हुई, 1961 में यह संख्या 522 और 1971 के बाद 543 हो गई.


यह भी पढ़ें:
सोशलिस्ट और सेक्युलर पर पहले भी हो चुका है विवाद, जानें संविधान में कब जोड़े गए ये शब्द?